मुंबई: इस सप्ताह रिलीज हुई फिल्म मशीन का निर्देशन किया है अब्बास-मस्तान की जोड़ी ने. इस फिल्म से इस जोड़ी के अब्बास बर्मावाला के बेटे मुस्तफा बर्मावाला ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की है. फिल्म में मुस्तफा के साथ कायरा आडवाणी, दिलीप ताहिल, रोनित रॉय, जॉनी लीवर और ईशान शंकर प्रमुख भूमिकाओं में नजर आ रहे हैं. मशीन एक रोमांटिक थ्रिलर है जिसकी कहानी संजीव कौल ने लिखी है. फिल्म में सारा थापर (कियारा आडवाणी) कार रेसर हैं और उनकी मुलाकात रंश (मुस्तफा) से होती है. दोनों में प्यार के बाद शादी हो जाती है और फिर सारा की हत्या हो जाती है. शक के दायरे में फिल्म के कई किरदार आते हैं, लेकिन मैं यह नहीं बताऊंगा कि कातिल कौन है और षडयंत्र के पीछे किसका हाथ है. क्योंकि यह नैतिक रूप से गलत होगा. इसलिए सीधे फिल्म की खूबियों और खामियों पर बात करते हैं.
इस फिल्म की सबसे बड़ी खामी है इसकी स्क्रिप्ट जो बड़ी बचकानी लगती है. चाहे फिल्म के मोमेंट्स हों या फिर डायलॉग सभी बचकाने से लगते हैं. फिल्म का स्क्रीनप्ले दर्शक को बांधकर रखने में सफल नहीं होता. अभिनय की बात करें तो रोनित रॉय के अलावा कोई भी कलाकार अपनी छाप नहीं छोड़ पाता, फिर चाहे वह फिल्म के हीरो मुस्तफा ही क्यों न हों. जहां भी आप फिल्म में थोड़ी रुचि लेने लगते हैं, गाने खलल डाल देते हैं. इस फिल्म में वे सारी चीजें हैं जो फिल्मों में नहीं होनी चाहिए. अब्बास-मस्तान ने बॉलीवुड को कई सफल फिल्में दी हैं लेकिन मुझे लगता है कि अब्बास के बेटे मुस्तफा के लिए मशीन एक सही लॉन्चपैड साबित नहीं हो पाई.
खूबियों की बात करें तो फिल्म की खूबी है इसके लोकेशंस, रोनित रॉय का अभिनय और फिल्म के तीन गाने इतना तुझे…, चतुर नार… और तेरा जुनून… ये तीनों ही गाने सुनने में अच्छे हैं. ये गाने मुझे अच्छे लगे पर यदि सही जगह पर इनका इस्तेमाल किया जाता तो ये खलल नहीं लगते. इस फिल्म के लिए मेरी रेटिंग है 1.5 स्टार.
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