सुप्रीम कोर्ट में जात ना पूछो जज की…

दिल्ली हाईकोर्ट की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जी. रोहिणी का सुप्रीम कोर्ट पहुंचना संदिग्ध माना जा रहा है। कारण तो पता नहीं, लेकिन कुछ लोगों का कहना है कि चूंकि आंध्र की कम्मा जाति के जस्टिस चामेश्वर राव और जस्टिस रामन्ना पहले ही सुप्रीम कोर्ट में हैं, शायद इस कारण इसी जाति की एक और जज का सुप्रीम कोर्ट पहुंचना मुश्किल है।
सीधे सुप्रीम कोर्ट जज
सुना गया है कि कम से कम चार लोगों को सीधे सुप्रीम कोर्ट में जज बनाए जाने पर सैद्धांतिक सहमति हो चुकी है। माने ये लोग वकील से सीधे सुप्रीम कोर्ट के जज बनाए जा सकते हैं। भारत के सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार इस दौड़ में सबसे आगे बताए जा रहे हैं।
चीफ जस्टिस की मेहनत
कानाफूसी में, सोशल मीडिया पर, बार के गलियारों में न्यायपालिका काफी हमले झेलती रही है। अब एक जवाब उसके पास भी है- प्रधान न्यायाधीश जस्टिस जे.एस.खेहर शनिवार और रविवार को भी अदालत आते हैं और सरकारी कामकाज निपटाते हैं।
सरकार के नए दूत
न्यायपालिका के साथ रिश्ते सुधारने या कम से कम सामान्य स्तर पर रखने को लेकर सरकार भी काफी गंभीर है। जस्टिस खेहर के प्रधान न्यायाधीश बनने के बाद उनके साथ संवाद रखने का दायित्व विधि मंत्री रविशंकर प्रसाद संभाल रहे हैं। जस्टिस टी. एस. ठाकुर के प्रधान न्यायाधीश रहते न्यायपालिका और कार्यपालिका के रिश्ते बेहद खराब रहे थे। प्रधानमंत्री ने एक बार अपने जन्मदिन पर उन्हें भोज पर निमंत्रित भी किया था, लेकिन संबंधों में खटास बनी रही थी।
इन्वेस्टिगेटिव जस्टिस !
चीफ जस्टिस खेहर को “मैन ऑफ कन्विक्शन” कहा जाता है। जो नाम उनसे हो कर आगे गुजरता है, उसकी पूरी पड़ताल वह स्वयं करते हैं, ताकि आगे के किसी चरण में किसी को मीन-मेख करने का मौका न मिल सके।
राष्ट्रपतिजी, बाकी पैसे कल ले लेना
नोटबंदी के असर से राष्ट्रपति भवन भी अछूता नहीं रहा है। कुछ दिनों पहले राष्ट्रपति ने 24 हजार रुपए का एक चैक भुनाने के लिए किसी को बैंक भेजा। पहले तो बैंक वालों ने कहा कि जिसका चैक है, उसे स्वयं आना पड़ेगा, लेकिन जब उन्हें पता चला कि चैक राष्ट्रपति का है, तो वे संदेशवाहक को पैसे देने के लिए तैयार हो गए। लेकिन एक बार में पूरे 24 नहीं, या तो चैक दुबारा भरो या बाकी कल ले जाना के विकल्प के साथ।
वड्डा कौन !
कांग्रेस साइकिल के कैरिअर पर सवार तो हो गई, लेकिन ऐसे नहीं। पहले साइकिल चलेगी, फिर कांग्रेस बैठेगी, या पहले कांग्रेस बैठेगी फिर साइकिल चलेगी का सवाल इसे अटकाता रहा। आज भी अटका रहा है। अखिलेश मीटिंग के लिए राहुल गांधी को लखनऊ आने को कहते हैं, तो राहुल गांधी अखिलेश यादव से दिल्ली उनके घर आने को कह देते हैं। अखिलेश राहुल गांधी को एक संयुक्त रैली का निमंत्रण देते हैं, तो राज बब्बर और अजय माकन उस पर रोड़ा डाल देते हैं- राहुल बाबा पीएम पद के दावेदार हैं, वो एक सीएम पद के दावेदार की रैली में क्यों जाएं? बड़ा सवाल है, आगे आगे देखिए होता है क्या?
नोबेल वाले नौ-नौ
मोदीजी का एक नया और जबरदस्त आइडिया। इस बार वाइब्रेंट गुजरात सम्मेलन में नौ नोबेल पुरस्कार विजेता एक साथ आए। भारत की शिक्षा प्रणाली बेहतर कैसे हो- इस विषय पर सब बोले। जनवरी की नौ तारीख, रात नौ बजे सारे नौ नोबेल पुरस्कार विजेताओं का गांधीनगर में प्रधानमंत्री के साथ भोज। उन्होंने प्रधानमंत्री को तरह-तरह के विचार दिए। जैसे कि भारत के विभिन्न राज्यों में बड़े और ऊंचे स्तर के कई विश्वविद्यालय खोले जाएं, भारतीय शोधकर्ताओं का वेतन बढ़ाया जाए आदि। खास बात यह कि ये सारे नोबल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक थे।
दिल्ली में समीक्षा!
दिल्ली के नए उपराज्यपाल अनिल बैजल के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने (फिलहाल अकेली दिल्ली के ही) मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से यह कहा है कि वह किसी तरह का प्रतिशोध नहीं चाहते हैं। केजरीवाल के दो दर्जन विधायक किसी न किसी मामले में फंसे हुए हैं। बैजल ने पुलिस अधिकारियों को बुलाकर एक उच्चस्तरीय बैठक में उन मामलों की समीक्षा की है, जो केजरीवाल पार्टी के खिलाफ नजीब जंग के समय शुरू हुए थे। देखते हैं आगे क्या होता है।
नोट इधर है, वोट उधर है
बहुत मजेदार खबर। वाइब्रेंट गुजरात की तर्ज पर ममता बनर्जी ने बंगाल के लिए एक उद्योग सम्मेलन करवाया। उनमें राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को निमंत्रित किया गया। राष्ट्रपति का जो लिखित भाषण वहां वितरित हुआ, उसमें एक पैराग्राफ नोटबंदी की प्रशंसा में था, लेकिन राष्ट्रपति ने जो भाषण पढ़ा, उसमें उन्होंने इस पैराग्राफ को छोड़ दिया। ममता ने सम्मेलन में ही नोटबंदी की जमकर आलोचना की। सवाल यह है कि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने वह हिस्सा क्यों नहीं पढ़ा? अगर प्रणब मुखर्जी को फिर राष्ट्रपति बनाने का सवाल उठा, को किस तरफ से उठेगा? नोटबंदी के इस तरफ से या उस तरफ से?
कौन बने दीदी का दादा!
एक चर्चा यह है कि ममता बनर्जी चाहती हैं कि सौरव गांगुली उनकी पार्टी की तरफ से राज्यसभा के सदस्य बन जाएं। इससे उनकी पार्टी की नारदा-सारदा-सीबीआई छवि सुधरने में थोड़ी मदद मिल सकेगी। मिठुन चक्रवर्ती के इस्तीफे के बाद उनके कार्यकाल के दो वर्ष बाकी हैं, उसके बाद जून में 4 सदस्यों का कार्यकाल पूरा भी हो रहा है। माने अगर सौरव गांगुली हां कर दें, तो लंबी पारी खेल सकते हैं। लेकिन सौरव गांगुली इसके लिए राजी नहीं हो रहे हैं।

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