नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले की सुनवाई के दौरान कहा कि महिला की जिंदगी सिर्फ पति और बच्चों के लिए नहीं है। उसकी अन्य इच्छाएं भी हो सकती हैं। पति के प्रति समर्पण ही महिला का कर्तव्य नहीं है। किसी भी समाज में ऐसी रूढ़ियों की प्रैक्टिस किसी की निजता का उल्लंघन हैं। सुप्रीम कोर्ट ने ये बात खतना के विरोध में दाखिल एक याचिका की सुनवाई करते हुए कही। इस याचिका में खतना को गंभीर अपराधों की श्रेणी में रखने की अपील की गई है। इसेक साथ ही इसे गैर जमानतीय अपराधों की श्रेणी में रखने की बात भी कही गई है। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई मंगलवार को भी होगी।
देश के अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपालन ने भी इस याचिका का समर्थन किया है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका की सुनवाई के दौरान बोहरा मुस्लिम समुदाय में नाबालिग बच्चियों का खतना किए जाने पर सवाल उठाए हैं। क्या होता है खतना? खतना की प्रक्रिया में महिलाओं के क्लिटोरिस का उभरा हुआ हिस्सा काट दिया जाता है। यह हिस्सा बच्चे पैदा करने से तो नहीं जुड़ा है लेकिन सेक्सुअल इंटरकोर्स के दौरान महिला की संतुष्टि में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यह एक उभरा हुआ हिस्सा होता जो वजाइना से थोड़ा रहता है। शारीरिक और मानसिक रूप से बच्चियों पर इसका बहुत बुरा असर पड़ता है। बच्चियां इस दर्द को सह नहीं पातीं और हर साल बहुत सी बच्चियां इस दर्द से या तो कोमा में चली जाती हैं या उनकी मौत हो जाती है।