MP के जंगलों में पले-बढ़े मोगली की कहानी तो आप जानते ही होंगे। पेंच के जंगल में मिले इस बच्चे पर रुडयार्ड किपलिंग ने जंगल बुक लिखी, जिस पर हॉलीवुड मूवी भी बनी। अब मध्य प्रदेश के बड़वानी का एक और मोगली बॉय सुर्खियां बटोर रहा है। फर्क यह है बड़वानी का यह मोगली कॉलेज जाता है, लेकिन पूरे कपड़े के बजाय चड्डी पहनकर…
MP के इस मोगली को कपड़े पहनना पसंद नहीं। कोई कपड़े पहनने का कह दे तो उससे 3-4 दिन बात नहीं करता। बड़वानी के इस मोगली के घर पहुंचा तो पता चला कि कन्हैया की कहानी में एक मां का संघर्ष है जो अपने बेटे को पिछड़े हुए नहीं देखना चाहती। इसीलिए वह उसके कपड़े न पहनने की जिद के आगे झुक जाती है।
स्कूल चड्डी पहनकर गया, कॉलेज भी ऐसे ही जाता है
कुछ साल पहले आपने पढ़ा होगा कि बड़वानी का ‘मोगली’ चड्डी पहनकर स्कूल जाता है। चड्डी वाला बच्चा अब कॉलेज स्टूडेंट हो गया है। पिछले साल उसने बड़वानी के सरकारी कॉलेज में BA फर्स्ट ईयर में दाखिला लिया था। इस साल वो सेकंड ईयर में पढ़ेगा। इसका असली नाम कन्हैया अवास्या है। बचपन में मां उसे कपड़े पहनाती तो वह उन्हें उतारकर फेंक देता या फाड़ देता था। ऐसे ही ‘ड्रेस कोड’ में कन्हैया 5वीं तक पढ़ा। हालांकि, कॉलेज जाने पर कन्हैया टॉवेल लपेट लेता है।
सुनिए मां की जुबानी कन्हैया की कहानी…
कन्हैया 5 साल का रहा होगा तब, मैं कपड़े पहनाती तो वो उतारकर फेंक देता था। कभी-कभी तो कपड़े भी फाड़ देता था। दूसरे कपड़े पहनाने की कोशिश करो तो रोने लगता था। थक हारकर उसे चड्डी में ही छोड़ना पड़ता था। जब स्कूल जाने की उम्र हुई तो हमें लगा कि यह स्कूल जाने के लिए कपड़े तो पहनेगा ही, लेकिन इससे ऐसा नहीं किया। तब कन्या प्राथमिक विद्यालय पिछोड़ी के टीचर रमेश चंद सराफ हमारे घर आए।
टीचर बोले स्कूल भेजो, उसे कोई कुछ नहीं बोलेगा। जिन बच्चों के साथ खेलता है, उनके साथ स्कूल आ जाए। ऐसे उसे दाखिला मिल गया। पढ़ने लिखने में ठीक था, पढ़ता गया। मिडिल स्कूल में उसे गांव से एक किमी दूर कठौरा में दाखिला मिला। यहां भी कपड़े की बात आई। क्लास में लड़के-लड़कियां साथ में पढ़ते थे। ऐसे में अध्यापक एलेक्स थॉमस आगे आए। उन्होंने यूनिफार्म दी, लेकिन इसने नहीं पहनी। वह चड्डी में ही स्कूल जाता रहा।
10वीं में नामांकन के लिए कलेक्टर से परमिशन लेनी पड़ी
आठवीं के बाद पढ़ाई के लिए बड़वानी के शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय क्रमांक-2 में एडमिशन कराने गए। कन्हैया के बारे में बताया तो शिक्षकों ने हाथ खड़े कर दिए। ऐसे में थॉमस सर ने मदद की। वे मेरे साथ स्कूल गए। वहां के शिक्षकों से बात की। स्कूल बच्चों का था, इस कारण प्रवेश मिल गया।
नौवीं के बाद जब दसवीं की बारी आई, तो नामांकन के लिए टीचर तैयार नहीं हुए। मैं बोली कि कलेक्टर से अनुमति मैं लाती हूं, आप तो प्रक्रिया पूरी करो। आखिर में कलेक्टर की परमिशन से उसका नामांकन हो गया। ग्यारहवीं में उसने एग्रीकल्चर विषय लिया और अच्छे नंबरों से पास हुआ।
