आलू के सर्वाधिक पैदावार वाले जिलों मे किसान बोले 650 रुपए क्विंटल से तो लागत भी नहीं निकलेगी और…

 

यूपी में अब आलू की फसल को लेकर सियासत तेज हो गई है। सरकार ने 650 रुपए प्रति क्विंटल आलू का समर्थन मूल्य तय किया है। इस न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर समाजवादी पार्टी ने मोर्चा खोल दिया है। सपा मुखिया अखिलेश यादव ने ट्वीट किया- आलू की लागत लगातार बढ़ रही है। कम दाम मिलने से लागत निकालना मुश्किल हो रहा है। एमएसपी की मांग को भाजपा सरकार ने ठुकरा दिया है। अबकी बार, आलू बदलेगा सरकार। अखिलेश के ट्वीट के बाद सपा के राष्ट्रीय महासचिव शिवपाल यादव और किसान नेता राकेश टिकैत ने भी सरकारी रेट पर सवाल उठाए।

 

किसान कम दाम में आलू बेचने को हो रहे मजबूर
आलू पर हो रही सियासत के बीच यूपी की सबसे बड़ी आलू पैदावार की बेल्ट कहे जाने वाले फर्रुखाबाद और कन्नौज जिलों में पहुंची। हमें कई किसान खेतों में आलू की खुदाई करते मिले तो कई उसे लोड कर मंडी और कोल्ड स्टोर पहुंचाते दिखे। हमने उनसे आलू की फसल की लागत और पैदावार की हकीकत जानी। साथ ही सरकार की तरफ से घोषित 650 रुपए प्रति क्विंटल के रेट को लेकर उनका नजरिया जाना।

किसान, कोल्ड स्टोर और आढ़तियों से बातचीत में पता चला कि आलू पैदावार की सबसे बड़ी बेल्ट में 80 प्रतिशत कोल्ड स्टोर फुल हो चुके हैं। मंडियों में आलू की आवक ज्यादा है। ऐसे में किसान कम दाम में भी आलू बेचने को मजबूर हैं।

सबसे पहले हमारी मुलाकात फर्रुखाबाद के गांव निजामुद्दीनपुर निवासी सूरज सहाय से होती है। उनके खेत में रविवार को आलू निकालने के बाद ट्रॉली में भरा जा रहा था। सूरज ने बताया, “एक बीघे में आलू का बीज, DAP और यूरिया खाद सहित सल्फर, कीड़ों से बचाने की दवा व मजदूरी लगाकर 10 हजार रुपए लागत आती है। आलू की फसल तैयार होने पर एक बीघे में 40 बोरी आलू निकलता है। एक बोरी में 50 किलो आलू आता है।

इस समय आलू 200 से 250 रुपए प्रति बोरी बिक रहा है। इस रेट से तो लागत भी नहीं निकल रही है, मेहनत तो दूर की बात है। दो हजार रुपए प्रति बीघा के हिसाब से नुकसान हो रहा है। सरकार ने जो रेट निर्धारित किया है उससे कोई फायदा नहीं होगा।

कम से कम सरकार को 800 रुपए प्रति क्विंटल आलू खरीदना चाहिए। यदि यहां हम औने-पौने दाम में आलू न बेचें तो कोल्ड स्टोर में लंबी-लंबी कतारें हैं। कई बार वह आलू रखने से ही मना कर देते हैं। ऐसे में बहुत परेशानी होती है।”

वहीं, गांव हमीरपुर काजी निवासी राम औतार बताते हैं, “एक बीघा में मेरी करीब 9 हजार रुपए की लागत आई है। 1600 रुपए की DAP की बोरी इसके बाद यूरिया, आलू को गाड़ने, खुदाई और सिंचाई में भी पैसा लगा है। सरकार ने जो रेट निर्धारित किया है वो कम है। कम से कम 700 से 800 रुपए प्रति क्विंटल के रेट से सरकार को खरीदना चाहिए। यदि ऐसा हो जाएगा तो किसान बड़े नुकसान में नहीं रहेगा।

गांव पट्टी मदारी निवासी राम सनेही कहते हैं, “आलू का हाल बहुत बुरा है। लागत नहीं निकल रही है। दस बीघा में आलू की फसल लगाई थी, लेकिन बर्बाद हो गया। पत्नी व बच्चों की मेहनत बेकार हो गई। कुछ नहीं मिल रहा है। जरा भी आलू छोटा है तो मंडी में 200 रुपए प्रति पैकेट से ज्यादा कोई नहीं दे रहा। इतने में लागत भी नहीं निकल रही है। सरकार को आलू 900 रुपए प्रति ‌क्विंटल के रेट से खरीदना चाहिए।”

किसानों से बातचीत के बाद हम आगे बढ़े तो हमें आलू के ढेर लगे मिले। किसान बोले कि आलू सस्ता है, कोल्ड स्टोरेज में जगह नहीं है, इसलिए आलू को मिट्टी में दबा दिया है। थोड़ा और आगे बढ़े तो एक किसान ने पयाल से आलू काे ढक रखा था। उनका कहना था कि आलू पर धूप न लगे इसलिए ऐसा किया है।

कोल्ड स्टोर के कोषाध्यक्ष मनोज रस्तोगी ने बताया कि आस-पास के जिलों के कोल्ड स्टोर में 80 से 85% भंडारण पूरा हो चुका है। अब किसान सरप्लस आलू को मंडी में बेचने के लिए ला रहा है। आवक ज्यादा हो रही है, इसलिए किसी किसी मंडी में दाम कम भी मिल रहे हैं।

 

