कोरोना से भी खतरनाक वायरस बना रहा चीन, पाकिस्तान के रावलपिंडी की सीक्रेट लैब में बन रहा ‘बायो वेपन’, 3 साल की डील
चीन और पाकिस्तान पर आरोप है कि दोनों मिलकर एक घातक वायरस को डेवलप कर रहे हैं। वायरस के रूप में इस बायोवेपन पर रिसर्च पाकिस्तान के रावलपिंडी स्थित एक रिसर्च सेंटर में चल रही है।
जियो-पॉलिटिक की रिपोर्ट के मुताबिक, घातक वायरस को बनाने के लिए चीन की कुख्यात वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी और पाकिस्तानी सेना के डिफेंस साइंस एंड टेक्नोलॉजी ऑर्गेनाइजेशन यानी DESTO ने एक बहुत ही एडवांस साइंटिफिक इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार किया है।
इस लैब की लोकेशन को कड़ाई से छिपाकर रखा गया है। कई ग्लोबल रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीन पाकिस्तान में ऐसे वायरस बना रहा है, जिसमें कोरोना की तुलना में कहीं बड़े पैमाने पर फैलने और बीमारी पैदा करने की क्षमता है।
2020 में ऑस्ट्रेलियाई पत्रकार ने किया था चीन-पाक की सीक्रेट डील का दावा
कोरोना वायरस दुनिया में फैलने के कुछ महीनों बाद ही अप्रैल-जुलाई 2020 के दौरान ऑस्ट्रेलिया के खोजी पत्रकार एंथोनी क्लैन के एक दावे ने दुनिया को हिलाकर रख दिया था। दरअसल, क्लैन ने कहा था कि चीन की वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी और पाकिस्तान के डिफेंस साइंस एंड टेक्नोलॉजी ऑर्गेनाइजेशन यानी DESTO ने तीन साल का एक करार किया है।
क्लैन ने कहा था कि इस सीक्रेट डील का मकसद बायो वेपंस बनाना है। क्लैन ने दावा किया था यह दुनिया से छिपा हुआ एक गुप्त सौदा है। पाकिस्तान में एक गुप्त लैब है, जो घातक वायरस से संबंधित कई रिसर्च प्रोजेक्ट्स चलाता है। इन लैब में एंथ्रेक्स जैसी बीमारियां फैलाने वाले घातक बैक्टीरिया और वायरस बनाए जाते हैं, जिनका इस्तेमाल बायो वेपन के रूप में किया जाता है।
क्लैन के मुताबिक, चीन ने इस गुप्त रिसर्च के लिए पाकिस्तान को इसलिए चुना है ताकि वह लोगों की नजरों से बचकर खतरनाक प्रयोगों को अंजाम दे सके। साथ ही इसे चीन के बजाय पाकिस्तान में बनाने से कुछ भी गलत होने पर चीन आसानी से इससे पल्ला झाड़ पाएगा।
पाकिस्तान ने दो साल पहले खारिज किए थे वायरस टेस्टिंग के आरोप
पाकिस्तान ने कहा था कि इस लैब का उद्देश्य उभरते हुए स्वास्थ्य खतरों पर रिसर्च , उनकी निगरानी और बीमारियों की जांच के जरिए डायनोगस्टिक एंड प्रोटेक्टिव सिस्टम में सुधार करना है।
क्या है जैविक हथियारों पर रोक लगाने वाला BTWC?
पाकिस्तान ने अपने लैब में वायरस के रूप में जैव हथियार बनाने की रिपोर्ट खारिज करते हुए BTWC से जानकारी साझा करने का जिक्र किया है। सवाल ये है कि आखिर BTWC क्या है?
