निर्भया रेप केस के अपराधियों में से एक मुकेश सिंह ने कुछ साल पहले BBC को दिए इंटरव्यू में कहा था, “रेप के लिए लड़कियां खुद जिम्मेदार होती हैं। इसमें दोष उन लड़कियों का ही है, जो देर रात घर से बाहर निकलती हैं।”
ये बोलते हुए उसके चेहरे पर जरा भी शिकन और अपराध बोध नहीं था। उसकी आंखें, चेहरा और पूरी बॉडी, जिस भरोसे के साथ यह बोल रही थी, उसे देखकर कोई भी यह समझ सकता था कि वह यह बात अपने बचाव में नहीं कह रहा था। वो इस बात पर यकीन करता था। वो मानता था कि बलात्कार के लिए लड़की ही जिम्मेदार होती है।
ऐसा ही एक हादसा चंद रोज पहले पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में हुआ। पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद। मुल्क कितना भी गरीब और बदहाली में क्यों न हो, राजधानी समृद्ध और चमकीली है। उस अमीर राजधानी का सबसे समृद्ध और पॉश इलाका है फातिमा जिन्ना पार्क, जिसे कैपिटल पार्क या F-9 पार्क के नाम से भी जाना जाता है।
तकरीबन साढ़े सात सौ एकड़ में फैला यह पार्क शहर की सबसे चहल-पहल वाली जगह है। चारों तरफ दुकानें, रेस्त्रां। कुल मिलाकर कोई सुनसान जंगल नहीं, बल्कि एक भीड़-भाड़ भरी जगह है।
इसी पार्क में 2 फरवरी की शाम 24 साल की लड़की अपने पुरुष साथी के साथ घूम रही थी। पार्क के एक सुनसान हिस्से में दोनों को अकेला पाकर दो आदमियों ने उन्हें रोका। इससे पहले कि वो कुछ समझते, उन्होंने बंदूक निकाल ली।
बंदूक की नोक पर वो आदमी उस लड़की को पार्क के एक सुनसान हिस्से में ले गए। ये जानकर कि साथ का लड़का उस लड़की का शौहर नहीं है, उन्होंने लड़की को मारा और उसके लड़के को भी।
फिर बंदूक की नोक पर ही उन्होंने लड़की के साथ रेप किया। इतना ही नहीं, सब कांड कर चुकने के बाद उन्होंने लड़की को हजार रुपए दिए, मानो कीमत अदा कर रहे हों और जाते-जाते कहा, “सूरज डूबने के बाद पार्क में मत घूमा करो।
अभी हम यहां भारत, पाकिस्तान और दुनिया भर के मुल्कों के रेप के आंकड़ों पर बात नहीं करेंगे। धरती पर जब से जीवन है, तब से मर्द, औरतों को उनकी मर्जी के खिलाफ बलपूर्वक हथियाते रहे हैं। स्त्रियों की देह के साथ हिंसा कोई नई-अनजानी बात नहीं। रोज का अखबार ऐसी अनगिनत खबरों से भरा पड़ा है।
यूएन वुमन का डेटा कहता है कि पूरी दुनिया में हर चौथे मिनट किसी ना किसी लड़की के साथ रेप और हिंसा की घटना हो रही है। इतनी देर में तो धरती भी अपनी जगह से दो कदम नहीं सरकती, जितनी देर में लड़कियों का रेप हो जाता है।
मर्द, औरतों का बलात्कार करते रहे हैं, लेकिन दुनिया के हर देश के कानून में उसे अपराध बताने वाली धाराएं बमुश्किल डेढ़ सौ साल पुरानी हैं। पहले रेप होता था, लेकिन वो अपराध नहीं था। बस हो जाता था। अब इस अपराध की सजा आजीवन कारावास से लेकर फांसी तक कुछ भी हो सकती है।
वक्त के साथ कानून इसे लेकर सख्त से सख्त होते गए हैं, लेकिन क्या कानून का तमंचा रेप को होने से रोक पाया। आंकड़े कहते हैं कि भारत में भी दिसंबर 2012 के बाद रेप की घटनाओं का ग्राफ लगातार ऊपर ही बढ़ा है, नीचे नहीं आया।
इस्लामाबाद की यह घटना आज दुनिया भर के मीडिया की सुर्खियां हैं, क्योंकि यह देश की राजधानी के सबसे पॉश इलाके में घटी है, किसी सुदूर प्रांत के गांव में नहीं। विक्टिम एक अपर क्लास लड़की है, मुख्तारन माई जैसी कोई गुमनाम बंजारन नहीं।
जैसी बहसें 10 साल पहले भारत को लेकर हो रही थीं, आज वही आंकड़ों और कहानियों का खेल पड़ोसी देश को लेकर चल रहा है। पाकिस्तान लड़कियों के लिए नरक है, वहां हर दो घंटे में एक लड़की के साथ रेप होता है। हालांकि ऐसा करते हुए अपने देश के आंकड़ों को चुपके से निगल जाते हैं। उसके बारे में बात नहीं करते।
आंकड़ों की बात करेंगे तो पश्चिम के देशों में और अमेरिका में रेप के आंकड़े दक्षिण एशियाई देशों के मुकाबले कई गुना ज्यादा हैं। इसलिए माफ करिए, आंकड़ों का यह लुभावना खेल कहीं और जाकर खेलिए। इस खेल में उलझाकर आप असली सवाल से मुंह मोड़ रहे हैं।
असली सवाल तो ये है कि रेप आखिर होता क्यों है? किसी लड़की को अकेला पाकर पुरुष क्यों इतना वहशी हो जाता है? क्यों औरत की मर्जी के खिलाफ उसे बलपूर्वक हथियाना चाहता है?
