जिस्म बेचने को मजबूर ‘बाबर की बेटियां’, दिन में 10-10 कस्टमर, महीने में 12 लाख कमाई, बदले में सिर्फ पिटाई

 

 

उज्बेकिस्तान की फरगना वैली में कारादरया नदी के किनारे पहाड़ों से घिरा एक छोटा सा प्रांत है अंदीजान। मुगल शासक मिर्जा जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर का घर यहीं था। 1494 में बाबर फरगना का शासक बना। 2 साल बाद ही सबसे पहले उसने समरकंद जीता।

जब उसका ध्यान समरकंद पर था, तो फरगना उसके हाथ से निकल गया। बाबर ने फरगना को वापस पाना चाहा तो समरकंद भी उसके हाथ से निकल गया। इसके बाद उसने काबुल तो जीता, लेकिन समरकंद या फरगना नहीं जीत पाया।

समरकंद में तीसरी बार हार मिली, तो उसने भारत का रुख किया और पानीपत की जंग में इब्राहिम लोदी को हराया। इसके बाद कई जंगें जीतीं और हारीं, लेकिन अपने घर अंदीजान नहीं लौट पाया, आखिर आगरा में उसकी मौत हो गई।

आशिया (बदला हुआ नाम) भी उज्बेकिस्तान के इसी खूबसूरत शहर अंदीजान में पैदा हुई। पिता की बचपन में मौत हो गई, मां बीमार रहने लगी तो कमाना शुरू कर दिया। घर-घर काम करती, लेकिन बीमार मां का खर्चा नहीं उठा पा रही थी।

जान-पहचान की एक औरत ने दुबई में काम का सपना दिखाया और नेपाल के रास्ते दिल्ली ला पटका। छोटे से फ्लैट में कैद रही, मार खाई, रेप हुआ और फिर जिस्म बेचने पर मजबूर हुई। अब बस एक ही ख्वाहिश है कि अंदीजान लौट सके। बाबर नहीं लौट पाया था, क्या आशिया लौट पाएगी? ऐसी ही हजारों आशिया हैं, जो जिस्मफरोशी के लिए भारत लाई जा रही हैं, आखिरी उम्मीद है कि घर लौट पाएं।

अंदीजान की आशिया: एक भागी हुई लड़की
हिंदी के मशहूर कवि आलोक धन्वा की एक कविता है ‘भागी हुईं लड़कियां’। इसमें वे लिखते हैं- ‘अगर कोई लड़की भागी है, तो यह हमेशा जरूरी नहीं है, कि कोई लड़का भी भागा ही हो’। उस छोटे से फ्लैट में दाखिल होते हुए मुझे सामने आशिया नाम की एक ऐसी ही ‘भागी हुई लड़की’ नजर आती है। वह लड़की, जिसने प्यार और समाज की बेड़िया तोड़ने के लिए नहीं, बल्कि बेरोजगारी और जिम्मेदारी निभाने की मजबूरी में घर छोड़ा।

खूबसूरत भूरी, लेकिन उदास आंखों वाली आशिया मुझे देखते ही अपने गोरे बदन पर काली स्याही से बने बड़े-बड़े टैटू छिपाने लगती है। मैं उन्हें देख लेती हूं, वो नाकाम रहती है। उसके हाथ लगातार कांपते रहते हैं, जैसे एक लंबा एंग्जाइटी अटैक अब उसकी जिंदगी का हिस्सा है। जितना बोलती है, उसी के अनुपात में आंसू भी बहते रहते हैं, शायद शब्द अब उसके दुख को जाहिर करने में नाकाम हैं।

उम्र सिर्फ 22 साल, घर से 3000 किलोमीटर दूर। बीमार मां के पास लौटने की ख्वाहिश को ऐसे दोहराती है, जैसे मरने से पहले किसी की आखिरी इच्छा हो। न उसे ठीक से हिंदी आती है और न ही इंग्लिश।

