करनाल. कृषि के क्षेत्र में विकास के लिए खेती की नई-नई तकनीकें आ रही हैं. इसी तरह एयरोपोनिक तकनीक के जरिए अब हवा में आलू उगाया जा सकेगा. यह पोटैटो टेक्नोलॉजी केंद्र शामगढ़ का क्रांतिकारी कदम है. एरोपोनिक तकनीक के जरिए अब बिना जमीन, बिना मिट्टी के ही हवा में आलू उगा सकेंगे और पैदावार भी 10 गुना से ज्यादा होगी. इस पोटेटो सेंटर का इंटरनेशनल पोटेटो सेंटर के साथ एक एमओयू हुआ है. इसके बाद सरकार से एयरोपोनिक प्रोजेक्ट की अनुमति मिल गई है.
हरियाणा के करनाल में बागवानी विभाग की देखरेख में आलू केंद्र इस तकनीक से खेती करने में अपना योगदान दे रहा है. एयरोपोनिक तकनीक के जरिए किसान अब बिना जमीन, बिना मिट्टी हवा में आलू उगा सकेंगे. इस तकनीक में शुरुआत में लैब से आलू हार्डनिंग यूनिट तक पहुंचते हैं. इसके बाद पौधे की जड़ों को बावस्टीन में डुबोते हैं. इससे उसमें कोई भी फंगस नहीं लगता. इसके बाद बेड बनाकर उसमें कॉकपिट में इन पौधों को लगा दिया जाता है. इसके तकरीबन 10 से 15 दिन बाद इन पौधों को एयरोपोनिक यूनिट के अंदर लगा दिया जाता है. इसके बाद उचित समय के बाद आलू की फसल तैयार हो जाती है.
एयरोपोनिक तकनीक से 10 से 12 गुना बढ़ेगी पैदावार
आलू का बीज उत्पादन करने के लिए आमतौर पर ग्रीन हाउस तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है. इसमें पैदावार बेहद कम आती है. एक पौधे से पांच छोटे आलू मिलते हैं जिन्हें किसान खेत में रोपित करता है इसके बाद बिना मिट्टी के कॉकपिट में आलू का बीज उत्पादन शुरू किया गया. इसमें पैदावार करीब 2 गुना हो गई. इसके बाद एक कदम और आगे बढ़ते हुए एयरोपोनिक तकनीक से आलू उत्पादन किया जा रहा है. इसमें बिना मिट्टी, बिना जमीन के आलू पैदा होने लगे हैं. एक पौधा 40 से 60 छोटे आलू तक दे रहा है जिन्हें खेत में बीज के तौर पर रोपित किया जा रहा है. इस तकनीक से करीब 10 से 12 गुना पैदावार बढ़ जाएगी.
लटकती हुई जड़ों के जरिए दिए जाते हैं न्यूट्रिएंट्स
आलू केंद्र करनाल के वैज्ञानिक डॉ जितेंद्र सिंह ने बताया कि एयरोपोनिक एक महत्वपूर्ण तकनीक है. इसके नाम से ही स्पष्ट होता है कि एयरोपोनिक्स यानी हवा में आलू को पैदा करना. उन्होंने बताया कि इस तकनीक में जो भी न्यूट्रिएंट्स पौधों को दिए जाते हैं, वह मिट्टी के जरिए नहीं बल्कि लटकती हुई जड़ों के जरिए दिए जाते हैं. इस तकनीक के जरिए आलू के बीजों का बहुत ही अच्छा उत्पादन कर सकते हैं जो किसी भी मिट्टी जनित रोगों से रहित होंगे. डॉ जितेंद्र ने बताया कि परंपरागत खेती के मुकाबले में इस तकनीक के जरिए ज्यादा संख्या में पैदावार मिलती है. उन्होंने बताया कि आने वाले समय में इस तकनीक से अच्छी गुणवत्ता वाले बीज की कमी पूरी की जा सकेगी. केंद्र में एक यूनिट में इस तकनीक से 20 हजार पौधे लगाने की क्षमता है इससे आगे फिर करीब 8 से 10 लाख मिनी ट्यूबर्स या बीज तैयार किए जा सकते हैं.