मुस्लिम वोटरों के सहारे चुनावी नैया पार करने की जुगत में बसपाई – इफ्तार व मस्जिदों में जाकर तुष्टिकरण का खेल में जुटे, सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय नारे को भूले – सपा के वोट बैंक पर नज़र, क्या बीजेपी की पिच पर खेल रही बसपा
फतेहपुर। सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय का नारा बुलंद कर यूपी की गद्दी पर चार बार काबिज़ होने वाली बहुजन समाज समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने सत्ता संभालकर न सिर्फ नारे को चरितार्थ किया बल्कि कार्यकाल के दौरान सर्व समाज को साथ लेकर चलने के लिये उन्हें जाना जाता है। यूपी की सत्ता से बसपा के बाहर होते ही बसपा नेता न सिर्फ बहनजी के नारे को बदलने में जुट गए बल्कि तुष्टिकरण के रंग में खुद को रंगने में लग गये। निकाय चुनाव को देखते हुए जहां सभी दलों के संभावित उम्मीदवारों ने लोगों से मिलना जुलना व प्रचार करना शुरू कर दिया है। वही बसपा के नगर पालिका परिषद के खुद को संभावित उम्मीवार समझने वाले मो. आसिफ़ एडवोकेट लोगों के बीच जाकर चुनाव प्रचार करने के साथ ही रोज़ा इफ्तार पार्टी में शिरकत कर रहे हैं। मस्जिदों में जाकर तरावीह की नमाज़ खत्म होने के बाद मुस्लिम समाज के लोगों से मिलने का सिलसिला लगातार जारी है। बसपा के संभावित प्रत्याशी की इस कार्यशैली व अन्य समाज के कार्यक्रमों से दूरी अन्य वर्ग में तुष्टिककर्ण को लेकर सवालिया निशान भी लगने लगे हैं। राजनैतिक जानकारों की माने तो केवल मुस्लिम समाज के वोटरों के सहारे बहुजन समाज पार्टी की चुनावी नैया तो पार होने से रही। ऐसे में केवल मुस्लिमों को लुभाने का मकसद कहीं समाजवादी पार्टी के वोट बैंक में सेंध लगाना व जनता पार्टी को लाभ दिलाने जैसा तो नहीं? सदर नगर पालिका परिषद के चुनाव 2017 में समाजवादी पार्टी से नजाकत खातून, बसपा से पूर्व चेयरमैन शब्बीर खान की पत्नी रेशमा खान एवं भाजपा से अर्चना त्रिपाठी चुनावी मैदान में थीं। जिसमे से सपा की नजाकत खातून चुनाव जीतकर चेयरमैन बनी थी। इसी तरह 2022 के विधान सभा चुनाव में समाजवादी पार्टी से चन्द्र प्रकाश लोधी, बसपा से मो. अय्यूब व भाजपा से निवर्तमान विधायक विक्रम सिंह उम्मीदवार थे। सदर सीट से सपा उम्मीदवार चन्द्र प्रकाश लोधी 96839, भाजपा उम्मीदवार विक्रम सिंह 88238 वोट मिले थे। जिसमें सपा के चन्द्र प्रकाश ने भाजपा के विक्रम सिंह को 8601 वोटों से पराजित कर जीत हासिल की थी। जबकि बसपा उम्मीदवार मात्र 20363 वोट हासिल कर सके थे। इसी तरह कांग्रेस से मुस्लिम उम्मीदवार मोहसिन खान मात्र 1803 वोट ही हासिल कर सके थे। दोनों ही चुनाव में विषम परिस्थितियों के बावजूद समाजवादी पार्टी का पलड़ा भारी रहने से इस बार नगर निकाय चुनाव में सपा व भाजपा में कांटे की टक्कर है। ऐसे में बहुजन समाज पार्टी व भारतीय जनता पार्टी के द्वारा चुनाव जीतने के लिये फूल प्रूफ तैयारी के साथ चुनावी समर में उतरने के संकेत पहले से ही देखे जा रहे हैं। ऐसे में बसपा के संभावित प्रत्याशी के द्वारा मुस्लिम वोटरों के सहारे एक बार फिर बसपा की चुनावी नैया पार लगाने की कोशिश जारी है। मुस्लिम वोटरों को साधने के लिये बसपा नेता दिन रात एक करने में लगे हुए हैं। पवित्र रमज़ान माह में रोज़ा इफ्तार का आयोजन करने के साथ ही इफ्तार पार्टियों में शामिल हो रहे हैं। यही नही देर रात तक चलने वाली तरावीह की नमाज़ खत्म होने के बाद समुदाय के लोगों से मिलने का सिलसिला जारी रहता है। बसपा के संभावित उम्मीदवार के यहां शुक्रवार को आयोजित रोज़ा इफ्तार में भी अन्य समाज की उपस्थिति नगण्य रही। मुस्लिम वोटरों के प्रति अचानक उमड़े प्रेम व लगाव को लेकर मुस्लिम समाज भी बसपा की कार्यशैली को लेकर आश्चर्यचकित है। अन्य समाज से दूरी पर उनमें रोष भी व्याप्त है। राजनैतिक जानकारों की माने तो बसपा क्या सिर्फ मुस्लिम वोटरों के सहारे चुनावी बिसात बैठाने में जुटी है या सिर्फ सपा के वोट बैंक में सेंधमारी की तैयारी है। हालांकि सपा ने अभी तक सदर नगर पालिका के अपना कोई अधिकृत प्रत्याशी मैदान में नही उतारा है लेकिन निवर्तमान चेयरमैन नज़ाकत खातून के पुत्र हाजी रज़ा प्रमुख दावेदार के तौर पर देखे जा रहे है। बसपाई जीत की रणनीति कामयाब होती है या नही लेकिन बसपा की इस नीति को सपा के वोट बैंक में सेंध लगाने के तौर पर देखा जा रहा है। सपा के प्रत्याशी की गणित बिगाड़ने से बसपा प्रत्याशी मज़बूत हो या न हो लेकिन भाजपा प्रत्याशी के लिये ग्रीन कॉरिडोर बनाने की तैयारी के तौर पर देखा जा सकता है।