मरने वालों ने 12 दिसंबर की रात शराब पी थी। 48 घंटे बाद पहली मौत होती है। जिन 70 की मौत हुई, यदि उन्हें तत्काल अस्पताल ले जाते तो ज्यादातर जिंदा होते। शुरुआत के सबसे जरूरी 12 घंटे घरवालों ने बर्बाद कर दिए। कारण- पुलिस का डर… 2 हजार से 5 हजार रुपए जुर्माना देना पड़ेगा। FIR भी दर्ज हो सकती है।
बस इसी जुर्माने और FIR के डर से किसी का पिता तो किसी की पत्नी या बेटा घरेलू इलाज करते रहे। नमक का घोल पिलाकर उल्टी कराई तो किसी को साबुन का घोल दिया गया। तबीयत और बिगड़ी, तो गांव के आसपास झोलाछाप डॉक्टर के पास पहुंचे। ऐसा करते-करते 24 घंटे बीत गए। आंखों से दिखना बंद होने लगा और सांसें फूलने लगीं तो घबराए। जुर्माना और सजा की परवाह किए बगैर मरीज को लेकर सरकारी अस्पताल पहुंचे।
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र मशरख पहुंचे तब तक 24 से 48 घंटे बीत चुके थे। अधिकतर की हालत गंभीर थी। डॉक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए और कहा कि छपरा सदर अस्पताल ले जाओ। छपरा यहां से 35 किमी दूर है। मरीजों की सांसें उखड़ने लगीं। इस 35 किमी के सफर में ज्यादातर मौत हो गई।
क्या है शराबबंदी कानून… जिससे डरकर इतनी मौत हुई
बिहार सरकार ने इस साल मार्च में शराबबंदी कानून में संशोधन किया। शराब पीने वालों के लिए थोड़ी राहत के प्रावधान किए। पहली बार शराब पीने वालों पर 2000 से 5000 रुपए तक का जुर्माना लगाया। दूसरी बार शराब पीते पकड़े जाने पर जेल भेजा जाएगा, इसमें एक साल तक की सजा हो सकती है। शराब के मामलों में पुलिस FIR करती है।
अफसरों का भी कहना है कि ऐसे मरीजों से जानकारी ली जाती है कि शराब का सेवन कहां किया और इसका नेटवर्क कैसे चलता है। पुलिस की जांच भी शराब पीने वालों से ही शुरू होती है। इस कारण लोग डरते हैं।
जिनकी मौत हुई है, उनमें ज्यादातर दिहाड़ी मजदूरी करने वाले हैं। इनके लिए 2 या 5 हजार रुपए का जुर्माना दे पाना आसान नहीं रहा होगा। रहा होता तो शायद ब्रांडेड शराब पीते। शराब कांड के दौरान पुलिस किस तरह अमानवीय बर्ताव करती है, यह भी लोग देख चुके हैं, इसलिए भी इनमें खौफ था।
बिहार के पूर्व DGP अभयानंद कहते हैं- शराबबंदी कानून का लोगों में डर है। पुलिसिया कार्रवाई के डर से ही लोग अस्पताल नहीं गए। अगर पुलिस आगे आती और कानूनी कार्रवाई के साथ इलाज कराती तो इतनी मौत नहीं होती।
शरीर को ऐसे खराब करती है जहरीली शराब
जहरीली शराब से गैस बहुत अधिक बनती है। मरीजों को पेट दर्द के साथ सांस लेने में भी समस्या होने लगती है। शुगर लेवल भी तेजी से बढ़ता है। शुगर और बीपी कंट्रोल करने की दवाएं दी जाती हैं। ऑक्सीजन लेवल पर टॉक्सिन का बड़ा असर होता है। सांस लेने में परेशानी होने पर ऑक्सीजन दी जाती है।
कैसे होता है जहरीली शराब पीने वालों का इलाज
पहले मरीजों को उल्टी कराने का प्रयास किया जाता है। ब्लड प्रेशर और गैस की दवाएं देकर टॉक्सिन का प्रभाव कम किया जाता है। कितनी मात्रा में शरीर में टॉक्सिन है, उस हिसाब से दवाओं की डोज बढ़ती है। सलाइन चढ़ाते हैं ताकि शरीर में पानी की कमी नहीं होने पाए। ऑक्सीजन और शुगर के साथ ब्लड प्रेशर की मॉनिटरिंग करते हैं। जरूरत होने पर ऑक्सीजन दी जाती है।