बायोलॉजिकल वेपंस कन्वेंशन यानी BWC या बायोलॉजिकल एंड टॉक्सिन वेपंस कन्वेशन यानी BTWC 1975 में लागू हुआ था।
इसका उद्देश्य जैविक समेत हर तरह के सामूहिक विनाश के हथियारों के डेवलेपमेंट, प्रोडक्शन, रखने और इस्तेमाल पर रोक लगाना है। इनमें 184 देश शामिल हैं।
पाकिस्तान की रावलपिंडी लैब में घातक वायरस की टेस्टिंग के आरोप
पाकिस्तान के रावलपिंडी स्थित जिस लैब पर चीन के साथ मिलकर वायरस टेस्टिंग करने का आरोप है, वो बायोसेफ्टी लेवल-4 यानी BSL-4 लैब है। BSL-4 ऐसे लैब होते हैं, जहां सबसे खतरनाक और संक्रामक वायरस का टेस्ट और डेवलेपमेंट किया जाता है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, पाक सेना के संचालन में चल रहा डिफेंस साइंस एंड टेक्नोलॉजी ऑर्गेनाइजेशन यानी DESTO रावलपिंडी के चकलाला कैंटोनमेंट में स्थित है और इसकी कमान एक टू-स्टार जनरल के हाथों में है।
पाकिस्तान की BSL-4 लैब में बन रहे लाइलाज बीमारियों के वायरस
एक्सपर्ट्स का मानना है कि BSL-4 लैब का इस्तेमाल आमतौर पर संक्रामक और जहरीले वायरस की स्टडी में किया जाता है, जो जानलेवा बीमारियां फैला सकते हैं। ये घातक वायरस ऐसी बीमारियां फैलाते हैं, जिसकी न कोई वैक्सीन है और न ही कोई इलाज।
पाकिस्तान की रावलपिंडी BSL-4 लैब भी इसी कैटेगरी में आती है, जहां चीन और पाकिस्तान पर घातक वायरस की टेस्टिंग और उसे विकसित करने का आरोप है।
कोरोना से सैकड़ों गुना खतरनाक वायरस बना रहे चीन और पाक
मामले की जानकारी रखने वाले खुफिया और साइंटिफिक कम्यूनिटी से जुड़े लोगों ने चेतावनी दी है कि चीन और पाकिस्तान लैब में जो वायरस डेवलेप कर रहे हैं, वे कोरोना से भी सैकड़ों गुना ज्यादा घातक हैं।
इन लोगों का कहना है कि चीन ने घातक वायरस बनाने के लिए पाकिस्तान के कई लैब को आउटसोर्स किया है। माना जा रहा है कि चीन इन वायरस को या तो पाकिस्तान के लैब में बना रहा है या फिर इन्हें अपने यहां से लाकर इन लैब में रख रहा है।
वायरस का इस्तेमाल बायो वेपन की तरह करेगा चीन?
बायोवेपन एक्सपर्ट्स का मानना है कि पाकिस्तान सेना और चीनी सेना ऐसे कई लैब चलाती हैं, जहां वैज्ञानिक प्रयोग के बजाय वायरस और बैक्टीरिया को बायो वेपन बनाने की रिसर्च होती है।
ऑस्ट्रेलियाई पत्रकार क्लान के मुताबिक, चीन और पाकिस्तान के इस सीक्रेट प्रोजेक्ट का टाइटल है: ‘कोलैबोरेशन फॉर इमर्जिंग इंफेक्टिशियस डिजीज एंड स्टडीज ऑन बायोलॉजिकल कंट्रोल ऑफ वेक्टर ट्रांसमिटिंग डिजिजेज।’ इस पूरे प्रोजेक्ट की फंडिंग चीन कर रहा है।
चीन पर इससे पहले कोरोना वायरस को लैब से लीक करने का आरोप लगा था। कोरोना वायरस से दुनिया भर में अब तक 63 करोड़ से ज्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं, जबकि 66 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। खास बात ये है कि जिस चीन से कोरोना वायरस की शुरुआत हुई, वहां इसके अब तक 2.6 लाख केस ही आए हैं और 5226 लोगों की मौत हुई है, जबकि अमेरिका में इसके करीब 10 करोड़ केस आ चुके हैं और 10 लाख से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। वहीं भारत में भी कोरोना के 4.4 करोड़ केस आ चुके हैं और 5 लाख से ज्यादा मौतें हुई हैं।
चीन पर आरोप लगते रहे हैं कि उसने कोरोना वायरस का इस्तेमाल बायोवेपन की तरह करते हुए अमेरिका, भारत समेत दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं को गहरा नुकसान पहुंचाया। इसीलिए एक नए वायरस को बनाने की खबर को चीन के दुनिया के खिलाफ एक और बायोवेपन के इस्तेमाल के तौर पर देखा जा रहा है।
क्या है लैब लीक थ्योरी, जिससे चीन पर लगते रहे हैं कोरोना फैलाने के आरोप
दिसंबर 2019 में कोरोना का पहला केस चीन के वुहान में सामने आया था। चीन से ही कोरोना धीरे-धीरे पूरी दुनिया में फैला। कई रिपोर्ट्स में ये दावा किया जा चुका है कि कोरोना वायरस चीन के वुहान स्थित वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी यानी उसके एक लैब से लीक हुआ था।
लैब लीक थ्योरी इस बात पर टिकी है कि संयोग से कोरोना उसी वुहान शहर से फैला, जहां स्थित एक लैब चमगादड़ कोरोनावायरस पर स्टडी करती है। चमगादड़ों में पाए जाने वाले ये कोरोना वायरस दुनिया भर में इंसानों में कोविड फैलने के लिए जिम्मेदार SARS-COV-2 वायरस यानी कोरोना वायरस के करीबी हैं।
चीन शुरू से ही लैब लीक थ्योरी को नकारता आया है और उसका दावा है कि कोरोना वुहान के हन्नान स्थित शीफूड होलसेल यानी जानवरों के मार्केट के जरिए इंसानों तक पहुंचा। कुछ वैज्ञानिक भी इस दावे का समर्थन करते हैं।
चीन अपने स्टेट मीडिया के जरिए ये नरेटिव भी गढ़ चुका है कि दिसंबर 2019 में वुहान में कोरोना का पहला केस मिलने से पहले ही ये वायरस विदेशों में मौजूद था। कोरोना वायरस को जानबूझकर लैब में बनाया गया है या ये नेचुरल तरीके से खुद इंसानों में फैला, इसे लेकर जांच और बहस दोनों जारी है।
क्यों है चीन के बायोलॉजिकल वेपन के इस्तेमाल का खतरा?