आशिया: कहानी जो हजारों के साथ दोहराई जा रही है
आशिया बोलना शुरू करती है- मैं उज्बेकिस्तान के अंदीजान में पैदा हुई। 15 साल की थी, तो मेरी शादी हो गई। उम्मीद थी पति सहारा देगा, पर उसने तीन महीने में ही मुझे तलाक दे दिया। मैं एक धार्मिक लड़की थी। पर्दे में रहती और नमाज पढ़ती। हमारे यहां कोई बाहरी लड़कियों का चेहरा तक नहीं देख पाता। मां की दिल की बीमारी बढ़ती जा रही थी।

इस दौरान ओईनूर नाम की महिला मिली। उसने कहा कि दुबई में एक परिवार के बच्चों की देख-रेख करनी है, अच्छा पैसा मिलेगा। मैंने हां कर दिया। उसने मेरा पासपोर्ट लिया और दुबई का टिकट करवा दिया। मैं फ्लाइट से दुबई पहुंची तो मुझसे कहा गया कि दुबई में ही एक और शहर है, जहां मुझे फ्लाइट से जाना होगा। ये जनवरी 2022 की बात है।

दुबई से नेपाल और फिर सड़क के रास्ते दिल्ली
मैं उस शहर में पहुंची तो कहा गया कि यहां से बच्चों वाली मैडम के पास बस से जाना होगा। मेरा पासपोर्ट और आइडेंटिटी कार्ड भी ले लिया। अब तक मुझे नहीं पता था कि मैं किस शहर में हूं और मुझे कहां ले जाया जा रहा है। मैं यही समझ रही थी कि मैं दुबई में मैडम के पास जा रही हूं।

मुझे सड़क के रास्ते से लंबा सफर कराया और फिर एक नए शहर में ले आया गया। यहां एक मैडम के पास मुझे भेजा, उनके छोटे-छोटे बच्चे थे, जिनकी दो दिन मैंने देखभाल की। मैं समझ रही थी कि मैं दुबई में हूं और हाऊस कीपिंग का काम कर रही हूं।

दो दिन बाद मुझे एक मार्केट ले जाया गया और छोटे-छोटे कपड़े खरीदवाए गए। मैं समझ नहीं पा रही थी कि इन कपड़ों की मुझे क्या जरूरत है। फिर रात में मुझे बताया गया कि मेरे डॉक्यूमेंट उन लोगों के पास हैं और मैं बिना वीजा के भारत में हूं। मुझसे कहा गया कि यहां मुझे सेक्स वर्क करना होगा और अगर मैं ऐसा नहीं करती हूं तो अवैध तरीके से आने की वजह से मुझे गिरफ्तार करवा देंगे।

मुझे बहुत बाद में पता चला कि मुझे दुबई से काठमांडू (नेपाल) और फिर दिल्ली लाया गया था। पहले मुझे पीटा, फिर मेरे साथ रेप किया और उसके बाद मुझसे जबरदस्ती सेक्स वर्क करवाया गया। जिस बॉस के पास मुझे छोड़ा गया था, उसके पास मेरे जैसी ही और कई लड़कियां थीं। इन सबको उज्बेकिस्तान और दूसरी जगहों से मेरी तरह ही लाया गया था।

एक दिन में 10-10 कस्टमर आते, बस पीरियड्स के दौरान आराम मिलता
आशिया रोने लगती है। मैं चुप कराने की कोशिश करती हूं। अपनी कहानी सुनाने के दौरान उसके हाथ लगातार कांपते रहते हैं, वो घबराकर अचानक उज्बेकी में बोलने लगती है। फिर ठहर जाती है, शायद लौट आती है।

कुछ देर चुप रहने के बाद आगे कहती है- ‘हमारी बॉस शाम को तीन बजे काम पर लगा देती। रोजाना बिना रुके सुबह 6-7 बजे तक काम करना होता। एक दिन में कम से कम 7-8 कस्टमर आते। किसी दिन दस से ज्यादा भी। हर तरह के लोग हमारे पास आते, उनकी अलग-अलग तरह की डिमांड होती। मैं बहुत थक जाती, लेकिन थकान जाहिर करने पर और पिटाई होती।

बॉस को लगता कि हम मना कर रहे हैं या हिचक रहे हैं तो हमें पीटा जाता, सिगरेट से दाग दिया जाता। बॉडी पर कट लगाए जाते। बहुत थक जाने पर बीमारी का बहाना करना पड़ता। जब पीरियड्स आते तो किसी तरह आराम मिलता।’