अगर हार्ट और लिवर के साथ किडनी तक इफेक्ट है तो इसके लिए तय दवाएं दी जाती है। सिम्टेमैटिक ट्रीटमेंट को आगे बढ़ाते है। शरीर के जिस ऑर्गन में समस्या वहां का उपचार किया जाता है। छपरा के मशरख सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के प्रभारी डॉक्टर गोपाल कृष्ण बताते हैं- मात्रा अधिक है तो मरीजों के लिए शुरुआती 4 घंटे काफी अहम होते हैं। शरीर में जहरीली शराब का टॉक्सिन फैलने में 10 से 12 घंटे लगते हैं। मरीज को वॉमिटिंग कराई जाती है, जिससे खून में फैलने से पहले टॉक्सिन को बाहर निकाला जा सकें।
पहले लिवर फिर हार्ट डैमेज होता है
जहरीली शराब के मरीजों का इलाज करने वाले डॉक्टर्स के अनुसार शराब वाले टॉक्सिन का असर पहले लिवर और दिमाग पर होता है। मिथनॉल की वजह से मेटाबॉलिज्म (पाचन तंत्र) बिगड़ जाता है। इससे शुगर तेजी से बढ़ जाता है। मरीजों का शुगर 300-400 पार हो जाता है। बीपी में तेजी से उतार-चढ़ाव होता है। ऑक्सीजन सेचुरेशन गिरने लगता है। फार्मेल्डिहाइड होने से फॉर्मिक एसिड बनता है। इससे ऑप्टिक न्यूराइटिस से आंखों की रोशनी चली जाती है। दूसरा, खून भी गाढ़ा हो जाता है, इसकी वजह से हार्ट चोक हो जाता है। किडनी भी काम करना बंद कर देती है। कार्डियक अरेस्ट होता है। ऐसी कंडीशन में मरीज को बचाना मुश्किल होता है।
पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर बोले- अधिकांश का लिवर बड़ा होकर सफेद पड़ गया
छपरा में हुए पोस्टमार्टम में टॉक्सिन से मौतों के मामले सामने आए हैं। पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर संतोष कुमार का कहना है- मरीजों ने इलाज में देरी नहीं की होती तो इतनी मौत नहीं होती। अधिकतर के फॉर्मिक एसिड बढ़े थे। इसकी वजह से मल्टी ऑर्गन फेल हुए हैं। लंग्स और हॉर्ट फेल हो गए। लिवर की साइज बढ़ी हुई थी और वो सफेद पड़ गया था।
जहरीली शराब यानी क्या..
फीजिशियन डॉक्टर राणा एसपी सिंह ने बताया- नशा बढ़ाने के लिए स्पिरिट (मेथनॉल) की मात्रा बढ़ा दी जाती है। साथ ही नशे की गोलियां भी डालते हैं। स्पिरिट ज्यादा होने से शराब जहरीली हो जाती है। सारण के मामले में भी यही हुआ है। शराब में मेथनॉल की मात्रा 15 एमएल से ज्यादा रही होगी। शराब की फैक्ट्रियों में हर स्तर पर तय मानक के अनुसार ही काम्बिनेशन किया जाता है। लैब में जांच होती है, सो अलग।
बाजार में आसानी से मिलता है मेथनॉल: इसका उपयोग पेंट, प्लास्टिक के सामान बनाने में ज्यादातर होता है। पॉलिश में भी इसका यूज होता है। अस्पतालों और बाजार में सप्लाई होने वाले स्पिरिट का रंग नीला रखा जाता है, ताकि मिलावट न हो सके।
बिहार में छपरा में जहरीली शराब के मौत का आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है। घटना के तीसरे दिन भी मौत का सिलसिला जारी रहा। इसुआपुर से शुरू हुए मौत का आंकड़ा मशरख, मढ़ौरा, तरैया, अमनौर सहित बनियापुर से भी सामने आने लगा है। अभी तक 70 लोगों की मौत हो चुकी है। छपरा सदर अस्पताल सहित निजी क्लिनिक में लोगों का इलाज जारी है।