चीन 1984 में ही बायोलॉजिकल हथियारों पर रोक लगाने वाले बायोलॉजिकल वेपन कन्वेंशन यानी BWC से जुड़ गया था, लेकिन इसके बावजूद उसने बायोलॉजिकल हथियार बनाना जारी रखा।
1993 में छपे न्यूयॉर्क टाइम्स के ‘चाइना मे हैव रिवाइव्ड जर्म वेपन प्रोग्राम’ टाइटल वाले आर्टिकल में कहा गया था कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने बायोलॉजिकल प्रोग्राम शुरू किया है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, चीन में दो जगहों पर बायोलॉजिकल हथियार बनाए जाने का काम चल रहा है।
न्यूयॉर्क टाइम्स की एक और रिपोर्ट के अनुसार जैविक हथियार बनाते समय चीन के एक सीक्रेट प्लांट में एक्सीडेंट होने से दो बड़ी महामारियां फैलीं। संयोग से 2003 में SARS फैलने पर WHO ने चीन की ये कहकर खिंचाई की थी, उसने समय रहते उसे इस बीमारी के बारे में नहीं बताया, जिससे ये चीन के बाहर फैली।
खास बात ये है कि चीन ने कोरोना वायरस को लेकर भी कई गलतियां कीं और दुनिया को समय रहते इसके बारे में जानकारी नहीं दी। चीन दुनिया की महाशक्ति बनने के लिए पूरा जोर लगा रहा है। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने जैविक हथियारों के विकास को 2016-2020 के दौरान अपनी 13वीं पंचवर्षीय योजना में शामिल किया था।
चीन की महाशक्ति बनने के लिए बायो वेपंस यानी जैविक हथियारों के इस्तेमाल की इच्छा का खुलासा चीनी सेना के दो अधिकारियों क्विवो लांग और वांग शियांगसुई की 1999 में आई किताब ‘अनरेस्ट्रिक्टेड वॉरफेयर: चाइनीज मास्टर प्लान टु डिस्ट्रॉय अमेरिका’ में किया था।
इन दोनों ने लिखा था, ‘इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि इंसानों के बनाए भूकंप, सुनामी, मौसमी आपदा, नए बॉयोलॉजिकल और केमिकल वेपंस, ये सभी नए कॉन्सेप्ट हथियार हैं। इनका लक्ष्य मारना और नष्ट करना है, और ये सभी सेना से जुड़े मामलों से संबंधित हैं।’
बायोलॉजिकल वेपंस यानी वायरस, बैक्टीरिया, फंगस से अटैक
- बायोलॉजिकल और जहरीले हथियार वायरस, बैक्टीरिया या फंगस जैसे सूक्ष्मजीव होते हैं, जिन्हें बनाया जाता है और इंसानों, जानवरों और पौधों की मौत के लिए जानबूझकर छोड़ा जाता है
- बायोवेपन या जैविक हथियारों के रूप में बायोलॉजिकल एजेंट्स,जैसे-बैक्टीरिया, वायरस, फंगस और अन्य सूक्ष्मजीवों और उनसे जुड़े विषैले पदार्थों का इस्तेमाल होता है।
- एंथ्रेक्स, बूटोलिनम टॉक्सिन और प्लेग फैलाने वाले बायोलॉजिकल एजेंट्स लोगों की सेहत के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं और कुछ ही समय में कइयों की जान ले सकते हैं।
- दूसरी बार फैलने में सक्षम बायोलॉजिल एजेंट्स महामारी का कारण बन सकते हैं।
- किसी बायोलॉजिकल एजेंट के साथ किया गया हमला प्राकृतिक घटना जैसा लगता है, जिससे उसका आकलन और उससे निपटना मुश्किल हो जाता है।
- युद्ध और संघर्ष की स्थिति में लैब में तैयार बेहद खतरनाक वायरस और बैक्टीरिया जैसे बॉयोलॉजिकल एजेंट्स का इस्तेमाल लोगों के लिए घातक हो सकता है।
- बायोलॉजिकल वेपंस में कई और घातक हथियारों के मिलने पर उन्हें सामूहिक विनाश के हथियार भी कहा जाता है।
- सामूहिक विनाश के हथियार में केमिकल, न्यूक्लियर और रेडियोलॉजिकल वेपंस भी शामिल होते हैं।
- बायोलॉजिकल हथियारों का इस्तेमाल एक गंभीर चिंता का विषय है और युद्ध में किसी देश के और आतंकी हमलों में इनके इस्तेमाल का खतरा बढ़ रहा है।