मासूम बच्ची की हत्या के दोषी को सजा-ए-मौत

इंदौर की कोर्ट ने 7 साल की बच्ची को 29 बार चाकू से गोदकर मारने वाले सद्दाम निवासी आजाद नगर (31) को फांसी की सजा सुनाई। सद्दाम ने कई ऊल-जलूल कुतर्क किए और जब ये उलटे पड़ गए तो वह खुद को पागल साबित करने पर उतारु हो गया।

उसने बाणगंगा मानसिक अस्पताल की दो साल पुरानी रिपोर्ट पेश की तो ‘ठीक’ हो जाने का प्रमाण पत्र सामने आ गया। मां और बचाव पक्ष ने कहा- आरोपी पागल है, मेडिकल करा लीजिए। कोर्ट ने अनुमति दी तो वह मेडिकल जांच में भी वह ठीक पाया गया। जब यह सिद्ध हो गया कि वह पागल नहीं है तो 15 दिन बाद ही कोर्ट ने उसे मौत की सजा सुना दी।

घटना 23 सितंबर 2021 की है। इंदौर के आजाद नगर में सात साल की बच्ची अपने रिश्तेदार (12 साल) के साथ सामान लेने जा रही थी। रास्ते में सद्दाम उसे उठाकर अपने घर ले गया। बच्चे की सूचना पर दादी सहित पड़ोसी भागे। सद्दाम के घर का दरवाजा बंद था। खिड़की से देखा तो सद्दाम बच्ची को लेटाकर चाकू से वार कर रहा था। उसने बच्ची की 29 बार चाकू मारे। बच्ची की मौके पर ही मौत हो गई थी। आरोपी को 24 घंटे में ही गिरफ्तार कर लिया गया था।

कोर्ट बहस पार्ट 1 : जब ऐसी घटना हो रही तो क्या गवाह ये ध्यान रखे कि खिड़की जालीदार है या पल्लेदार?

गवाह का दावाचश्मदीदों ने बयान दिए कि हां, हमने इसे खिड़की से देखा था कि यह चाकू से बच्ची पर वार कर रहा है। इसके हाथ में चाकू था। एक के बाद एक कई गवाहों ने यही बात कही।

बचाव पक्ष का तर्कआरोपी की ओर से तर्क दिए गए। एक कह रहा है कि जिस खिड़की से झांका था, वहां जाली लगी थी। जबकि पुलिस ने मौके का जो नक्शा पंचनामा तैयार किया है, उसमें खिड़की दिखाई ही नहीं है। बाद में कहा जा रहा है कि खिड़की थी, लेकिन जाली नहीं, पल्लेदार थी। कैसे इनके बयानों पर यकीन होगा।

कोर्ट की राय : केवल पुलिस अनुसंधान में त्रुटि रह जाने के आधार पर किसी को बरी नहीं किया जा सकता। जहां तक सवाल खिड़की है या नहीं, पल्लेदार थी या जालीदार। तो यहां जब कोई गवाह इस तरह घटना देख रहा होता है तो उससे यह उम्मीद नहीं कर सकते कि खिड़की का हर पहलू वह बारीकी से देखे।

नतीजा : बचाव पक्ष का तर्क पहला दावा खारिज

कोर्ट बहस पार्ट 2 : क्या दो दिन बाद सीसीटीवी फुटेज जब्त हो तो उस पर विश्वास नहीं करें?

गवाहों का दावा : आजाद नगर की एक मस्जिद के सदर ने घटना का पता चलने के बाद उसी रात 23 सितंबर 2022 को फुटेज चेक किए। यहां आठ कैमरे थे। इसमें स्पष्ट रूप से आरोपी के खड़े होने, बच्ची को ले जाने का वीडियो कैद हुआ है। इसकी सूचना पुलिस को दी गई।

बचाव पक्ष का तर्कपुलिस कह रही है कि उसने 25 सितंबर को फुटेज जब्त किए। जब सदर ने 23 सितंबर को ही सूचना दी थी तो जब्ती 25 को क्यों दिखाई गई। यह सबूत भरोसा करने लायक नहीं है।

कोर्ट की राय : केवल 23 के बजाय 25 सितंबर को फुटेज जब्ती दिखाने से इस पर भरोसा न किया जाए, यह कैसे हो सकता है। वैसे भी जो घटना बताई गई है, फुटेज में उससे मिलता जुलता व्यक्ति दिख रहा है। यह महत्वपूर्ण साक्ष्य है।

