रामपुर के सर्राफा बाजार में प्रांजल अग्रवाल का घर है। पिछले 15 साल से परिवार ने करीब 20 गायें पाल रखी है। रोज इनसे बड़ी मात्रा में गोबर होता था। 2011 के पहले उन गोबरों का प्रयोग खेतों में खाद के रूप में होता था। 2011 के बाद प्रांजल ने उपले बनाकर बेचना शुरू किया। गोबर में बिना किसी मिलावट के उपले बनाते तो वह जब जलाया जाता तो उसमें धुआं नहीं निकलता था। इसका असर यह हुआ कि उनके उपलों की डिमांड बढ़ती चली गई। प्रांजल अग्रवाल पहले घर-घर जाकर गोबर के उपले बेचते थे। उनके उपलों से लोगों को शिकायत रहती कि ये आसानी से टूटते नहीं । यही शिकायत प्रांजल के लिए नया आइडिया लेकर आई। उन्होंने इसके बाद गोबर के तमाम आइटम बनाने शुरू किए। इंटरनेट के जरिए ब्रांडिंग की। नतीजा ये रहा कि आज वो करोड़पति हैं और करीब 20 लोगों को रोजगार दे रहे हैं।टीम यूपी इन्वेस्टर्स समिट में प्रांजल के स्टॉल पर पहुंची। वहां पर गोबर से बने आइटम देखे ।प्रांजल बताते हैं, “उपलों को लेकर / लोगों की पहली शिकायत आई कि आपके उपले बहुत मजबूत होते हैं। आसानी से टूटते नहीं। पहले तो लगा कि कुछ सुधार किया जाए क्योंकि पूरा-पूरा उपला सिर्फ अंतिम संस्कार में जलाया जाता है। बाकी सारे धार्मिक अनुष्ठान में उपला तोड़कर ही जलाया जाता है। लेकिन उपलों की मजबूती ने नया आइडिया दे दिया। वो आइडिया था कि गोबर से कुछ और बनाया जाए रामपुर के सर्राफा बाजार में प्रांजल अग्रवाल का घर है। पिछले 15 साल से परिवार ने करीब 20 गायें पाल रखी है। रोज इनसे बड़ी मात्रा में गोबर होता था। 2011 के पहले उन गोबरों का प्रयोग खेतों में खाद के रूप में होता था। 2011 के बाद प्रांजल ने उपले बनाकर बेचना शुरू किया। गोबर में बिना किसी मिलावट के उपले बनाते तो वह जब जलाया जाता तो उसमें धुआं नहीं निकलता था। असर यह हुआ कि उनके उपलों की डिमांड बढ़ती चली गई।