1 दिन के बच्चे का ऑपरेशन, डॉक्टर्स के भी फूले हाथ-पैर, जन्म के बाद ढाई घंटे में तैयार की बड़ी आंत; 8 इंच का चीरा लगाना पड़ा

 

 

पटना में एक ऐसे बच्चे का जन्म हुआ जिसके पेट में बड़ी आंत ही अधूरी थी। डॉक्टरों ने 8 इंच का चीरा लगाकर महज ढाई घंटे में ही बड़ी आंत तैयार कर दी। एक दिन के नवजात का ऑपरेशन भी आसान नहीं था, क्योंकि उसके हार्ट में भी छेद था।

ऑपरेशन के दौरान नवजात की मौत हो सकती थी। इस ऑपरेशन से पहले डॉक्टर्स के भी हाथ-पैर फूल गए, क्यों कि बच्चा सिर्फ एक दिन का था और उसके दिल में भी छेद था।

डॉक्टरों की टीम ने काफी साहस दिखाया और नवजात को नई जिंदगी देने में कामयाब हो गए। सर्जरी करने वाली डॉक्टरों की टीम काफी उत्साहित है,नवजात के परिजन भी काफी खुश हैं।

ऑपरेशन से हुई डिलीवरी

पटना के दुजरा देवी स्थान के रहने वाले अजय कुमार और कविता कुमारी का कहना है कि पटना के एक बड़े हॉस्पिटल में डिलीवरी हुई। सर्जरी से बेटा पैदा हुआ, घर वालों को काफी खुशी थी। कुछ ही देर बाद बच्चे का पेट फूलने लगा और रो रोकर उसका बुरा हाल हो गया।

जांच के बाद डॉक्टरों ने बताया कि बच्चे के टॉयलेट का रास्ता ही नहीं बना है। मां के पेट में बड़ी आंत बन ही नहीं पाई, जिससे उसकी जिंदगी काफी कम है। घर वाले काफी परेशान हो गए और मां को उसी हॉस्पिटल में छोड़ वह कंकड़बाग के मेडिमैक्स हॉस्पिटल पहुंच गए।

गैस्ट्रो सर्जन डॉक्टर संजीव कुमार ने नवजात की जांच कराई तो पता चला कि बड़ी आंत ही अधूरी है। इसके साथ ही हार्ट में भी सुराख है, जिससे सर्जरी कर बच्चे की जान बचाना काफी मुश्किल था।

ऑपरेशन में हो सकती थी मौत

डॉक्टर संजीव का कहना है कि जिस समय उनके पास मासूम आया था, पेट काफी फूला हुआ था। दर्द से बच्चा बेहाल था, सर्जरी से डिलीवरी के कारण मां दूसरे हॉस्पिटल में भर्ती थी। हार्ट में छेद के साथ एक दिन के नवजात की सर्जरी करना काफी कठिन था।

डॉ संजीव के मुताबिक नवजात की जान बचाने के लिए ऑपरेशन करना आवश्यक था, सर्जरी में मौत का खतरा लेकर सर्जरी की गई। डॉ संजीव कुमार ने बताया कि शिशु रोग विभाग के सर्जन डॉक्टर अशोकानंद ठाकुर और बेहोशी के एक्सपर्ट डॉक्टर संतोष कुमार ने एक दिन के नवजात की सर्जरी में अहम भूमिका निभाई है।

ऐनेस्थीसिया देकर सर्जरी के बाद दोबारा होश में लाना ऐसे बच्चों के लिए मुश्किल होता है जिनके हार्ट में भी कोई न कोई समस्या होती है।

मां के पेट में 12 सप्ताह में बन जाती है आंत

डॉ संजीव कुमार का कहना है कि बड़ी आंत का निर्माण मां के पेट में 8 से 12 सप्ताह में हो जाती है। इस नवजात में समय से डिलीवरी हुई, लेकिन बच्चे के पेट में बड़ी आंत आधे से भी कम थी। बड़ी आंत पूरी नहीं बनने से टॉयलेट का रास्ता भी ब्लाइंड ब्लॉक था। हालांकि यह बीमारी काफी दुर्लभ है, 20 हजार में से किसी एक नवजात को ऐसी समस्या होती है।

आंत अंदर ही अटकी पड़ी थी और मलद्वार भी नहीं बना था। अमूमन 8 से 12 सप्ताह में बनने वाली आंत नहीं बनने से कई समस्या हो गई थी। बड़ी आंत कनेक्शन सीधा टॉयलेट के रास्ते से होता है, लेकिन आंत नहीं बनने से पूरा कनेक्शन ब्लॉक था।

ऐसे ब्लाइंड मामले लेवल टू अल्ट्रासाउंड में पता चल जाते हैं, लेकिन कराया नहीं गया। डिलीवरी के बाद 24 घंटे में यूरिन और टॉयलेट होना चाहिए,ऐसे नहीं होने से जान बचाना मुश्किल होता है।