आढ़ती बोले अच्छा आलू 500 से ऊपर तक बिक रहा हैं 
आढ़तियों ने बताया, “मंडी में आलू की आवक मई तक बनी रहेगी। अच्छी क्वालिटी का आलू आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र को भेजा जा रहा है। इन प्रदेशों में भेजे जाने वाले आलू की आवक मंडी में कुल आने वाले आलू की 15 प्रतिशत ही है। शेष 85 प्रतिशत आलू चेचक मिक्स है। जिसे प्रदेश के पूर्वांचल के जिलों के साथ ही पड़ोसी जिलों के व्यापारी खरीदा रहे हैं।

मंडी में सामान्य आलू का भाव 311 से 401 रुपए प्रति क्विंटल है। सामान्य छुट्टा आलू 441 से 501 रुपए प्रति क्विंटल, छट्टा सुपर आलू का भाव 551 से 651 रुपए प्रति क्विंटल पर टिका हुआ है। सरकारी खरीद की घोषणा से उन किसानों में आस जगी है। लेकिन किसानों का मानना है कि सरकार ने अगर ग्रेडिंग का आलू लिया तो उन्हें इसका कोई फायदा नहीं मिलेगा।

कन्नौज में आलू की बंपर पैदावार होती है। इस बार जिले में 52,500 हेक्टेयर में आलू की बुवाई की गई। इतने बड़े रकबे में 16 लाख मीट्रिक टन आलू का उत्पादन हुआ। यहां भी आलू की फसल खोदकर कोल्ड स्टोर पहुंचाई जा रही है। कई किसान खेतों में आलू की खुदाई करते मिले। उनसे हमने सरकारी रेट और लागत की हकीकत जानी।

कन्नौज के नारायणपुरवा गांव के रहने वाले विजय पाल दोहरे ने बताया, “साहब! महाजन से कर्ज लिया है। सोचा था कि आलू बेचकर कर्ज चुका देंगे। लेकिन अब आलू न तो व्यापारी खरीद रहे और न कोल्ड स्टोरेज वाले रख रहे। 4 या 5 दिन आलू गर्मी में पड़े रह गए तो खराब हो जाएंगे। मुनाफा मिलना तो दूर की बात है लागत नहीं निकल रही है।

मेरे पास 3 बीघे में आलू है। लेकिन अभी मैंने ये सोचकर खुदाई नहीं की कि आलू को रखेंगे कहां। अगर 4 दिन आलू बाहर पड़ा रहा तो गर्मी के कारण सड़ जाएगा। कोल्ड स्टोरेज वाले टोकन नहीं बना रहे। सरकार ने जो रेट दिया है उससे लागत तो निकल सकती है पर मुनाफा कुछ नहीं होगा। महाजन से करीब 1.5 लाख रुपए का कर्ज ले रखा है। लेकिन अब कर्ज चुकाने का ख्याल बाद में आ रहा पहले परिवार के भरण-पोषण को लेकर चिंता सताने लगी है।”

मानीमऊ के रहने वाले किसान संजय कटियार का कहना है, “इस बार आलू का भंडारण नहीं हो पा रहा है। इस बार कोल्ड स्टोर के मालिक जानबूझकर किसानों को परेशान कर रहे हैं ताकि उन्हें बारदाना और कर्ज न देना पड़े।

सरकार को पता ही नहीं है कि एक पैकेट आलू तैयार करने में 400 रुपए तक लागत आती है। जबकि समर्थन 650 रुपया प्रति क्विंटल घोषित किया है। एक क्विंटल में 2 पैकेट आलू आता है। इस लिहाज से एक पैकेट पर 325 रुपए ही मिलेगा। जिससे फसल की लागत निकालनी भी मुश्किल है।”

 

4 लाख का क़र्ज़ लेकर कर आलू लगाया अब कर्ज उतारने की चिंता
खेत में आलू की खुदाई कर रहे गौरव कटियार ने बताया, “चिप्सोना आलू तो कोल्ड मालिक लेने को तैयार भी हो जाते हैं, लेकिन जो किसान सादा आलू पैदा कर रहा है, उसका आलू लेने से कोल्ड स्टोर वाले सीधा इनकार कर रहे हैं। सादा आलू उगाने वाले किसानों के सामने बीज सुरक्षित रखने की समस्या है। जब बीज नहीं होगा तो अगली बार किसान उगाएगा क्या?

मेरे पास 6 एकड़ जमीन है और बैंक से 4 लाख रुपए कर्ज लिया है। ऐसे में परिवार का भरण-पोषण करने की सोचें या कर्ज चुकाने के बारे में। सरकार के समर्थन मूल्य से हमें कोई राहत नहीं मिलने वाली। लागत से कम तो सरकार ने समर्थन मूल्य घोषित किया है। जिस कारण किसान घाटे में ही जाएगा।”

होली से पहले कृषि उत्पादन आयुक्त मनोज कुमार सिंह जायजा लेने कन्नौज और फर्रुखाबाद पहुंचे थे। उन्होंने खेत से लेकर मंडी तक जायजा लिया। उन्हें मंडी में आलू असम के लिए लोडिंग होती मिली थी। आलू के मूल्य पर आश्चर्यचकित हुए थे। इसके बाद सरकार ने आलू खरीदने की बात कही। रेट लगाया 650 रुपए प्रति ‌क्विंटल।

उन्होंने खुद इस बात को माना था कि किसानों को अच्छा रेट नहीं मिल रहा है। कोल्ड स्टोर वाले 80 से 85 फीसदी फुल दिखा रहे हैं। लेकिन हकीकत में वहां पर कई खामियां मिली थी। किसानों ने शिकायत भी कि थी कि उनके आलू स्टोरेज में रखने से मना किया जा रहा है। इस पर उन्होंने मंडी सचिव को फटकारा था। साथ ही आलू अफसर को सस्पेंड करने की बात कही थी।

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