नतीजा : सीसीटीवी पर विश्वास नहीं करने का तर्क खारिज किया गया।

कोर्ट बहस पार्ट 3 : गद्दे में छुपा दिया तो बाकी उंगलियों के निशान मिटना स्वाभाविक।

सरकारी गवाह : मौके से आरोपी सद्दाम से जो चाकू बरामद किया गया, उसके फिंगर प्रिंट पर तीन निशान मिले। तीनों का मिलान करने पर मात्र एक उंगली का निशान मैच हुआ है जो कोर्ट में पेश किया गया है। फिंगर प्रिंट एक्सपर्ट अनिल पाटीदार ने इसकी जानकारी कोर्ट को दी।

बचाव पक्ष का तर्क : एक्सपर्ट ने खुद माना है कि चाकू को सील बंद करने से पहले आरोपी को पकड़वाया गया तो इससे उंगली का निशान आ गया। वैसे भी सिर्फ एक उंगली का निशान आ जाने से आरोप सिद्ध नहीं हो जाता।

कोर्ट की राय : जिन्होंने फिंगर प्रिंट की जांच की है, वे स्वतंत्र साक्षी हैं, वे किसी को झूठा क्यों फंसाएंगे। दूसरा, यह कि चाकू की बरामदगी गद्दे के नीचे से हुई तो बाकी उंगलियों के निशान मिट जाने से इनकार भी नहीं किया जा सकता। फिंगर प्रिंट मिलान भी महत्वपूर्ण साक्ष्य है।

नतीजा : चाकू पर एक ही उंगली के निशान मिलने के आधार पर बचने का तर्क खारिज किया गया।

जब कोर्ट में गवाहों को झूठा बताकर ‘पागलपन’ का ढोंग शुरू कर दिया…

इसी बीच पुलिस ने कोर्ट में मृत बच्ची और आरोपी सद्दाम के DNA सैंपल मैच हो जाने की रिपोर्ट पेश कर दी। कोर्ट ने इस रिपोर्ट पर कहा कि यह मजबूत साक्ष्य है। इस पर अविश्वास करने का कोई कारण प्रकट नहीं होता है। एक्सपर्ट बताते हैं कि DNA रिपोर्ट मैच हो जाने के बाद तमाम गवाह होस्टाइल होने पर भी कई मामलों में सजा सुनाई गई है। इसे सबसे मजबूत वैज्ञानिक साक्ष्य माना जाता है। यहीं से खेल पलट गया और बहस की नई कहानी शुरू हो गई।

रिपोर्ट के आने के बाद बचाव करने वाले अचानक बैकफुट पर आ गए और उन्हें पता लग किया कि अब कोर्ट के सामने कोई तर्क नहीं चलने वाला। इसके बाद बचाव के लिए अचानक आरोपी सद्दाम को पागल साबित करने का ढोंग रचा गया।

इसके लिए पहले तो मां नूरबानो के बयान कराए गए। उन्होंने कहा कि बचपन से मेरा बेटा कम दिमाग का है। इसलिए उसे बाणगंगा अस्पताल में 11 महीने तक भर्ती रखा था। हुसैन टेकरी जावरा में भी झाड़-फूंक करवाई थी।

अस्पताल से खुली पागलपन की पहली पोल

कोर्ट ने इस संबंध में बाणगंगा अस्पताल से जवाब तलब कर लिया। अस्पताल की ओर से कहा गया कि 18 दिसंबर 2019 को सद्दाम को मंदबुद्धि पीड़ित होने से भर्ती किया था। 1 फरवरी 2021 को ठीक हो जाने पर उसे डिस्चार्ज कर दिया गया है।

कोर्ट ने इस बारे में सवाल पूछा तो बचाव पक्ष ने कह दिया कि यह अभी भी मानसिक रूप से ठीक नहीं है। इसके लिए इसका मेडिकल बोर्ड से चेकअप करवाया जाना चाहिए।

कोर्ट ने तुरंत हां करते हुए आदेश कर दिए। इसके बाद मेडिकल बोर्ड ने नाम, पते से लेकर शहर और देश-दुनिया, राजनीति के सवाल आरोपी सद्दाम से पूछने शुरू कर दिए। 30 से ज्यादा सवालों में अधिकतर की ठीक-ठीक जानकारी सद्दाम को थी।

