इंडियन सिरप पीने से 89 बच्चों की मौत, एथिलीन ग्लाइकोल की मिलावट से भारत में भी 73 की जा चुकीं जानें

आप अगर डॉक्टर की सलाह के बिना कफ सिरप खरीद रहे हैं तो यह जानलेवा हो सकता है। ज्यादा मुनाफे के लिए कफ सिरप में एथिलीन ग्लाइकोल और डायथिलीन ग्लाइकोल नाम के लिक्विड कैमिकल मिलाए जा रहे हैं। ऐसी ही मिलावट वाले भारतीय कफ सिरप पीने से पिछले कुछ महीनों में गाम्बिया और उज्बेकिस्तान में 89 बच्चों की मौत हो चुकी है। भारत में भी दवा में इन कैमिकल्स की मिलावट से अलग-अलग घटनाओं में 73 लोगों की मौत का रिकॉर्ड दर्ज है।

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन यानी WHO ने भी 2 भारतीय कफ सिरप के यूज को लेकर अलर्ट जारी किया है। दरअसल, उज्बेकिस्तान ने 22 दिसंबर को 19 बच्चों की मौत के लिए नोएडा की मैरियन बायाटेक में बनी AMBRONOL और Doc-1 Max कफ सिरप को जिम्मेदार बताया था। साथ ही WHO से इसकी जांच करने को कहा था।

WHO ने अपनी जांच में दोनों कफ सिरप AMBRONOL और Doc-1 Max को असुरक्षित बताया है। WHO ने कहा कि बच्चों में इनके इस्तेमाल से गंभीर समस्या या फिर मौत का खतरा है। कंपनी ने अब तक इन उत्पादों की गुणवत्ता की गारंटी नहीं दी है। WHO ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि एथिलीन ग्लाइकोल और डायथिलीन ग्लाइकोल की इतनी ज्यादा मात्रा इंसानों के लिए जानलेवा हो सकती है। WHO ने पिछले साल 5 अक्टूबर को भारत की फार्मास्युटिकल्स कंपनी के बनाए 4 कफ-सिरप को लेकर गाम्बिया में अलर्ट जारी किया था

भास्कर एक्सप्लेनर में बताएंगे कि कफ सिरप में ऐसा क्या होता है जो इसे जहरीला बना देता है? साथ ही उज्बेकिस्तान ने कफ सिरप को लेकर क्या दावे किए हैं?

उज्बेकिस्तान की हेल्थ मिनिस्ट्री ने 19 बच्चों की मौत को लेकर 29 दिसंबर 2022 को प्रेस स्टेटमेंट जारी किया था। इसमें बच्चों की मौत के लिए 2 वजहों को जिम्मेदार बताया गया था।

पहला- बच्चों को तय मानक से ज्यादा दवा की खुराक दी गई।

दूसरा- कफ सिरप में जहरीले एथिलीन ग्लाइकोल का होना।

इस स्टेटमेंट में बताया गया कि सभी बच्चों को बिना डॉक्टर के पर्चे के दवा दी गई। चूंकि दवा का मुख्य घटक पैरासिटामॉल है, लेकिन पेरेंट्स ने फार्मेसी विक्रेताओं की सलाह पर Doc-1 Max सिरप का यूज गलत तरीके से एंटी कोल्ड के रूप में किया। इसी वजह से बच्चों की हालत गंभीर हुई और 19 की मौत हो गई।

हेल्थ मिनिस्ट्री ने बताया कि शुरुआती जांच के बाद पता चला है कि Doc-1 Max सिरप में सॉल्यूशन के रूप में एथिलीन ग्लाइकोल को मिलाया गया था। एथिलीन ग्लाइकोल जहरीला पदार्थ होता है। एक किलोग्राम में 1 से 2 मिलीलीटर एथिलीन ग्लाइकोल मिलाने पर यह लोगों के लिए जानलेवा हो सकता है। इससे मरीजों में उल्टी, बेहोशी, ऐंठन, हृदय संबंधी समस्याएं और किडनी फेल होने का खतरा होता है।

अक्टूबर में भी WHO ने खांसी की दवा के चार नमूनों में एथिलीन ग्लाइकोल और डायथिलीन ग्लाइकोल की उपस्थिति को जहरीले पदार्थ के रूप में चिह्नित किया था। इस कफ सिरप को हरियाणा की मैडेन फार्मास्यूटिकल्स ने बनाया था। गाम्बिया में 70 बच्चों की मौत के लिए इसी कफ सिरप को जिम्मेदार बताया गया था।

एथिलीन ग्लाइकोल क्या है, जिसे गैरकानूनी तरीके से कंपनियां कफ सिरप में मिलाती हैं?

