केंद्रीय मंत्रियों, कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों समेत प्रदेश भाजपा की भारी-भरकम टीम, ताबड़तोड़ रैलियां, भरपूर संसाधन के बावजूद आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में भाजपा के किले को ढहा दिया। इसकी बड़ी वजह अरविंद केजरीवाल के भरोसेमंद चेहरे को माना जा रहा है। वहीं, उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, विधायक दुर्गेश पाठक, दिलीप पांडेय, सौरभ भारद्वाज, आतिशी समेत आप नेताओं की दूसरी लाइन भी दिल्लीवालों के नजदीक दिखी। दूसरी तरफ बीते विधानसभा चुनावों की तरह इस बार भी भाजपा दिल्लीवालों को कोई वैकल्पिक नेतृत्व नहीं दे सकी। किसी चेहरे की जगह भाजपा एमसीडी चुनाव में बतौर पार्टी लड़ रही थी। नतीजतन 15 साल की सत्ता बचाने में भाजपा नाकाम रही।
देश की चुनावी सियासत को नजदीक से समझने वाले बताते हैं कि अमूमन लोग भरोसेमंद नेतृत्व के पीछे आसानी से लामबंद हो जाते हैं। प्रधानमंत्री के तौर पर भरोसेमंद चेहरा ही राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा की कामयाबी का राज रहा है, जबकि जिन राज्यों में भाजपा के पास मजबूत नेतृत्व नहीं है, वहां भाजपा की शिकस्त हो जाती है। दिल्ली एमसीडी चुनावों में भी यही हुआ। बीते विधानसभा चुनावों में मिली हार से भाजपा ने सबक नहीं लिया। भाजपा दिल्ली में केजरीवाल के बराबर का कोई भरोसेमंद नेतृत्व नहीं दे सकी। इसकी जगह केंद्रीय नेताओं समेत दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्री दिल्लीवालों से सीधे जुड़ नहीं सके।
दूसरी तरफ आप ने स्थानीय नेताओं के सहारे अपने अभियान को आगे बढ़ाया। यहां तक कि पंजाबी बाहुल्य सीटों पर भी पंजाब के नेताओं को नहीं लगाया गया। उम्मीदवारों के साथ स्थानीय विधायक व कार्यकर्ता डोर-टू-डोर अभियान में मतदाताओं से जुड़ते रहे। इस दौरान ज्यादा फोकस साफ-सफाई समेत विशुद्ध उन्हीं मसलों को प्रमुखता से उठाया, पहले जिन्हें पूरा करने में एमसीडी नाकाम रही थी। प्रचार का इस तरीके ने मतदाताओं पर ज्यादा असर डाला और आप की एमसीडी की सत्ता की कुंजी थमा दी है।
एमसीडी चुनाव आप के लिए सबक भी
राजनीतिक विश्लेषक व डीयू के प्रोफेसर चंद्रचूड़ सिंह बताते हैं कि भरोसेमंद नेतृत्व देकर बेशक आप ने भाजपा को एमसीडी चुनाव में शिकस्त दी है, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर जाने की कोशिश कर रही आप के एमसीडी चुनाव गहरा सबक भी है। शुरुआती आंकड़ों से जो नजर आ रहा है, उसमें आप दिल्ली में मुस्लिमों का एकतरफा वोट लेने में कामयाब नहीं हो सकी है। इसका शायद मतलब यह हो सकता है कि आप आज जिस मुकाम पर खड़ी है, उसमें आम मुस्लिम मतदाता इसे भाजपा से ज्यादा फर्क नहीं कर पा रहा है, तभी कांग्रेस के भाजपा के विकल्प न होने की स्थिति में भी उनका वोट आप को नहीं जा सका। इसकी जगह मुस्लिम वोट का बड़ा हिस्सा कांग्रेस को गया है। जिन जगहों पर आप के उम्मीदवार जीते हैं, वहां की वोटिंग पर स्थानीय सियासत भारी रही है।
नेतृत्वविहीन होकर लड़ी कांग्रेस, प्रत्याशी साख के सहारे थे
बीते विधानसभा चुनावों की तरह एमसीडी चुनाव भी कांग्रेस नेतृत्वविहीन होकर लड़ी। केंद्रीय नेतृत्व दिल्ली चुनाव में नहीं उतरा। वहीं, प्रदेश कांग्रेस के नेता भी एमसीडी चुनावों की जगह राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में ज्यादा दिलचस्पी लेते रहे। कांग्रेस ने अपने प्रत्याशियों को उनकी किस्मत पर छोड़ रखा था। उम्मीदवार अपनी साख के सहारे लड़े। नौ वार्डों में जहां स्थानीय सियासी समीकरणों के साथ मुस्लिम मतदाताओं के आप से हुए मोहभंग का तालमेल हो गया, वहां उन्हें विजय मिली। इसके अलावा दिल्ली में वह अपना जनाधार भी नहीं बचा सकी।