दोस्तों ने मेरी दोनों आंखें फोड़ दीं, तमंचे से 34 छर्रे दागे, जिंदा लाश बन गया, फिर 3 बैंक एग्जाम क्रैक किए

 

यह मेरी जिंदगी में काले दिन के रूप में दर्ज है। 30-40 लोगों ने मुझ पर हमला कर दिया। उत्तर प्रदेश के बिजनौर का शक्ति चौराहा फायरिंग से थर्रा उठा। दुकानदार अपने दुकानों की शटर गिराकर भागने लगे। मैं निहत्था था।

5 दोस्तों ने देसी कट्टा निकालकर चेहरे पर 34 छर्रे दागे। मेरी दोनों आंखों की नस, पर्दा, कॉर्निया, पुतली… सब कुछ फट गया। दोस्तों ने ही मुझे अंधा बना दिया। उस वक्त ग्रेजुएशन पार्ट- 2 में था। मैं दलित वर्ग से ताल्लुक रखता हूं। इसलिए मेरे दोस्त मुझसे नफरत करते थे।

एम्स दिल्ली में ऑपरेशन करने के बाद डॉक्टर ने कहा- कुछ नहीं हो सकता। पूरी जिंदगी अब ब्लाइंड होकर ही जीना पड़ेगा। एक साल तक जिंदा लाश बना रहा। 3 बार सुसाइड करने की कोशिश की, लेकिन बच गया।

1. पहले बचपन से कॉलेज की कहानी

पापा मजदूर थे। चीनी मिल में गन्ने की चेन बांधने का काम करते थे। 12 साल की उम्र से मैं भी उनके साथ काम करने जाता था। मुझे कबड्डी और दौड़ देखने का शौक बचपन से था। धीरे-धीरे स्पोर्ट्स में मजा आने लगा। फिजिकल फिटनेस के लिए सुबह-सुबह गांव से बाहर जाकर दौड़ता था।

जब बिजनौर के हाई स्कूल में एडमिशन लिया, तो स्पोर्ट्स कॉम्पिटिशन में पार्टिसिपेट करने लगा। ये 2002 की बात है। गांव के कुछ लड़के आर्मी की तैयारी कर रहे थे। उन्हें देखकर मैं भी आर्मी की तैयारी करने लगा। 2008 के आर्मी भर्ती का अपॉइंटमेंट लेटर मेरे हाथ में था, लेकिन तब तक मैं ब्लाइंड हो चुका था। इस वजह से मैं जॉइन नहीं कर सका।

2. अब ब्लाइंड होने की कहानी

जो दोस्त मेरे साथ हमेशा घूमते-फिरते थे। मुझे नहीं पता था कि ये लोग मेरे खिलाफ जानलेवा षडयंत्र रच रहे हैं। 5 मार्च 2009 से पार्ट-2 का एग्जाम शुरू होना था। फरवरी महीने में एडमिट कार्ड बंट रहा था। मैं पोडियम पर खड़ा था। सामने कुछ स्टूडेंट्स बदतमीजी कर रहे थे। लाइन में खड़ी लड़कियों के साथ धक्का-मुक्की कर रहे थे।

इसी दौरान एक लड़की दीवार से टकरा गई। उसके सिर से खून आने लगा। जब मैंने धक्का-मुक्की कर रहे स्टूडेंट्स को समझाना चाहा, तो उन्होंने मेरे ऊपर ही अटैक कर दिया। मामला प्रिंसिपल के पास पहुंचा और उन्हें पुलिस के हवाले कर दिया गया। हालांकि, कुछ देर बाद ही उन स्टूडेट्स को समझा-बुझाकर पुलिस ने छोड़ दिया।

फिर मैं पोडियम के पास आ गया। इतने में मेरे एक दोस्त ने पीछे से आकर तमंचे की बट (बंदूक का पिछला हिस्सा) मेरे सिर पर मार दिया। सिर से खून बहने लगा। जब मैंने दोस्त से पूछा कि उसने ऐसा क्यों किया? तो उसने कहा, ‘हमलोग तो बहुत दिनों से तुम्हें टारगेट कर रहे थे, अब जाकर तुम पकड़ में आए हो।’

जब विवाद बढ़ा, तो प्रिंसिपल ने मुझे घर जाने के लिए कहा। कॉलेज के बाहर 50-60 लोग मुझ पर हमला करने के लिए इंतजार कर रहे थे। मैं किसी तरह से पीछे के गेट से डॉक्टर के पास गया। सिर पर बैंडेज लगाए घर पहुंचा, तो घरवालों ने कहा, ‘अब से कॉलेज जाना बंद। भले पढ़ो नही, कम-से-कम ठीक तो रहोगे।’

कुछ दिनों के बाद दो-तीन दोस्त घर पर आए। उन्होंने कहा, ‘कॉलेज नहीं जा सकते हैं, शादी में तो चल सकते हैं।’ बाइक से शक्ति चौराहे के पास पहुंचते ही एक दूसरा दोस्त मुझे रोककर बातों में उलझाने लगा। कुछ देर में ही 50-60 लड़कों ने मुझे घेर लिया। सभी के हाथ में तमंचा और हॉकी स्टिक। उनमें से कुछ मेरे खास दोस्त भी थे। पहले उन लोगों ने मारपीट शुरू की।

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