कोरोना ने बच्चों का दिमाग बूढ़ा किया, सिर्फ 10 महीने में टीनएजर्स के मस्तिष्क की उम्र 3 साल बढ़ी, मेंटल हेल्थ बिगड़ी

 

लगभग तीन सालों से कोरोना का कहर जारी है। इस दौरान लगे लॉकडाउन और मेंटल स्ट्रेस से टीनएजर्स का दिमाग प्रभावित हुआ है। बायोलॉजिकल साइकियाट्री: ग्लोबल ओपन साइंस जर्नल में प्रकाशित एक हालिया स्टडी के मुताबिक, किशोरों का दिमाग समय से पहले बूढ़ा हो गया है।

इस रिसर्च में वैज्ञानिकों ने 128 बच्चों को शामिल किया। इनमें से आधे बच्चों के दिमाग को एक दूसरी स्टडी के लिए पिछले आठ सालों से स्कैन किया जा रहा था। दो स्कैन होने के बाद इनका तीसरा स्कैन मार्च 2020 में होना था, लेकिन कोरोना के चलते स्टडी को बीच में रोकना पड़ा।

वैज्ञानिकों ने महामारी से पहले लिए गए इन्हीं ब्रेन स्कैन की तुलना करनी चाही। इसके लिए उन्होंने 16 साल की उम्र के बच्चों का चयन किया। इनमें 50% प्रतिभागियों के ब्रेन स्कैन महामारी के पहले के थे। वहीं 50% नए प्रतिभागियों के ब्रेन स्कैन महामारी के बाद के थे। रिसर्च में उम्र, जेंडर, प्यूबर्टी, सोशल-इकोनॉमिक स्टेटस और बचपन के स्ट्रेस जैसे पैमानों को एक समान रखा गया।

रिसर्च के नतीजों में पाया गया कि कोरोना महामारी का अनुभव करने वाले बच्चों में डिप्रेशन, एंग्जाइटी जैसे मेंटल हेल्थ डिसऑर्डर्स बढ़ गए। उनके दिमाग के हिप्पोकैम्पस और एमिग्डाला पार्ट्स का विकास भी हुआ, जो याददाश्त नियंत्रित करने और डर जैसी भावनाओं को प्रोसेस करने में मदद करते हैं।

वैज्ञानिकों के मुताबिक, महामारी के केवल 10 महीने में ही बच्चों का दिमाग कम से कम तीन साल बूढ़ा हो गया। ये उन बच्चों के दिमाग में बदलाव की तरह है, जो बचपन में ट्रॉमा, दुर्व्यवहार जैसे बेहद बुरे हालातों से गुजरते हैं। इन्हें बड़े होने पर डायबिटीज, कैंसर और दिल की बीमारी का खतरा ज्यादा होता है।

बच्चों में आत्महत्या के ख्याल बढ़े
इससे पहले हुई कई स्टडीज में भी बच्चों पर महामारी के असर को जांचा गया है। वैज्ञानिकों ने पाया कि कोरोना की शुरुआत से ही उनमें एंग्जाइटी, डिप्रेशन, खुदकुशी के ख्याल और दूसरी मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ गईं। इससे टीनएजर्स वक्त से पहले ही बड़े हो गए हैं।

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