ऐसा इसलिए होता है क्योंकि पूरा समाज, उसकी संस्कृति ऐसा होने की इजाजत देती है। मुकेश सिंह ने उस इंटरव्यू में जो कहा था, इस्लामाबाद के उस पार्क में बलात्कारियों ने लड़की को जो हिदायत दी थी, वो कोई अनोखी अपवाद बात नहीं है।
हमारे-आपके घरवाले भी यही सोचते हैं। हमारे दफ्तर में साथ काम करने वाले मिडिल क्लास सज्जन पुरुष भी बोलें भले न, लेकिन अपने मन में ऐसी ही सोच रखते हैं। हमारे नेता बयान देते हैं कि “लड़के हैं, लड़कों से गलती हो जाती है।”
हमारे महान गणमान्य लोग रेप और छेड़खानी के सवाल पर हिदायतों का पोथा लड़की के सामने खोलकर रख देते हैं। औरत अपराधी हो तो उसकी योनि में उंगली डालकर पहले ये चेक करते हैं कि वो वर्जिन है या नहीं।
भरे मंच से अपने साथ की अविवाहित महिला नेता को ललकार सवाल पूछते हैं, “मैडम, पहले ये बताइए कि आप वर्जिन हैं या नहीं।” सार्वजनिक रूप से बयान देते हैं कि “सीता लक्ष्मण रेखा लांघेगी तो रावण उठा ले जाएगा।”
तो जनाब इसीलिए होते हैं, रेप क्योंकि सारी लक्ष्मण रेखाएं औरतों के लिए हैं और मर्द के लिए कोई रेखा नहीं। समाज की सारी आचार संहिताएं औरत को रेप से बचने के सबक सिखाने के बारे में हैं। एक भी मर्द को ये सिखाने के बारे में नहीं कि रेप नहीं करना चाहिए।
मर्द के पास इतनी आजादी, इतनी छूट, इतना पावर और इतनी बेलगाम ताकत है कि वो कुछ भी कर सकता है। ताकत सब सवालों के परे है।
रेप इसलिए नहीं होते, क्योंकि मर्दों का हॉर्मोन औरतों से अलग है। मर्दों की इच्छाएं और जरूरतें औरतों से अलग हैं। मर्दों की मांशपेशियों में औरतों से ज्यादा बल है। रेप इसलिए भी नहीं होते कि मर्दों के डीएनए में ही कुछ प्रॉब्लम है।
ये सारे तर्क और सफाइयां बलात्कार को, बलात्कार की संस्कृति को बनाने और मजबूत करने वाले तर्क हैं। इसीलिए होते हैं बलात्कार, क्योंकि समाज ने वो हवा, पानी, खाद, मिट्टी मर्दों को थाली में सजाकर दिया है, जिसमें इस दुराचार का पेड़ फल-फूल सके।
ये ताकत उन्हें ये दुनिया देती है। समाज देता है। परिवार देता है। लड़कियों को संदूक में बंद करके और लड़कों को सड़कों पर खुला छोड़कर ये अधिकार और ताकत समाज देता है।
ये दुनिया का इकलौता ऐसा अपराध है, जिसके बाद अपराधी की इज्जत पर आंच नहीं आती। आंच आती है उस निरीह इंसान पर, जिसके साथ अपराध हुआ है। इसलिए जनाब, दूसरे पर सवाल मत करिए। खुद से सवाल पूछिए। चोर की दाढ़ी में तिनका कहां छिपा है?
फर्ज करिए कि आप पुरुष हैं और किसी नौकरी का इंटरव्यू देने गए हैं। क्या जॉब से जुड़ी जरूरी क्वालिफिकेशंस के साथ आपको ये बताया जाता है कि इस नौकरी के लिए किस तरह के कपड़े पहनने होंगे, कैसे जूते पहनने होंगे, किस तरह अपने बाल सजाने होंगे और चेहरे पर क्या-क्या मेकअप लगाना होगा। क्या-क्या करना होगा के साथ-साथ एक लंबी लिस्ट उन कामों की, जो आप नहीं कर सकते।