तुर्किये में भूकंप की सटीक भविष्यवाणी करने वाले रिसर्चर बोले:भारत में भी आने वाला है शक्तिशाली भूकंप; जानिए इस दावे में कितना दम?
4 फरवरी 2023 को नीदरलैंड के रिसर्चर फ्रेंक होगरबीट्स ने एक ट्वीट किया- ‘आज नहीं तो कल, जल्द ही तुर्किये, जॉर्डन, सीरिया और लेबनान क्षेत्र में 7.5 तीव्रता का भूकंप आएगा।’
इससे ठीक 2 दिन बाद 6 फरवरी को सुबह 4 बजे तुर्किये और सीरिया में 7.8 तीव्रता का शक्तिशाली भूकंप आया। इस भूकंप से अब तक 21 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। घायलों की संख्या 64 हजार के करीब हो गई है।
तुर्की के भूकंप की भविष्यवाणी करने वाले रिसर्चर फ्रेंक होगरबीट्स ने अब भारत को लेकर भी ऐसा ही दावा किया है। एक वीडियो में फ्रेंक कहते हैं, ‘आने वाले कुछ दिनों में एशिया के अलग-अलग भागों में जमीन के भीतर हलचल की संभावना है। ये हलचल पाकिस्तान और अफगानिस्तान से होते हुए हिंद महासागर के पश्चिमी तरफ हो सकती है। भारत इनके बीच में होगा। वहीं चीन में भी आने वाले कुछ दिनों में भूकंप आ सकता है।’
हालांकि, अपनी भविष्यवाणी में फ्रेंक ने न भूकंप की तीव्रता बताई है और न ही तारीख।
डच रिसर्चर किस आधार पर ये दावे कर रहे हैं?
फ्रैंक जिस संस्था में काम करते हैं वो दावा करती है कि सौर्य मंडल और मौसम की गणना के आधार पर भूकंप का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। इनका मानना है कि 6 तीव्रता से ऊपर वाले भूकंप सौर मंडल की विशिष्ट स्थिति के कारण आते हैं। वेबसाइट पर लिखा है जब सौर मंडल में मौजूद ग्रह और चंद्रमा किसी खास पोजिशन में पहुंच जाते हैं तो इस श्रेणी के भूकंप अधिक आते हैं। उन्होंने बीते सालों में आए कई भूकंपों पर अपने पूर्वानुमान का जिक्र किया है।
भूकंप का पूर्वानुमान लगाने वाले पैमाने सटीक नहीं हैं। उनकी वेबसाइट के पहले पन्ने पर ही तर्क है कि मौसम का पूर्वानुमान लगाने वाले साइंटिस्ट साफ मौसम में भी 40% बारिश का अनुमान बता देते हैं, ऐसे में उनकी बात में कितनी विश्वसनीयता है?
क्या भूकंप का ग्रहों के चाल से कोई सीधा सबंध है?
क्या भूकंप की भविष्यवाणी की जा सकती है?
