गोबर से गुलाल बनाने के लिए गांव की सभी महिलाओं को गोबर के प्रॉडक्ट बनाने की दी ट्रेनिंग

 

 

होली बिना रंगों के कैसे रंगीन हो सकती है। एक तरफ बाजार में सिंथेटिक या केमिकल कलर्स और गुलाल से सेहत पर असर पड़ रहा है, वहीं शहर के लोग नेचुरल रंगों की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। केमिकल रंगों से लोगों को बचाने के लिए जयपुर का एक गांव पूरी तरह से जुटा हुआ है। ये लोग गोबर से गुलाल यानी गोयम गुलाल बना रहे हैं। इस काम में 64 परिवारों की महिलाएं जुटी हुई हैं। ये महिलाएं पहले बकरियां और गाय चराती थीं। खेती का काम करती थीं। अब परिवार का लोन चुका रही हैं। इलाज का खर्जा उठा रही हैं।

दरअसल, जयपुर में रहने वाले गउ सार एनजीओ के संचालक संजय छाबड़ा इस पहल को आगे बढ़ाने में जुटे हुए हैं। संजय ने बताया कि यह गुलाल पूरी तरह ऑर्गेनिक होने के साथ ही हेल्थ के लिए 100 प्रतिशत सुरक्षित है।

संजय के मुताबिक इसमें खुशबू के लिए भी बिल्कुल प्राकृतिक तरीका अपनाया गया है, जिसमें फूलों की सुगंध मिलाई गई है। हालांकि गोबर की दुर्गंध को हटाने के लिए सबसे पहले इसे धूप में सुखाया जाता है। इसके बाद गुलाल बनाने के लिए इसका इस्तेमाल होता है।

फ्री में करवा रहे उपलब्ध
इस पहल को जयपुर के पास केशवपुरा गांव के 64 परिवार आकार दे रहे हैं। यह परिवार गुलाल बनाने के प्रोसेस में जुटा रहता है। गुलाल बनने के बाद इसका नि:शुल्क वितरण भी किया जाता है। अगले साल इस प्रोडक्ट को मार्केट में उतारेंगे, जो अन्य हर्बल गुलाल की रेंज में लोगों के लिए उपलब्ध रहेगा।

संजय ने बताया कि दूध देने में असमर्थ होने पर अक्सर पशुपालक गायों को बेसहारा छोड़ देते हैं। यदि गोमय उत्पाद की डिमांड बढ़ेगी तो इनके गोमूत्र और गोबर की महत्ता से ही इनका संरक्षण होने लगेगा। यह रोजगार का भी बेहतरीन जरिया है। चाकसू तहसील केशवपुरा में यह गुलाल बनाने वाले 64 परिवारों को भी आर्थिक संबल मिल सकेगा।

गांव में गोबर से गुलाल के अलावा भी कई तरह के उत्पाद बनाए जा रहे हैं। इनमें अलग-अलग तरह की मूर्तियां, टाइल्स, घड़ी, नेम प्लेट, की-रिंग और राखी जैसे प्रोडक्ट शामिल हैं।

गांव में गोबर से गुलाल के अलावा भी कई तरह के उत्पाद बनाए जा रहे हैं। इनमें अलग-अलग तरह की मूर्तियां, टाइल्स, घड़ी, नेम प्लेट, की-रिंग और राखी जैसे प्रोडक्ट शामिल हैं।

गोबर की राखी, टाइल्स और घड़ी तक बना चुके
गुलाल बनाने से पहले गोबर से राखी, मूर्तियां, टाइल्स, घड़ी, नेम प्लेट भी तैयार की गई हैं। इस बार राखी के त्योहार के लिए गोबर की बनी राखी काफी लोकप्रिय हुई थी। गांव की महिलाएं मिलकर गोबर से राखियों का निर्माण करती है। इसमें गोबर के साथ गौमूत्र और हल्दी का मिश्रण तैयार किया जाता है।

गोबर की राखी पर्यावरण के लिए भी बेहतर है। गाय के गोबर के साथ हल्दी एक एंटीबायोटिक के रूप में इसमें डालते हैं, ताकि गोबर और हल्दी वाली राखी स्वस्थ रखे। इसे मौली के धागे में तैयार किया जाता है। अब तक जितने भी प्रोडक्ट बने हुए, उसके लिए गांव वालों को 20 लाख रुपए का भुगतान किया हुआ है। गुलाल बनाने के लिए अब तक 5 लाख रुपए महिलाओं को आमदनी हो चुकी है।

गोबर के प्रोडक्ट से हुई कमाई से गांव की हालत सुधरी
गोबर से गुलाल बनाने के लिए गऊ सार एनजीओ की ट्रेनर पारुल हल्दिया ने गांव की सभी महिलाओं को गोबर के प्रॉडक्ट बनाने की ट्रेनिंग दी है।

इस गांव में रहने वाली प्रियंका सैनी ने कहा- इस काम से मैंने अपनी मां के ऑपरेशन का खर्चा वहन किया, जो गऊसार के माध्यम से होली और दीपावली पर काम करके संभव हो सका।

ममता देवी ने बताया- मैंने यहां से हुई इनकम से अपने बच्चों के लिए ड्रेस व किताबें खरीद पाई। साथ ही अपने पति के छोटे से व्यापार में भी सहयोग किया।

चार बेटिया की मां सुनीता देवी ने कहा- मेहनत कर पैसा कमाया, जिससे उनकी बेटियों की पढ़ाई और घरेलू खर्चे आसानी से चल रहा है।

छोटी देवी ने बताया- इनके पास बकरी पालन के अलावा आय का अन्य कोई साधान नही था। उन्होंने इस कार्य से कमाई धनराशि को अपने परिवार में खर्च किया। अपना कर्ज भी चुकाया।

60 वर्षीय पपीता देवी ने कहा- वो इस उम्र में भी अपना खर्च बकरी पालन से चलाती थी, लेकिन अब गोमय आइटम बनाने से प्राप्त इनकम से उन्हें अतिरिक्त आय हो रही है, जो उन्हें एक अलग खुशी दे रही है।

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