ताज कॉरिडोर मामले में मायावती के खिलाफ जांच वाली याचिका 4 हफ्ते के लिए टली, पढ़ें क्यों ठप हो गया था केस
नई दिल्ली: ताज कॉरिडोर घोटाले की जांच में उपलब्ध सबूतों के आधार पर पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के खिलाफ नए सिरे से सीबीआई जांच की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चार हफ्ते के लिए टल गई है. कोर्ट ने याचिकाकर्ता को चार हफ्ते में जवाब दाखिल करने को कहा है. गौरतलब है कि साल 2002 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने ताज की खूबसूरती बढ़ाने के नाम पर 175 करोड़ रुपये की परियोजनाएं लॉन्च की थी. आरोप लगा कि पर्यावरण मंत्रालय से हरी झंडी मिले बगैर ही सरकारी खजाने से 17 करोड़ रुपये जारी भी कर दिए गए थे. 175 करोड़ के इस प्रोजेक्ट में ताजमहल से लेकर आगरा फोर्ट तक दो किलोमीटर के रास्ते पर एक कॉरिडोर यानी गलियारा बनाने की बात कही गई थी. इस गलियारे में शॉपिंग कॉम्पलेक्स, एम्यूजमेंट पार्क और रेस्तरां बनाने की बात कही गई थी.
2003 में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को पड़ताल के लिए आदेश दिए थे. 2007 में सीबीआई ने चार्जशीट दाखिल की थी. सीबीआई की चार्जशीट में मायावती और नसीमुद्दीन सिद्दीकी के खिलाफ फर्जीवाड़े के गंभीर आरोप भी लगे थे, लेकिन जैसे ही मायावती सत्ता में आईं तत्कालीन राज्यपाल टीवी राजेश्वर ने इस केस में मुकदमा चलाने की इजाजत देने से मना कर दिया और सीबीआई की विशेष अदालत में चल रही कार्यवाही ठप हो गई. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने FIR को रद्द कर दिया था. गौरतलब है कि मायावती ने अदालत में दाखिल याचिकाओं को राजनीति से प्रेरित होकर उठाया गया कदम बताया था.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक-मायावती के वकील सतीश चंद्र मिश्र ने उस समय कोर्ट में बताया था कि मायावती के सामने ताज कॉरिडोर की फाइल रखी ही नहीं गई. सिर्फ सड़क बनाने की योजना थी, इमारत नहीं. पर्यावरणविदों के मुताबिक- इस गलियारे के बनने से ताजमहल को खतरा पैदा हो जाता इस प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए ताजमहल के पास बह रही यमुना नदी के किनारों को मिट्टी-पत्थर से भरना पड़ता जिससे नदी की चौड़ाई कम हो जाती और ताजमहल और आगरा फोर्ट के आधार को खतरा पैदा हो सकता था. ये प्रोजेक्ट कानून की अनदेखी थी क्योंकि ताज के 300 मीटर के दायरे में कोई भी निर्माण अवैध है.
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