डॉक्टरों ने नवजात के लिए बड़ा रिस्क

डॉक्टरों का कहना है कि बच्चा सिजेरियन हुआ था, मां दूसरे हॉस्पिटल में थी। पिता बच्चे को लेकर भटक रहा था। ऐसे में रिस्क लेकर डॉक्टरों ने बच्चे की सर्जरी का निर्णय लिया। डॉक्टरों का कहना है कि अच्छी बात यह रही कि हार्ट में सुराख के साथ और कोई बड़ी समस्या नहीं थी।

खाने की नली से सांस की नली का जुड़ाव नहीं था और ना ही टॉयलेट और यूरिन पाइप चिपका हुआ था। डॉ संजीव बताते हैं कि एनोरेक्टल मॉल फारमेशन बीमारी 20 हजार में एक बच्चे काे होती है।

इसकी सर्जरी कठिन होती है, इसमें एनल एट्रेसिया नहीं बना होता है। इसे सर्जरी कर बनाया जाता है। बेहोशी के तनाव के बीच सर्जरी की गई, हार्ट में छेद के कारण लगातार कार्डियक मॉनिटरिंग की गई। जहां से आंत बननी बंद हुई थी, वहां पहुंचना मुश्किल था।

8 इंच का चीरा पीठ की तरफ लगाया गया और फिर वहां तक पहुंचा गया जहां से बड़ी आंत को जोड़ना था। आंत को मोबिलाइज करने में काफी समय लग गया, इसके बाद सर्जरी पूरी की गई। बड़ी आंत का नॉर्मल कनेक्शन बनाया गया। बच्चा छोटा था इसलिए उम्मीद थी कि वह जल्दी रिकवर कर जाएगा। डॉक्टरों का कहना है कि अब वह पूरी तरह से स्वस्थ्य है।

एक बार में भी सफल हो गई सर्जरी

डॉ संजीव कुमार का कहना है कि ऐसे बच्चों की सर्जरी तीन बार में करनी पड़ती है। अलग-अलग स्टेप में सर्जरी का कारण है कि कभी कभी फूड पाइप का भी सांस के साथ कनेक्शन होता है, लेकिन इसमें ऐसी समस्या नहीं थी। ऐसे में आंत का ब्लाइंड ट्यूब बाहर लाया गया और जो पेट में नहीं बन पाया वह बनाया गया। डॉक्टर बताते हैं कि 20 हजार बच्चों में एक बच्चे को होने वाली यह समस्या मेल बच्चे में अधिक होती है। फीमेल में ऐसी समस्या कम ही देखने को मिलती है। इस केस में एक ही बार में ऑपरेशन पूरी तरह से हो गया।

डॉक्टर इसे गर्भ के दौरान मां के खान पान में लापरवाही और दवा का साइड इफेक्ट मानते हैं। हारमोनल या फोलिक एसिड के कारण भी ऐसा होता है। डॉक्टरों का कहना है कि अब बच्चा ठीक है, मां भी दूसरे हॉस्पिटल से उसके पास आ गई है। आवश्यक जांच पड़ताल के बाद बच्चे को डिस्चार्ज कर दिया जाएगा।

ऐसे बनाई गई बड़ी आंत

सामान्य बच्चे की बड़ी आंत की लंबाई 3 मीटर की होती है। इस बच्चे की बड़ी आंत 50 सेमी कम थी। इसे बढ़ाने के लिए पूरा मोबालाइज करना पड़ा, छोटे बच्चे का ट्रांसप्लांट नहीं किया जा सकता है। इसलिए आंत का मोबालाइजेशन किया गया, ऊपर से जो आंत नॉर्मल एनाटोमी से चिपकी होती है, उसे फ्री किया गया। बिहार का पहला केस है जिसमें आंत को एक ही बार में सफल ऑपरेशन कर दिया।

आंत ऊपर चिपकी होती है, उसे फ्री करने के लिए खींच कर बढ़ाया गया। टेंशन फ्री रिपेयर के लिए आंत को बाहर लाया गया और जहां ब्लाइंड एंडिग था उसको टॉयलेट यानि एनस के रास्ते से जोड़ा गया।

खिंचाव के साथ आंत का जुड़ा नहीं होता है। ऐसे केस कम होते हैं जिसमें पहले सर्जरी में ही सफल हो जाए। अक्सर ऐसे मामलों में आंत को पेट से बाहर निकाल देते हैं।

पहला स्टेज जन्म के बाद दूसरा स्टेज 6 माह और थर्ड 12 माह पर होता है लेकिन डॉक्टरों ने मिनी पीएसएआरपी(पोस्टेरियर सजाइटल एनोरेक्टोप्लास्टी) से एक बार में सर्जरी कर दी है। मिनी पीएसएआरपी केस बिहार का पहला है जिसमें एक बार की सर्जरी में बच्चे की आंत को टायलेट के रास्ते से जोड़ा गया है।

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