भूकंप के 128 घंटे बाद सुरक्षित निकला 2 महीने का लड़का कैसे ?

 

तुर्किये में भूकंप आने के बाद मलबे में दबे अब्दुल्लालीम मुआइनी और उनकी मृत पत्नी एसरा। इन्हें 24 घंटे के अंदर मलबे से निकाल लिया गया।
मलबे से निकाले जाने के बाद 8 साल के यिगिट का रिएक्शन। रेस्क्यू टीम ने भूकंप आने के करीब 52 घंटे बाद उसे सुरक्षित निकाला था।

तुर्किये और सीरिया में करीब 100 घंटे पहले शक्तिशाली भूकंप आया था। इसमें अब तक 19 हजार से ज्यादा लोगों की लाशें मिल चुकी हैं और अभी भी हजारों लोग लापता हैं। लापता लोग इमारतों के मलबे में दबे हैं। इन्हें बचाने के लिए टीमें दिन-रात काम कर रहीं हैं, लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा है, मलबे में दबे लोगों के जिंदा होने की उम्मीद भी कम होती जा रही है

आगे हम जानेगे कि भूकंप आने के बाद तक मलबे में फंसे लोग कितने दिन जिंदा रह सकते हैं?

यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में डिजास्टर और हेल्थ के प्रोफेसर इलान केलमेन के मुताबिक आम तौर पर भूकंप के बाद इमारतें ढह जाती हैं, जिसमें लोग दब जाते हैं। इस दौरान उन्हें चोट लगती है और यही मौत की मुख्य वजह होती है। लोगों की जान भले ही एकदम नहीं जाती, लेकिन समय पर इलाज न मिलने और बहुत ज्यादा खून बह जाने से मौत हो जाती है।

दूसरी बात जो लोगों की जिंदगी और मौत के बीच फर्क तय करती है, वह है हवा और पानी की उपलब्धता। अगर लोग गहरे मलबे में दबे हैं, जहां हवा पूरी तरीके से उपलब्ध नहीं है तो सांस घुटने से लोगों की जान चली जाती है।

इसके अलावा मौसम भी बहुत हद तक लोगों के बचे रहने के लिए जिम्मेदार हो सकता है। सीरिया और तुर्किये में राहत और बचाव कार्यों में मौसम बड़ी बाधा बना है। वहां इस वक्त भयानक सर्दी पड़ रही है। जिस रात भूकंप आया, उस रात भी कई जगह बर्फ गिरी थी और तापमान माइनस 6 डिग्री सेल्सियस था। साथ ही कई इलाकों में बारिश भी हो रही थी।

केलमेन कहते हैं कि यह बहुत दुख की बात है कि बर्फबारी की वजह से लोगों को हाइपोथर्मिया संभव है और शायद इसी वजह से उनकी मौत हो जा रही होगी।

पानी ना मिल पाने से भी लोगों की जान जा सकती है। जो लोग ठंड और कम चोट लगने के बाद बचे होते हैं उन्हें खाने और पानी की जरूरत होती है। पानी के बिना बहुत से लोग तीन से चार दिन तक जिंदा रह सकते हैं, लेकिन पांचवें दिन दम तोड़ सकते हैं।

कितने दिन तक मलबे में दबे लोग जिंदा रह सकते हैं?
अमेरिका के मैसाचुसेट्स जनरल हॉस्पिटल में इमरजेंसी और डिजास्टर मेडिसिन एक्सपर्ट डॉ. जेरोन ली कहते हैं कि आमतौर पर तो पांचवें से लेकर सातवें दिन के बाद मलबे के नीचे से किसी का जिंदा मिलना दुर्लभ ही होता है। इसलिए अधिकतर रेस्क्यू टीम उस वक्त तक मलबे में दबे लोगों की तलाश बंद कर देती हैं। हालांकि ऐसी बहुत सी कहानियां हैं जिनमें लोग सात दिन के बाद भी जिंदा मिले। देखा जाए तो ये बहुत ही दुर्लभ और कभी-कभार सुनाई देने वाली कहानियां होती हैं।

नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी फाइनबर्ग के मेडिकल स्कूल में इमरजेंसी मेडिसिन स्पेशलिस्ट डॉ. जॉर्ज शियांपास के मुताबिक लोगों के बचने की संभावना में सबसे बड़ा रोड़ा पत्थरों या कंक्रीट के नीचे कुचले जाने से लगीं चोटें और अंगों का कट जाना होता है। पहला घंटा गोल्डन ऑवर होता है। अगर आप उन्हें पहले घंटे में बाहर नहीं निकालते तो उनके बचने की संभावना बहुत कम होती है|

मलबे में किन लोगों के बचने की संभावना ज्यादा होती है?

