16 साल की लड़की अपनी मां के साथ हंसी-ठिठोली कर रही थी। घर में उस वक्त और कोई मौजूद नहीं था। दो भाई काम की वजह से घर से बाहर रहते थे, पिता उस वक्त ड्यूटी पर थे। एक बड़ी बहन हैं जिनकी पांच महीने पहले ही शादी हो गई थी। वो लड़की और उसकी मां बात ही कर रहे थे कि लड़की ने बोला, “मां मैं शौच के लिए जा रही हूं।”
घर में शौचालय नहीं था तो बच्ची खेत की तरफ निकल गई। इस गांव की आधी आबादी शौच के लिए बाहर ही जाती है। आधे घंटे से ज्यादा हो गया पर बच्ची वापस नहीं आई। मां को चिंता हुई तो खोजने लगी। उन्होंने टार्च उठाया और बेटी को ढूंढते हुए खेत की तरफ भागी। उसने खेत के आस-पास बेटी को आवाज भी लगाई पर कोई जवाब नहीं आया।
चीखें सुन मां भागी तो देखा कि बेटी जमीन पर पड़ी तड़प रही थी
मां थोड़ा और आगे बढ़ी तो बच्ची के चीखने की आवाजें उसे सुनाई दीं। वो उस जगह पर पहुंची, बच्ची की तरफ टार्च की रोशनी की तो बेटी को देखते ही जमीन पर गिर गई। मां ने उस वक्त क्या देखा ये जानने जब हम उनके पास पहुंचे तो वो बेसुध एक खटिया पर लेटीं थीं। बच्ची का नाम लेते ही वह सहसा रोने लगीं।
घरवालों ने उन्हें समझा-बुझा कर शांत कराया। इसके बाद वो धीमी आवाज में बताती हैं कि उस दिन जब उन्होंने बच्ची को देखा तो वो नीचे जमीन पर पड़ी तड़प रही थी। उसके गले में उसी के दुपट्टे से फंदा जोर से कसा हुआ था। एक लड़का सलमान बच्ची के ऊपर बैठा था।
सलमान का घर बच्ची के घर से करीब 50 मीटर की दूरी पर था। उसकी अभी 6 महीने पहले ही शादी हुई थी। खेत में मां को देखते ही वो बच्ची को छोड़कर भाग गया। मां बताती हैं कि मैं अकेले थी। उस वक्त मुझे कुछ समझ नहीं आया कि सलमान को पकडूं या अपनी बच्ची को संभालूं। सलमान भाग गया। मैंने अपनी बच्ची को उठाया और घर ले आई।
लड़के ने बच्ची को जमीन पर पटककर उसके शरीर को नोचा
जैसे-तैसे अपनी लड़खड़ाती हुई बच्ची को सहारा देकर हम घर पहुंचे। उसके पूरे कपड़े मिट्टी में सने हुए थे। शरीर पर जगह-जगह चोट के गहरे निशान थे। मां ने बेटी को तखत पर लेटाया। रसोईघर की तरफ भागकर एक गिलास पानी लाई और बेटी को पिलाया। बच्ची अभी तक कुछ बोल नहीं रही थी। मां पास बैठी तो उससे लिपट कर रोने लगी।
मां बताती हैं कि मैंने बार-बार अपनी बेटी से सवाल पूछे लेकिन वो कुछ बोल नहीं पाई। करीब दो घंटे वो बस रोती रही। मां के बहुत समझाने पर बेटी ने बताया कि सलमान ने उसके साथ बदतमीजी की। वो बार-बार उसके कपड़े के अंदर हाथ डाल रहा था। उसे गलत जगह छूने की कोशिश कर रहा था। उसके शरीर को हाथों से नोच रहा था।
बच्ची उस रात रोते-रोते बोली कि पापा थाने में चौकीदार हैं, पूरे गांव में सिर उठा कर चलते हैं। एक लड़के ने उनकी बेटी की इज्जत लूटने की कोशिश की ये सुनकर पापा जीते जी मर जाएंगे। मां बताती है कि मैंने उसे आधी रात तक समझाया। वो समझ भी गई थी। बोली कि वो इस हादसे को भूल जाएगी। मां को लगा धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा। उसने बच्ची को अपने पास लेटाया, उसे सुलाकर वो खुद भी सो गई।
बड़ी होकर पुलिस इंस्पेक्टर बनना चाहती थी
सुबह हुई। बच्ची गुमसुम बैठी हुई थी। मां उसके पास आकर बैठी और पूछा, “क्या हुआ?” बच्ची अपनी मां की गोद में सिर रखकर लेटी और बोली कि सब ठीक है मां। जो हुआ मैं वो भूल जाऊंगी। मैं पढ़-लिखकर अपने पूरे परिवार का नाम रोशन करूंगी ताकि अब कोई हमें परेशान ना कर पाए।
मां बताती है कि उसकी बेटी पढ़ने में बहुत अच्छी थी। लंबी कद काठी, भागने में तेज और खेल-कूद की शौकीन थी। उसके स्कूल के टीचर कहते थे कि ये बड़ी होकर पुलिस इंस्पेक्टर बनेगी। मां ने उसे सब समझाया। हौसला दिया। बच्ची समझ भी गई। मां को लगा अब सब ठीक है। इसलिए वो बेटी को घर में छोड़कर पास में ही जानवर बांधने चली गई।
बेटी ने कहा, मां मुझे माफ करना मैं मुंह दिखाने के काबिल नहीं
अपना काम जल्दी से निपटाकर जब मां घर वापस आई तो आगे वाले कमरे में पहले तो बच्ची दिखाई नहीं दी। वो भागकर अंदर गई तो बिस्तर पर बेटी लेटी हुई मिली। जमीन पर उल्टी थी और पास में ही जहरीली दवा की खाली बोतल पड़ी थी। मां ने बेटी को पकड़कर उठाया तो उसकी हालत खराब हो चुकी थी। उसने जहर पी लिया था।
बेटी अधमरी हालत में थी। उसने मां के सामने हाथ जोड़े और कहा, “मां मुझे माफ करना, मैं मुंह दिखाने के काबिल नहीं रही।” इतना बोलते ही बच्ची बेहोश हो गई। आनन-फानन में मां ने सबको बुलाया। बच्ची को तुरंत उठाकर बेलहारा अस्पताल ले गए।
3 अस्पतालों के चक्कर काटे लेकिन बेटी नहीं बची
मां बताती हैं कि हमने अपनी बेटी को सबसे पहले बेलहारा अस्पताल में भर्ती कराया। वहां जाते ही डॉक्टरों ने उसकी जांच की। बोला कि अगर बच्ची 24 घंटे तक जिंदा रह जाती है, तो हम इसको बचा लेंगे। हम सभी को उम्मीद जगी कि हमारी बच्ची की जान बच जाएगी। लेकिन अगली ही सुबह डॉक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए।
डॉक्टर बोले कि बच्ची को बाराबंकी ले जाओ, यहां उसका इलाज नहीं हो पाएगा। हम बेटी को लेकर बाराबंकी अस्पताल पहुंचे। वहां से भी डॉक्टरों ने उसको लखनऊ के लोहिया अस्पताल रेफर कर दिया। इस बीच बच्ची को बहुत उल्टियां हो रहीं थी। 2 दिन इलाज चला। लेकिन तीसरी सुबह बेटी को ना उल्टी हुई, ना उसकी आवाज सुनाई दी। मेरी बेटी हम सबको छोड़कर चली गई।