फतेहपुर : भाग-दौड़ की ¨जदगी में हर शहरी की यह चाहत होती है कि प्राकृतिक सुंदरता के बीच कहीं दो पल सुकून के मिल जाए। इसके लिए पार्क ही एक साधन है, वह शहर में है नहीं। तीन लाख से अधिक आबादी की नगरपालिका क्षेत्र में जमीन की कमी नहीं है, लेकिन न प्रशासनिक स्तर पर और न ही राजनीतिक स्तर पर इसके प्रयास किए गए। एक दसक से शहरी एक अदद पार्क की दरकार करते चले आ रहे हैं। छुट्टी के दिन स्कूली बच्चे गलियों में उछल-कूद कर बचपन का मजा लेने को मजबूर है। कहीं भी कोई ऐसा स्थान नहीं है जहां लोग परिवार के संग सैर-सपाटा कर कुछ आनंद ले सके। वन विभाग के चाचा नेहरू पार्क की बदहाली जख्म पर नमक छिड़कने का काम कर रही है।
शहरी क्षेत्रफल में दिन-प्रतिदिन इजाफा होता जा रहा है। सन 1980 के दसक के बाद आबादी व क्षेत्रफल में तीन गुना का इजाफा हो गया है। नए क्षेत्र बढ़ते गए तो पालिका उन क्षेत्रों की मूलभूत जरूरतों को पूरी करने में उलझी रही। कानपुर व इलाहाबाद दो महानगरों के बीच शहर का पिछड़ापन नहीं दूर हो पाया। शहरियों में टीस बनी हुई है कि जिला मुख्यालय होने के बाद भी शहर को शहरी मुखौटे के लिए तरसना पड़ता है। स्मार्ट सिटी का बनाई जा रही लेकिन फतेहपुर सिटी बनने के लिए ही तड़प रहा है। डीएम बंगले के सामने गांधी उद्यान पार्क व वन विभाग का चाचा नेहरू पार्क नाम के लिए तो है, लेकिन जगह कम व विकसित न होने के कारण यह जनता के लिए बेकार साबित हो रहे है। यह पार्क सार्वजनिक भी नहीं है ऐसे में कोई इन पार्कों में जा भी नहीं पाता। बच्चों का उल्लास व युवाओं की उमंग केवल हरियाली व फव्वारा वाले पार्कों की खूबसूरती के सपनों में तैरती रहती है। युवाओं के मन मे यह सवाल उठता है कि आखिर हमारे शहर में अन्य शहरों की तरह प्राकृतिक सुंदरता को बिखरेती पार्क बनेंगे या नहीं।
चुनाव का समय आया तो एक बार फिर सियासी नेताओं की शहर की बदहाली याद आने लगी। जनता यह सवाल कर रही है कि हर दल को मौका दिया किसी ने भी शहर को एक अदद पार्क दिलाने की पहल नहीं की। चाचा नेहरू पार्क की साज-सज्जा के लिए शासन से तीन बार स्टीमेट भेजकर पैसे की मांग की गई लेकिन एक पैसा भी नहीं मिला। बच्चों व युवा मन में यह टीस है कि कोई भी नेता नाली, खंडजा से ऊपर उठकर कुछ सोच ही नहीं पा रहे है। विधायक व सांसद निधि से एक पार्क शहर में अब तक क्यों नहीं बनवाया गया।
सुने हमारी आवाज
– शहर में ऐसा कोई भी स्थान नहीं है जहां सुकून के लिए दो पल बिताए जा सके। बच्चें में इस बात की कुंठा रहती है कि छ़ुट्टी के दिनों में भी कहीं बाहर सैर-सपाटा करने को नहीं मिलता। – संतोष ¨सह
– माननीयों को भी शहरियों के सुकून की कोई ¨चता नहीं है, लंबे समय से पार्क की मांग की जा रही है, लेकिन किसी नेता ने सबकी आम जरूरत ध्यान नहीं दिया। विधायक व सांसद निधि से केवल सड़क व हैंडपंप में खपाई जा रही है। -आसिफ खां
– सरकारी जमीन पर माफिया कब्जा कर प्ला¨टग कर रहे है, तालाब समाप्त हो रहे है। कोई भी ऐसी सार्वजनिक जगह नहीं बच रही जहां शाम व सुबह जाकर मन को शांति दी जा सके। – अनुज पटेल
– शहर के नक्से से पार्क गायब ही है। प्ला¨टग का ले आउट न होने से बस्ती के अंदर भी किसी ने पार्क के लिए जगह नहीं छोड़ी। बच्चे सड़क के फुटपाथ पर खेलने को मजबूर हो रहे है, यह गंभीर समस्या है।
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