13 महीने के बच्चे के गले में छेद, कैंसर के इलाज में बेचा घर

 

 

रायपुर एम्स के बाहर एक परिवार की जिंदगी के हालात देख लोग हैरान हैं। एक मां फुट पंप से 13 महीने के बच्चे को सांसे दे रही है। ब्रेन ट्यूमर और कैंसर की वजह से बच्चे को सांस की तकलीफ आ चुकी है। फुट पंप से फुटपाथ पर मां बच्चे के गले से कफ साफ करती है और बेटे को सांसे देती है ताकि वह जी सके।

एम्स रायपुर के गेट नंबर 1 के बाहर फुटपाथ पर यह सब कुछ पिछले कुछ महीनों से हो रहा है। कवर्धा का रहने वाला डहरे परिवार मजबूरी में यहां जिंदगी बिताने पहुंचा है । कोशिश बस यही है कि कलेजे के टुकड़े की जिंदगी को किसी तरह से बचा लिया जाए।

हर्ष नाम के इस बच्चे के पिता बालक दास डहरे ने बताया कि पिछले 5 महीने से एम्स के बाहर फुटपाथ पर वह इसी तरह जिंदगी बिता रहे हैं । शुरुआत में सब कुछ ठीक था मगर जैसे-जैसे बच्चे के शरीर का विकास होने लगा दिक्कत आई। उसकी बॉडी का आधा भाग काम करना बंद कर चुका था। उसे देखने में परेशानी आ रही थी । सांस लेने में परेशानी आ रही थी । प्राइवेट अस्पतालों में इलाज भी करवाया महंगे इलाज और आर्थिक परेशानी ने अब इन्हें फुटपाथ पर ला पटका है।

घर-जमीन बेचने पड़े
बालक दास ने बताया कि कवर्धा जिले के ठकुराइन टोला गांव में घर और खेत था। बच्चे के इलाज के लिए यह सब बेचना पड़ा। कुछ पैसे थे तो किराए का मकान लेकर प्राइवेट अस्पतालों में बच्चे का इलाज कराया, जो अब खत्म हो चुके हैं । किसी ने रायपुर एम्स आकर बच्चे का इलाज कराने की सलाह दी। एम्स में बच्चे का इलाज तो मुफ्त हो रहा है, मगर उसकी दवाओं के लिए पैसे और रहने के लिए जगह नहीं है। बालक दास को सरकार और समाज के लोगों से मदद की आस है।

मजदूरी दवा में खर्च हो जाती है, भूखे सोते हैं
बालक दास और उसकी पत्नी एम्स के गेट नंबर 1 के बाहर एक ठेला लगाकर 100-200 रोजी कमाते हैं । बच्चे की दवा में यह सारे पैसे खर्च हो जाते हैं। बालक दास ने बताया कि, पास के गुरुद्वारे में वक्त पर पहुंचने पर लंगर का खाना रात में नसीब होता है। बच्चे की वजह से कई बार पहुंचने में देरी होती है, तो भूखे पेट सोना पड़ता है। जैसे तैसे गुजर-बसर कर रहे हैं। उन्हें समझ नहीं आ रहा कि, उनका भविष्य क्या होगा। इलाज के खर्च की वजह से गांव के लोगों और रिश्तेदारों से कर्ज हो चुका है।
सुशीलाबाई ने की मदद
अस्पताल के बाहर एक पान का ठेला लगाने वाली सुशीलाबाई योगी ने बालक दास की कुछ मदद की। उन्होंने एक किराए का ठेला दिलाया जिस पर चाय बनाकर बच्चे के पिता बालक दास रोजी का जुगाड़ कर रहे हैं। सुशीला ने बताया कि, यह बहुत ही जरूरतमंद लोग हैं, शुरुआत में जब यहां आए तो जिंदगी से बेहद हताश थे। मरने की बात करते थे, मैंने कहा कि, मरकर अपने ही शरीर का नुकसान करोगे, मैंने समझाया और किराया का ठेला दिलाकर मदद की। समाज के लोगों को भी इस परिवार की मदद करनी चाहिए।
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