जब मेडिकल बोर्ड को कोर्ट ने सीधे तलब कर लिया

आरोपी सद्दाम को पागल बताकर मेडिकल बोर्ड से जांच कराने की मांग करने वालों का दांव उलटा पड़ गया। सवालों के ठीक जवाब देने से मेडिकल बोर्ड ने उसे मानसिक रूप से ठीक बताया। अब बारी आई कि मेडिकल बोर्ड कोर्ट में आकर बयान दे तो केस आगे बढ़े।

अपने खिलाफ रिपोर्ट आते देख बचाव पक्ष ने मेडिकल बोर्ड के बयान ही नहीं करवाए। इंतजार के बाद कोर्ट को ही दखल देना पड़ा और डॉक्टर को आदेश दिए कि वे मेडिकल बोर्ड द्वारा तैयार रिपोर्ट पर अपना बयान दाखिल करें।

इस पर मेडिकल बोर्ड की डॉक्टर ने बयान दर्ज करा दिए कि 19 जनवरी 2023 को मेडिकल चेकअप किया गया, इसमें वह ठीक पाया गया है।

पागलपन का ढोंग उजागर होने के 15 दिन बाद सुना दी फांसी

जैसे ही कोर्ट में मेडिकल बोर्ड ने यह कह दिया कि यह पागल नहीं है तो कोर्ट ने सजा का दिन मुकर्रर कर दिया। पागलपन का ढोंग उजागर होने के महज 15 दिन बाद ही आरोपी को मौत की सजा सुना दी गई।

शरीर में 29 जगह चाकू मारे, सिर्फ सिर की हड्‌डी और गला छोड़ा

पुलिस की तकनीकी रिपोर्ट के अनुसार बच्ची को आरोपी सद्दाम ने 29 जगह चाकू से गोदा था। शरीर में ऐसा कोई हिस्सा नहीं बचा जहां उसने बच्ची पर चाकू से वार नहीं किया हो। मेडिकल परीक्षण के दौरान डॉक्टरों ने पाया कि बच्ची की सिर्फ सिर की हड्‌डी, मस्तिष्क, कंठ और श्वास नली स्वस्थ थी। पीएम रिपोर्ट के अनुसार छाती में 8, पेट में 2 बाएं हाथ में 5, दाएं हाथ में 7, बाएं घुटने में 1 चोट, दाएं पैर की जांघ में 2, बाएं पैर की एड़ी में 1 चोट मिली थी।

मां इकलौती गवाह थी जो आरोपी के बचाव में बोली

इस घटना में आरोपी के खिलाफ चश्मदीदों के अलावा तमाम वैज्ञानिक और प्रशासनिक, पुलिस अफसरों ने बयान दिए। आरोपी के बचाव में सिर्फ उसकी मां नूरबानो थी, जिसने आखिर वक्त तक बेटे को बचाने की कोशिश की। उसने इसके लिए उसे पागल तक साबित करने में सहयोग कर दिया, लेकिन हैवानियत की हद पार करने वाली इस वारदात में कोर्ट के सामने उनका झूठ पकड़ा गया।

सद्दाम के पिता की हो चुकी मौत, घर में मां और दो भाई

सद्दाम के पिता की काफी समय पहले मौत हो गई थी। मां काम पर जाती थी। वहीं दोनों भाई भी नौकरी करते हैं। सद्दाम इलाके में घूमता रहता था। उसके पास कोई काम नहीं था। पुलिस ने अपनी जांच में यह भी बताया था कि बच्ची के साथ गलत हरकत करने के चलते आरोपी उसे उठाकर ले गया था। आरोपी के बचाव में दोनों भाइयों ने भी कोई बयान कोर्ट में दर्ज नहीं कराया।

फैसले के पहले तक नहीं आई नींद…

बच्ची की ओर से पैरवी करने वाली विशेष लोक अभियोजक सुशीला राठौर ने कहा- इतनी छोटी बच्ची थी। जब पूरे केस की स्टडी की तो लगा कि बच्ची को न्याय मिलना चाहिए। 31 जनवरी को कोर्ट ने दोषी मान लिया तो सजा होने के दिन तक दिमाग में यही केस घूमता रहा। हमने फांसी मांगी थी पर क्या मिलेगा, यह सोचकर नींद भी नहीं आती थी।

