यू-ट्यूबर्स बने जी का जंजाल, डॉ. निशिकांत के टिव्ट से आया भूचाल, केन्द्र लगाये यू-ट्यूबर्स पर लगाम, पत्रकारों ने सांसद के ट्विट को सराहा

 

भाई मैं तो इस बात पर डा. निशिकांत दूबे के इस ट्विट से सहमत हूं, क्योंकि यू-ट्यूबरों ने पत्रकारिता जगत पर ही प्रश्न-चिह्न लगा दिया है, कौन सी बात सही है या कौन सी बात गलत, आप इन यू-ट्यूबरों के चक्कर में कन्फ्यूज्ड हो जायेंगे और जब सही-गलत का पता चलेगा, तब तक आपका नुकसान हो चुका होगा, यानी आप भी इन यू-ट्यूबरों के चक्कर में फंसकर गंध फैला चुके होंगे।

जहां तक मैं जानता हूं, ज्यादातर यू-ट्यूबरों को पता ही नहीं कि पत्रकारिता क्या होती हैं? न तो इनको भाषा की जानकारी होती हैं और न ही सही-गलत के पहचान का, जो मन में आता है, ये बक देते हैं और सामान्य जनों के मन-मस्तिष्क को प्रभावित कर चुके होते हैं। यहीं नहीं, ये यू-ट्यूबर लोगों को विजुअल के माध्यम से ब्लैकमेलिंग भी करते हैं। रांची में तो कई जगहों पर देखा गया कि ऐसे यू-ट्यूबरों को उनके इन कुकृत्यों पर आम जनता कही-कही उन्हें बेइज्जत भी की हैं, पर ये इतने बेशर्म होते हैं कि इतना होने के बावजूद भी ये दांत निपोरते हुए दूसरे स्थानों पर बूम हिलाते-मोबाइल हिलाते दिख जाते हैं।

हाल ही में रांची की एक घटना बताता हूं। यह घटना रांची के रेडिशन ब्लू की है। यह घटना 19 जुलाई 2022 की है। एक डायग्नोस्टिक कंपनी ने यहां प्रेस वार्ता बुलाई थी। इसमें चुनिंदा संवाददाताओं को ही आमंत्रित किया गया था। जो सूची बनाई गई थी, उसमें विभिन्न् अखबारों-चैनलों के मात्र तीस संवाददाताओं/छायाकारों को ही बुलाया गया था।

लेकिन जब प्रेस वार्ता प्रारंभ हुई तो यू-ट्यूबरों के आने का सिलसिला घंटों जारी रहा और इनकी संख्या 130 तक पहुंच गई। जिस डायग्नोस्टिक कंपनी ने प्रेस वार्ता बुलाई थी, उसके तो होश ही उड़ गये और होश उड़ गये होटल प्रबंधन के भी, कि ये सब कैसे हो गया? बताया जाता है कि उस दिन एक यू-ट्यूबर सभी को फोन कर बुला रहा था कि जल्द आओ, यहां सुस्वादु भोजन और गिफ्ट का भी प्रबंध है।

जिसको लेकर यू-ट्यूबर आते चले गये। हालात ऐसी देखकर होटलवालों ने भी हाथ खड़े कर दिये। कमोबेश ऐसी स्थिति आये दिन रांची में विभिन्न संस्थाओं/संगठनों द्वारा आयोजित होनेवाले प्रेस-वार्ता में सभी जगह देखी जा रही हैं, जो सही में पत्रकार हैं या जो आमंत्रित हैं, वे उस वक्त किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाते हैं कि वे क्या करें, ठहरें या जाये या समाचार संकलन करें?

रांची के ही एक पत्रकार अपना नाम नहीं छापने पर बताते हैं कि स्थिति तो ऐसी हो जाती है कि जैसे किसी लड़की वाले की शादी में जैसे बिन बुलाये मेहमान भारी संख्या में पहुंचकर, लड़कीवाले की खटिया खड़ी कर देने पर आमादा रहते हैं, उनके भंडारे को चट कर जाते हैं, ठीक उसी प्रकार इन यू-ट्यूबरों की होती हैं, इनका मूल मकसद अवैध तरीके से पैसे कमाना, ब्लैकमेलिंग करना, बिन बुलाये किसी का बजट बिगाड़ देना, मुफ्त का गिफ्ट प्राप्त करना, सुस्वादु भोजन का स्वाद चखना आदि होता है। जिससे सारे लोग परेशान और प्रभावित हैं।

याद करिये, हाल ही में जब झारखण्ड विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया गया था, उस दिन इन्हीं यू-ट्यूबरों के चलते वहां ऐसी स्थिति हो गई थी कि मार्शल और पत्रकार दोनों आपस में भिड़ गये, जबकि यहां मार्शल की कोई गलती नहीं थी, दरअसल यू-ट्यूब के नाम पर इतने गाजर-मूली की तरह, गले में मंगलसूत्र की तरह स्वयंभू आईकार्ड पहनकर, यू-ट्यूबर पैदा हो गये हैं कि इसमें असली पत्रकारिता कर रहे पत्रकारों की इज्जत भी दांव पर लग चुकी हैं, कई पत्रकार तो इन्हीं कारणों से अब झारखण्ड विधानसभा के कवरेज से भी दूरी बनाने लगे हैं।

कुछ पत्रकार बताते है कि जब अखबारों व चैनलों के लिए कानून बन सकते हैं तो इन यू-ट्यूबरों के लिए कानून क्यों नहीं? आप मोबाइल ले लिए, दस रुपये का बूम ले लिये, अपने यू-टयूब से जुड़े चैनल का अल-बल नाम लिख लिये और चल दिये किसी के भी आंगन में तांक-झांक करने, वो भी बेरोक-टोक, अगर किसी ने आपको यह कह दिया कि मैंने तो आपको बुलाया नहीं, तो लगे ताव देने, कि मैं पत्रकार हूं, अरे भाई आपको पत्रकार का तमगा किसने दे दिया?

ऐसे में तो सभी के पास मोबाइल हैं तो क्या सभी पत्रकार हो गये। केन्द्र सरकार को तो इस पर कानून लाना ही चाहिए। इस मामले में डा. निशिकांत दूबे की इस पहल को जो योग्य पत्रकार हैं या सही मायनों में पत्रकार हित के लिए जो समर्पित संगठन हैं, उन्होंने भी इस पहल के लिए डा. निशिकांत दूबे को बधाई दी है, साथ ही केन्द्र सरकार से इस पर जल्द ही ठोस निर्णय लेने की अपील कर डाली है।

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