एथिलीन ग्लाइकोल एक रंगहीन और गंधहीन अल्कोहलिक कंपाउंड है, इसका सेवन जानलेवा हो सकता है। मधुकर रेनबो चिल्ड्रेन हॉस्पिटल में पीडियाट्रिशियन डॉ. पवन कुमार के मुताबिक जहरीला होने की वजह से डायथिलीन ग्लाइकोल और एथिलीन ग्लाइकोल को खाने या दवाओं में मिलाने की अनुमति नहीं है।

Pediaa.Com वेबसाइट के मुताबिक इसे ज्यादातर ऑटोमोटिव एंटीफ्रीज यानी कोई पदार्थ जमे नहीं और पॉलिएस्टर फाइबर बनाने के लिए कच्चे माल के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन यानी CDC के मुताबिक, यह हाइड्रोलिक ब्रेक फ्लुइड्स, स्टैंप पैड स्याही, बॉल पॉइंट पेन, सॉल्वेंट्स, पेंट, सौंदर्य प्रसाधन और प्लास्टिक जैसे कई उत्पादों में भी पाया जाता है।

डायथिलीन ग्लाइकोल और एथिलीन ग्लाइकोल अडल्टरन्ट हैं जो कभी-कभी पीने वाली दवाओं में सॉल्वेंट्स के रूप में अवैध तरीके से मिलाई जाती हैं। कफ सिरप में इसका इस्तेमाल उसे मीठा बनाने के लिए भी किया जाता है।

द हिंदू की एक रिपोर्ट में लिखा है कि फार्मा कंपनियां पैसा बचाने के लिए ग्लिसरीन या प्रोपलीन ग्लाइकोल सॉल्वेंट्स की जगह डायथिलीन ग्लाइकोल और एथिलीन ग्लाइकोल का इस्तेमाल करती हैं। आसान भाषा में कहे तो ग्लिसरीन या प्रोपलीन ग्लाइकोल महंगा होता है, इसलिए दवा कंपनियां जहरीले डायथिलीन ग्लाइकोल और एथिलीन ग्लाइकोल को इस्तेमाल करती हैं ताकि लागत कम की जा सके।

जहरीला डायथिलीन ग्लाइकोल और एथिलीन ग्लाइकोल कितना खतरनाक होता है?

CDC के मुताबिक डायथिलीन ग्लाइकोल और एथिलीन ग्लाइकोल जहरीले पदार्थ होते हैं और इनके सेवन से जान जाने का खतरा होता है। इससे सेंट्रल नर्वस सिस्टम पर असर पड़ सकता है। मिचली आना, उल्टी आना, बेहोशी आना, मदमस्त होना, सदमे की स्थिति, सांस लेने में तकलीफ, यूरिन का कम होना जैसी बीमारी हो सकती है। ज्यादा गंभीर होने पर मरीज कोमा में जा सकता है, याद्दाश्त जा सकती है, दौरे पड़ सकते हैं और मस्तिष्क को गंभीर नुकसान हो सकता है।

डॉ. पवन कुमार कहते हैं कि डायथिलीन ग्लाइकोल की घुलनशीलता के चलते कुछ दवा कंपनियां कफ सिरप और एसिटामिनोफेन में ग्लिसरीन की जगह गलत तरीके से इसका इस्तेमाल करती है। ऐसे में जिन दवाओं में डायथिलीन ग्लाइकोल मिला होता है, उनकी तय मात्रा से ज्यादा खुराक लेने से 8 से 24 घंटे में किडनी फेल होने का खतरा होता है। यदि लोगों को समय पर इलाज नहीं मिलता तो 2 से 7 दिनों में मल्टीपल ऑर्गन फेलियर का खतरा होता है।

क्या भारत और दूसरे देशों में भी इस तरह के मामले पहले सामने आए हैं?

डायथिलीन ग्लाइकोल की वजह से मौतें होना कोई नई बात नहीं है। ऐसी घटनाएं पहले भारत, अमेरिका, बांग्लादेश, पनामा और नाइजीरिया में रिपोर्ट की गई हैं।

2007 में अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन यानी FDA ने एथिलीन ग्लाइकोल और डायथिलीन ग्लाइकोल को जहर बताया था।

गाम्बिया में अक्टूबर में 70 मौतें हुई थीं

  • अक्टूबर 2022 में गाम्बिया सरकार ने हरियाणा की मेडेन फार्मास्यूटिकल्स के कफ सिरप को 70 बच्चों की मौत के लिए जिम्मेदार ठहराया था।
  • यहां पर भी कफ सिरप में एथिलीन ग्लाइकोल और डायथिलीन ग्लाइकोल की मात्रा ज्यादा पाई गई थी।
  • हालांकि भारत के ड्रग कंट्रोलर को खांसी की इन दवाओं के नमूनों में कोई खामी नहीं मिली थी।
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