सैन फ्रांसिस्को की कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में इमरजेंसी मेडिसिन एक्सपर्ट डॉ. क्रिस्टोफर कोलवेल के मुताबिक कई बार खबर आती है कि भूकंप आने के बाद लोगों को किसी चमत्कार की तरह बचा लिया गया और लोग बेहद भयानक परिस्थितियों में भी जिंदा रहे।

ऐसे लोग ज्यादातर युवा होते हैं और बहुत किस्मत वाले होते हैं कि किसी ऐसी जगह फंसे जहां उन्हें पानी या हवा जैसी चीजें मिलती रहती हैं।

2011 में जापान में भूकंप और सुनामी के बाद एक युवक और उसकी 80 साल की दादी अपने घर के मलबे से 9 दिन बाद जिंदा मिले थे। साल 2010 में हैती में भूकंप आया था। उस वक्त पोर्ट ओ प्रिंस में 16 साल की एक युवती 15 दिन बाद जिंदा मिली थी।

डॉ. शियांपास कहते हैं कि पीड़ित की मानसिक स्थिति भी बहुत कुछ तय करती है। वह बताते हैं कि जो लोग शवों के साथ फंसे हों और किसी से संपर्क में ना हों, उनके उम्मीद छोड़ देने की संभावना ज्यादा होती है। वह कहते हैं कि अगर आपके पास कोई है जो जिंदा है तो आप दोनों एक दूसरे का सहारा बन जाते हैं और संघर्ष करते रहते हैं।

भूकंप के बाद मलबे में फंसे लोगों का बचाव कैसे होता है?
किसी स्थान पर भूकंप के बाद बचाव के कई तरीके हैं, जिनसे मलबे में फंसे लोगों को ढूंढा जा सकता है। इसमें एक तरीका बचाव दल के साथ मौजूद कुत्ते के जरिए मलबे में फंसे लोगों को खोजना भी है।

प्रशिक्षित कुत्ते सबसे पहले मलबे को सूंघकर वहां फंसे लोगों के बारे में पता करते हैं। केलमेन के मुताबिक मैक्सिको के पास इस तरह के कुत्तों की एक टीम है जो किसी आपदा के बाद बचाव में अहम भूमिका निभाते हैं। ये डॉग स्क्वाड भी तुर्किये पहुंच गई है।

इसके अलावा भूकंप प्रभावित तंग गलियों और संकरी जगह में फंसे लोगों के बारे में पता करने के लिए रोबोट और ड्रोन का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। जैसे ही मलबे में फंसे इंसान के बारे में पता चलता है तो बचावकर्मी तुरंत उसे वहां से सुरक्षित बाहर निकालने की प्रोसेस में लग जाते हैं।

सबसे पहले इमारत के मलबे को क्रेन और ड्रिलर के जरिए हटाया जाता है। इसके बाद इंसान निकाला जाता है। कई बार मलबे में दबे इंसान के अंग तक काटने की जरूरत होती है, जिससे उसकी जान बचाई जा सके।

भूकंप आने से पहले शुरू होना चाहिए रेस्क्यू ऑपरेशन
ये हेडिंग पढ़कर आप भी सोच में पड़ गए होंगे कि भूकंप आने से पहले रेस्क्यू ऑपरेशन कैसे शुरू हो सकता है। केलमेन के मुताबिक भूकंप से बचाव के लिए रेस्क्यू ऑपरेशन दशकों पहले शुरू होता है। इसके लिए भवन या इमारत को गिरने से रोकने के लिए उसे भूकंपरोधी बनाने की कोशिश की जाती है।

तुर्किये और सीरिया में आए भूकंप के बाद एक शख्स के जीवन को बचाने के लिए औसत 8.26 करोड़ रुपए का खर्च आ रहा है। केलमेन का मानना है कि भूकंप के बाद बचाव के लिए इन देशों में जितनी तेजी से पैसा खर्च हो रहा है, उतना पैसा आपदा को रोकने के लिए खर्च होता तो शायद आज ये स्थिति देखने को नहीं मिलती।

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