लालू को बेटी रोहिणी किडनी दे रही हैं, दुनिया में 10% लोग एक ही किडनी लेकर पैदा होते, अपनों की किडनी ज्यादा चलती है
आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव किडनी ट्रांसप्लांट के लिए सिंगापुर जाने वाले हैं। उनकी बेटी डॉ. रोहिणी आचार्या उनको किडनी दे रही हैं। किडनी ट्रांसप्लांट को लेकर आम लोगों में कई तरह की भ्रांतियां हैं। इसे दूर करने के लिए डॉ. सत्यजीत सिंह से बातचीत की। वे किडनी ट्रांसप्लांट से 1989 से जुड़े हुए हैं, जब वे इंग्लैंड में थे। 2010 में उनके रुबन अस्पताल ने बिहार में पहला किडनी ट्रांसप्लांट किया था।
सवाल- ज्यादातर लोगों का ये मानना है कि किडनी डोनेट करने से शरीर में कमजोरी के साथ ही अन्य तरह की समस्याएं आ जाती है?
जवाब- किसी का किडनी फेल्योर तब कहा जाता है जब दोनों किडनी काम करना बंद कर देता है। किडनी ट्रीटमेंट का सही इलाज किडनी ट्रांसप्लांट है। किसी कारण से हर्ट, लंग्स परमिशन नहीं देता है या बीपी कंट्रोल में नहीं हो तब डायलिसिस में ले जाते हैं।
अमूमन जिनका बीपी ठीक है डायबिटीज नहीं है या कंट्रोल है और उनका जीएफआर 15 से नीचे गया तो बिना डायलिसिस किए ट्रांसप्लांट में ले जाना चाहिए। हमारे देश में डोनेशन परिवार के लोग करते हैं। इसमें ब्लड ग्रुप मैच करना पड़ता है।
किसी ब्रेन डेड व्यक्ति की किडनी से दो व्यक्ति की जान बचा सकते हैं। इसमें ब्लड ग्रुप के साथ ही टिश्यू मैच भी कराना पड़ता है। परिवार का व्यक्ति किडनी डोनेट करता है तो मरीज का सर्वाइवल रेट 95 फीसदी मामलों में 10 साल है।
सवाल-जो डोनर हैं ( डॉ. रोहिणी आचार्या) उनकी सेहत पर भी कोई असर पड़ सकता है क्या?
जवाब- बिल्कुल कोई असर नहीं पड़ेगा। दुनिया में 10 फीसदी लोग एक ही किडनी के साथ पैदा लेते हैं और अच्छी तरह से जीवन जीते हैं। बाद में किसी कारण से अल्ट्रासाउंड होता है तब पता चलता है कि एक ही किडनी है।
सवाल- किडनी लेने वाले (लालू प्रसाद) और किडनी देने वाली (रोहिणी आचार्या) दोनों को कितने-कितने समय तक अस्पताल में रहना पड़ सकता है?
जवाब- पहले जब ओपेन ऑपरेशन होता था तब किडनी डोनेट करने वाले को 10 दिन अस्पताल में रहना होता था। लेकिन अब लेप्रोस्कोपिक विधि से किडनी निकाली जाती है जिसमें तीन से चार दिन ही अस्पताल में रहना पड़ता है। उसके बाद डोनर घर जा सकती हैं। लेप्रोस्कोपिक से किडनी निकालने के लिए चार जगहों पर छेद किया जाता है और एक-एक टाका चार जगहों पर किया जाता है। इसमें इन्फेक्शन का चांस भी कम होता है। इसमें जल्दी रिकवरी होता है और दर्द भी कम होता है।
सवाल- डोनर (रोहिणी आचार्या) को क्या-क्या सावधानियां बरतनी पड़ेगी?
जवाब- घाव सूख जाने पर तीन माह तक भारी वजन नहीं उठाना है। खांसी हुई तो तुरंत दवा ले लेनी है, क्योंकि जिस छेद से किडनी निकाली जाती है वहां हर्निया हो सकता है। तीन माह के बाद हर नॉर्मल एक्टिविटी वे कर सकती हैं। जिसकी एक किडनी निकालते हैं उसकी दूसरी किडनी में गुर्दा की मात्रा बढ़ जाती है। एक किडनी दोनों किडनी का काम करने लगता है।
सवाल- ट्रांसप्लांट के मरीज को कितने दिन दवा लेनी पड़ेगी?
जवाब- शुरू के तीन माह में तीन दवा चलेगी। फिर छह माह तक दो दवा चलेगी। इसके बाद एक दवा से मेंटनेंस होगा। तीन महीने तक जब तक घाव सूखता है। घर में ही रहते हैं। आउटडोर एक्टिविटी की मनाही है।
तीन माह के बाद आउट एक्टिविटी कर सकते हैं। हां ब्लड प्रेशर और डायबिटीज को कंट्रोल रखना होगा। गंदगी के माहौल से खुद को दूर रखना होगा। धूल वाली जगह पर मास्क पहन कर निकलना होगा। खाने में प्रोटीन की मात्रा कम लेनी होगी। नॉर्मल डाइट लेते रहेंगे।
सवाल- एक बार फिर से पूछ रहा हूं कि लोगों के दिमाग में है कि डायलिसिस में जाने से पहले किडनी ट्रांसप्लांट करा लेना चाहिए क्या?
जवाब- जैसा हमने कहा कि किडनी फेल्योर का इलाज ट्रांसप्लांट है। डायलिसिस स्थायी इलाज नहीं है। जिन्हें डोनर नहीं मिल रहा और किसी तरह कि दिक्कत है वे डायलिसिस में जाते हैं ट्रांसप्लांट देर से कराते हैं। किसी देश का हेल्थ केयर इससे माना जाता है कि वहां कितने मरीज डायलिसिस कराते हैं और कितने ट्रांसप्लांट।