जब नहीं हुआ तो भाग आई, बस अब घर जाना है
आशिया आगे बताती हैं- ’मैं दिन रात अपना जिस्म बेच रही थी। इसके बदले मुझे कोई पैसा नहीं मिल रहा था। बॉस किसी न किसी बहाने से हम पर कर्ज चढ़ा देती। मुझसे कहा गया था कि काम का आधा पैसा मुझे मिलेगा। मुझे बताया गया कि मैंने एक महीने में 12 लाख का काम किया है और 6 लाख रुपए कमा लिए हैं, लेकिन कभी पैसा नहीं दिया गया।

एक बार मां की तबीयत बिगड़ी, तो मैंने पैसे मांगे। इस पर भी बहुत पीटा गया। कहा कि पहले मुझे अपना कर्ज उतारना होगा, फिर कुछ मिलेगा। हमें ड्रग्स दी जाती, जिससे नशे की लत लग जाए। फिर उस ड्रग्स का भी पैसा हम से ही लिया जाता।’

‘भाषा ना आने की वजह से कस्टमर से भी कोई बात नहीं कर सकते। बस मुर्दा जिस्म की तरह लेटी रहती। कस्टमर अपनी भड़ास निकालते और चले जाते। मैं किसी भी तरह अपनी मां के पास लौटना चाहती थी। जब ये सब बर्दाश्त से बाहर हो गया तो अगस्त 2022 में मैं उज्बेकिस्तान दूतावास पहुंच गई। मुझे रेस्क्यू किया गया। अब मैं एक NGO के साथ रह रही हूं और मेरा मुकदमा दिल्ली की अदालत में चल रहा है। मेरी बस एक ही ख्वाहिश है कि ये कानूनी कार्रवाई जल्द से जल्द पूरी हो और मैं किसी तरह घर लौट पाऊं।’

जरीना की भी यही कहानी, मेडिकल अटेंडेंट बनाकर लाए
अंदीजान से करीब 850 किलोमीटर दूर उज्बेकिस्तान का ही एक और शहर बुखारा है। जरीना यहां पैदा हुई थी, उसे मेडिकल अडेंटेंड बनाकर दिल्ली लाया गया और जिस्मफरोशी के धंधे में धकेल दिया गया। जरीना का पासपोर्ट छीन लिया। रेस्क्यू किए जाने के बाद से जरीना का पासपोर्ट दिल्ली पुलिस के पास है और वो भारत छोड़ने के लिए अदालत के आदेश का इंतजार कर रही हैं।

जरीना की तीन साल की बेटी है। वो अपनी बेटी की इकलौती लीगल गार्जियन थीं। उनकी गैरमौजूदगी में बेटी बूढ़ी मां के पास है। जरीना वहां नहीं है, इसलिए अब उज्बेकिस्तान सरकार बेटी को किसी अनाथालय या नए लीगल गार्जियन के पास भेज सकती है। जरीना को भारत में रहते हुए ये साबित करना है कि वही बेटी की मां हैं। जरीना बार-बार मोबाइल पर अपनी बेटी का चेहरा देखती हैं, उसे याद कर रोती हैं।

‘भाषा ना आने की वजह से कस्टमर से भी कोई बात नहीं कर सकते। बस मुर्दा जिस्म की तरह लेटी रहती। कस्टमर अपनी भड़ास निकालते और चले जाते। मैं किसी भी तरह अपनी मां के पास लौटना चाहती थी। जब ये सब बर्दाश्त से बाहर हो गया तो अगस्त 2022 में मैं उज्बेकिस्तान दूतावास पहुंच गई। मुझे रेस्क्यू किया गया। अब मैं एक NGO के साथ रह रही हूं और मेरा मुकदमा दिल्ली की अदालत में चल रहा है। मेरी बस एक ही ख्वाहिश है कि ये कानूनी कार्रवाई जल्द से जल्द पूरी हो और मैं किसी तरह घर लौट पाऊं।’

 

Leave A Reply

Your email address will not be published.