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम यानी WEF का कहना है कि साइंटिस्ट भूकंप के झटके, ऐतिहासिक डेटा और क्षेत्र के ज्योग्राफिकल मेकअप की निगरानी करते हैं। इससे मिलने वाली जानकारी काफी उपयोगी होती है, लेकिन पूर्व अनुमान लगाना अभी भी दूर की कौड़ी है।
WEF की एक रिपोर्ट कहती है कि रेडॉन गैस पृथ्वी की दरारों से लगातार निकलती रहती है। कुछ अवसरों पर रेडॉन गैस के उत्सर्जन में स्पाइक्स यानी बढ़ोतरी को भूकंप की वजह के रूप में देखा गया है। हालांकि कुछ वैज्ञानिकों को संदेह है कि दोनों सीधे तौर पर एक दूसरे से जुड़े हैं।
लगभग 90% भूकंप का केंद्र पानी के नीचे होता हैं इसलिए इनकी भविष्यवाणी करने में सक्षम होने से बड़े पैमाने पर तबाही से बचा जा सकता है। वहीं कई थ्योरी में कहा गया है कि जानवर भूकंप के झटके महसूस कर सकते हैं, लेकिन यह पता नहीं है कि जानवर क्या महसूस करते हैं या डरते हैं।
साल 1879 में बने अमेरिका के यू.एस. जियोलॉजिकल सर्वे नाम की संस्था का मानना है कि भूकंप की भविष्यवाणी संभव नहीं है। संस्था की वेबसाइट पर लिखा है, ‘ना तो हम (U.S.G.S.) और ना ही किसी अन्य वैज्ञानिक ने बड़े भूकंप की भविष्यवाणी की है। आने वाले कुछ सालों में ऐसा होने की उम्मीद भी नहीं है।’
संस्था का मानना है कि केवल उस संभावना की गणना की जा सकती है कि आने वाले कुछ सालों में एक निश्चित क्षेत्र में भूकंप आएगा।
भूकंप आने को पूर्वानुमान को वैलिड माना जाए, इसके लिए तीन चीजों का सटीक मालूम होना जरूरी है। पहला, समय और तारीख। दूसरा लोकेशन और तीसरा तीव्रता। नीदरलैंड के रिसर्चर फ्रेंक होगरबीट्स के पास फिलहाल तीनों फैक्टर्स की सटीक जानकारी नहीं है।
पिछले 50 सालों से साइंटिस्ट ने कई तरीकों को उपयोग कर भूकंप की भविष्यवाणी करने की कोशिश की है, लेकिन बहुत कम सफलता मिली है…
- 1970 और 1980 के दशक में रिसर्चर्स ने जानवरों के व्यवहार, रेडॉन गैस के उत्सर्जन और इलेक्ट्रो मैग्नेटिक सिग्नल्स को भूकंप आने के संकेत के रूप में पहचान की। डेविस में कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में फिजिक्स और जियोलॉजी के प्रोफेसर जॉन रुंडल कहते हैं कि कई बार रिजल्ट में एक पैटर्न दिखता है, लेकिन यह वैज्ञानिक रूप से सटीक नहीं माना जा सकता।
- 1980 के दशक में भूकंप वैज्ञानिकों ने कहा कि कैलिफोर्निया के पार्कफील्ड के पास सैन एंड्रियास फॉल्ट का एक सेगमेंट होने से यह भूकंप प्रभावित क्षेत्र हो सकता है। इसके बाद भूकंप की भविष्यवाणी करने के लिए ऐतिहासिक डेटा के लिए रीम्स का विश्लेषण किया। उन्होंने भविष्यवाणी की क्षेत्र में साल 1993 तक भूकंप आएगा, लेकिन 2004 तक ऐसा कुछ नहीं हुआ। वहीं 2004 के दौरान मध्य कैलिफोर्निया में यह बिना किसी चेतावनी के आया।
- जैसे-जैसे नई टेक्नोलॉजी आई, भूकंप के लिए अर्ली वार्निंग सिस्टम बना। ये नेटवर्क भूकंप झटके का पता लगाने और उनका विश्लेषण करने के लिए सिस्मोलॉजी मशीनों का उपयोग करते हैं। साथ ही ऐसे सिस्टम में प्लग इन करते हैं जो भूकंप आने से कुछ सेकेंड पहले लोगों को सूचनाएं भेजता है। ऐसा ही एक सिस्टम है-शेकअलर्ट ShakeAlert। इसे USGS ने बनाया है। यह भूकंप आने से 20 सेकेंड या 1 मिनट पहले इसे फोन पर भेजता है।
- रिसर्चर अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल कर रहे हैं। यह बड़ी मात्रा में डेटा और स्पॉट पैटर्न की आसानी से पहचान कर सकता है। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि सॉफ्टवेयर इंसानों की तुलना में अधिक डेटा का तेजी से विश्लेषण कर सकता है। इससे भविष्य में जल्दी और सटीक भूकंप की भविष्यवाणी करने में मदद मिलेगी।
भूकंप आने का सटीक पूर्वानुमान अब तक 10 सेकेंड पहले लग सका है। ग्रहों की चाल और ज्योतिष के सहारे सटीक भविष्यवाणी का भी दावा किया जाता रहा है, लेकिन इसका कोई ठोस वैज्ञानिक जवाब नहीं मिल सका है। हमने इसका जवाब जानने के लिए कुछ प्रोफेसर्स से बात की।