छोटे से शरीर पर इतने प्रहार कितने असहनीय हुए होंगे : कोर्ट

विशेष न्यायाधीश सुरेखा मिश्रा ने फैसला सुनाते हुए लिखा- यह विचार करने का विषय है कि चाकू की एक छोटी सी चोट से शरीर को इतनी पीड़ा हो सकती है तो जो बच्ची विरोध करने में भी सक्षम नहीं थी, उसके छोटे से शरीर पर चाकू से इतने लगातार प्रहार कितने असहनीय, मर्मातक पीड़ा दायक हुए होंगे।

आधी उंगली का भी मिलान तो वह मान्य

फिंगर प्रिंट एक्सपर्ट अनिल पाटीदार का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि यदि फिंगर प्रिंट की 8 कैरेक्टरिस्टिक भी मिलान हो जाती तो वह प्रमाण मानी जाती है। यदि आधी उंगली भी मैच हो जाती है तो भी वह मान्य है। ऐसे कई मामलों में हुआ भी है।

2010 से अभी तक 8 को कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई

  • एमआईजी में आरोपी बिरजू एक साल के बच्चे को छीनकर ले गया था और उसने पिस्टल से उसकी हत्या कर दी थी। उसे 16 फरवरी 2010 को फांसी की सजा कोर्ट ने सुनाई।
  • एमआईजी इलाके में तिहरा हत्याकांड हुआ था। आरोपी नेहा, मनोज और राहुल ने घर में घुसकर 3 महिलाओं की हत्या कर दी थी। कोर्ट ने 13 दिसंबर 2013 को तीनों को फांसी की सजा सुनाई।
  • एमआईजी क्षेत्र में 3 साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म कर उसकी हत्या कर दी थी। आरोपी सन्नी उर्फ देवेंद्र और दो अन्य को कोर्ट ने 26 अप्रैल 2013 को फांसी की सजा सुनाई।
  • लसूड़िया में लड़की के साथ मारपीट और अप्राकृतिक कृत्य कर हत्या कर दी गई। कोर्ट ने 12 मार्च 2013 को आरोपी राजेश को फांसी और सह आरोपी बेबी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई।
  • राजेंद्र नगर में नौकर सुखलाल ने मालिक शरद और उनकी पत्नी ज्योति अग्रवाल की लूट के लिए जघन्य हत्या कर दी थी। कोर्ट ने 30 मई 2014 को सुखलाल को फांसी की सजा सुनाई।
  • थाना सराफा अंतर्गत आरोपी नवीन उर्फ अजय ने 4 माह की बच्ची के साथ दुष्कर्म कर हत्या की। कोर्ट ने 12 मई 2018 को फांसी की सजा सुनाई।
  • थाना द्वारकापुरी अंतर्गत आरोपी हनी अटवाल ने बच्ची की हत्या कर दी थी। कोर्ट ने 30 सितंबर 2019 को उसे फांसी की सजा सुनाई।
  • थाना महू अंतर्गत 4 साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म कर हत्या मामले में आरोपी अंकित विजयवर्गीय को कोर्ट ने 24 फरवरी 2020 को फांसी की सजा सुनाई।

इंदौर में 7 साल की मासूम की हत्या कर दी गई। बच्ची घर के बाहर खेल रही थी। तभी आरोपी युवक उसे उठाकर अपने घर के कमरे में ले गया। अंदर से मासूम के चिल्लाने और रोने की आवाज पर पड़ोसी पहुंचे। काफी देर बाद आरोपी ने दरवाजा खोला, जैसे ही वह बाहर आया उसके हाथ में खून से सना चाकू था।

लोगों ने पकड़कर उसकी पिटाई कर दी। इसके बाद पुलिस के हवाले कर दिया। घटना शुक्रवार सुबह 11 बजे आजाद नगर की है। मासूम के माता-पिता की मौत पहले ही हो चुकी है। वह अपने मामा के घर रह रही थी। परिजनों ने रेप की आशंका जताई है। नगर निगम के अमले ने शाम 4 बजे आरोपी युवक के घर को तोड़ दिया।

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