मदरसा अध्यापकों को 72 महीने से नहीं मिल रही है सैलरी

 

अमेठी में आधुनिक मदरसों में गणित-विज्ञान और अंग्रेजी पढ़ाने वाले अध्यापकों को पिछले 72 महीने से सैलरी नहीं मिली है। उन्हें हर महीने 3 हजार रुपए मिल रहे हैं। जबकि 15 हजार रुपए मिलने चाहिए। अपनी सैलरी के लिए वह केंद्र और राज्य सरकार के मंत्रियों से कई बार मिल चुके हैं। हर बार आश्वासन मिला, लेकिन हक अब तक नहीं मिल सका।

शिक्षक अपनी मांगों को लेकर लखनऊ के ईको गार्डेन में धरना देने पहुंचे। न्यूज़ वाणी की टीम उनके बीच पहुंची। उनसे बात की। उनकी मांगों को जाना। सरकार से मिल रहे आश्वासनों को सुना। साथ ही यह समझने की कोशिश की कि आखिर पेंच कहां फंसा है।

जरूरत 165 करोड़ की, लेकिन बजट में सिर्फ 10 करोड़
अमेठी से आंदोलन में शामिल होने आए मदरसा टीचर अभिषेक पांडेय ने कहा, “हमारे यहां की सांसद स्मृति ईरानी से हम लोग अपनी मांग को लेकर 7 बार मिल चुके हैं। पिछली बार मिला तो उन्होंने कहा, ये योजना बंद हो गई है आप लोग अब दूसरा कुछ देखिए।” इतना कहने के बाद अभिषेक कहते हैं कि आखिर हम लोग कहां जाएं? प्रदेश में हमारी तरह 21,546 शिक्षक हैं। इनकी सैलरी के लिए हर साल 165 करोड़ रुपए का बजट चाहिए। लेकिन केंद्र सरकार ने इस बार सिर्फ 10 करोड़ दिए हैं।

फुटबाल बनकर रह गई है हमारी मांग
मदरसा यूनियन की एकता टीम के सलाहकार मेराज अंसारी कहते हैं, हमारी मांग को फुटबाल की तरह बना दिया गया है। केंद्र सरकार कहती है कि यूपी से डिमांड नहीं आई है और राज्य सरकार कहती है कि वहां से डिमांड नहीं आई है। हमें इस वक्त मात्र 3 हजार रुपए मिलते हैं। सरकार पर हमारा बकाया 9 लाख रुपए से ज्यादा हो गया है।

तीन बेटियां हैं परिवार कैसे चलाएं
सीतापुर की मेहनूर फातिमा आंदोलन में शामिल होने आई हैं। वह कहती हैं, 2016 से हमें महीने की सैलरी मात्र 3 हजार रुपए मिलती है। हमारी तीन बेटियां हैं, हम खुद पढ़े तो अब उनको पढ़ाएंगे ही पढ़ाएंगे, लेकिन इतने कम पैसे में हम कैसे पढ़ाएंगे? मेहनूर इसके अतिरिक्त बताती हैं कि हमारा नाम 1539 उन मदरसों की लिस्ट में है। जिस पर सरकार ने पैसा देने से रोक लगा रखी है। लेकिन हमसे बच्चों को पढ़वाया जा रहा। लगातार जांच होती है। ऊपर से जब सैलरी के लिए फाइल लगाइए तब घूस अलग से देना पड़ता है।

लोग ताने मारते हैं कि कैसी शिक्षक हो
गोंडा जिले से आंदोलन में शामिल होने सुलोचना देवी आई हैं। वह कहती हैं कि अगर हमारे साथ यही सब करना था तो इस स्कीम को नहीं लागू करते। हम लोगों को मदरसे में ड्यूटी नहीं लगाते। अगर बंद ही करना है स्कीम तो हमारा 78 महीने की सैलरी देकर योजना को बंद कर दें। करीब 9 लाख रुपए बकाया हो चुका है। अब लोग ताने मारते हैं कि कैसी टीचर हो, क्या मतलब है टीचर रहने का। न पैसा मिलता है न इज्जत।

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