फोटो खींचते हैं, तो कन्हैया डिलीट कर देता है
हमने मां से पूछा कि कभी आप इसका फोटो खींचते हो या नहीं… जवाब मिला फोटो कई बार खींचते हैं लेकिन ये हर फोटो वीडियो मोबाइल से डिलीट कर देता है। कई बार इसे कपड़े पहनने के लिए पीटा भी, लेकिन जीत इसी की हुई। कन्हैया पहले मुझसे कहता था कि मैं कॉलेज नहीं जाऊंगा। मैं तो अपनी बकरियां चराऊंगा, लेकिन मैंने कहा पढ़ने जाओ। फिर टीचर्स ने भी समझाया कि आगे तो एजुकेटेड लोगों को ही नौकरी मिलेगी, तो वह कॉलेज जाने के लिए मान गया।
सोचती हूं- पढ़-लिख जाएगा तो कपड़े पहनने लगेगा
कॉलेज में एडमिशन की बारी आई तो थॉमस सर और शिक्षक रमेश चंद सराफ मुझे लेकर कॉलेज में गए। शहीद भीमा नायक शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय के प्रिंसिपल सहित प्रोफेसरों से बात की। उसके बारे में बताया। इसके बाद उसे BA में एडमिशन मिल गया। वहां साथ में लड़कियां भी पढ़ती हैं, पर वो ऐसे ही कॉलेज जाता है। हालांकि, पिछले साल कोरोना होने के कारण ज्यादातर क्लास नहीं लगी। इस साल तो जाता है, इन्हीं कपड़ों में जा रहा है। कोई कुछ नहीं कहता। सोचती हूं कि पढ़-लिख जाएगा तो शायद समझ बढ़ने के बाद कपड़े पहनने लगे।
कबड्डी का धुरंधर खिलाड़ी है कन्हैया
कन्हैया की हैंडराइटिंग भी सुंदर है। वह आम लड़कों की तरह बोल सकता है, लिख सकता है, पढ़ सकता है और खेल भी सकता है। कबड्डी का धुरंधर खिलाड़ी है। बचपन से ही कन्हैया अपनी बकरियों से प्यार करता है। आज भी वह कॉलेज जाने से पहले और कॉलेज से लौटकर बकरी चराने जाता है। बोलता इतना कम है कि सामने वाले को लगता है कि वह गूंगा है। खासतौर पर तब बिल्कुल मुंह सिल लेता है, जब आप इससे कपड़े न पहनने की वजह पूछ बैठते हैं।
खाने में सिर्फ दूध रोटी, सब्जी-फल बिल्कुल नहीं खाता
कन्हैया सब्जियां नहीं खाता। मिर्च तो बिल्कुल भी नहीं, सिर्फ दूध रोटी खाता है। समोसा या चाइनीज खाने के सवाल पर मां ललिता बताती हैं कि हम पैसे देंगे तो समोसा खरीदकर खा लेता है। उसके भीतर का मसाला निकालकर फेंक देता है और बिना मिर्च वाला हिस्सा खा लेता है। नूडल्स, मंचूरियन कुछ नहीं खाता। कन्हैया रोज बकरी चराने जाता है उसी दौरान जंगल से दातून तोड़कर दांत साफ कर लेता है। उसने आज तक टूथपेस्ट या ब्रश का उपयोग नहीं किया।
कन्हैया का बड़ा भाई विजय 22 साल का है। दोनों एक ही क्लास में हैं। विजय और कन्हैया रोज पिछोड़ी से साथ में कॉलेज जाते हैं। मां ललिता 9वीं क्लास तक पढ़ी हैं। इनके 4 बच्चे हैं। कन्हैया सबसे छोटा है। मां बताती हैं कि कन्हैया बाइक भी चलाता है और अभी अपने नानाजी को बस स्टैंड छोड़कर आया है। जो भी कन्हैया से कपड़े को लेकर बात करता है उससे वह 2-3 दिन तक बात नहीं करता, भले उसकी मां हो या टीचर।