हरियाणा के बादशाहपुर के एक आर्य समाज मंदिर से पुलिस और हेल्थ डिपार्टमेंट के लोगों ने कुछ लोगों को गिरफ्तार किया। ये लोग मंदिर में चल रहे एक क्लिनिक में औरतों को पुत्र पैदा करने की दवाई दे रहे थे। वे इस चक्कर में सैकड़ों औरतों को चूना लगा चुके थे।
जाने कितनी औरतें इस उम्मीद में वो नकली दवाई गटके जा रही थीं कि उन्हें लड़का पैदा होगा और उनके सातों जनम सफल हो जाएंगे। बाबा रामदेव लंबे समय तक पुत्रजीवक बटी बनाते और बेचते रहे। देशभर के मुहल्लों में खुली उनकी दुकानों से औरतें पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ ये बटी खरीदती भी रहीं।
भारत में आज गांवों में साक्षरता का स्तर 67.77% और शहरों में 84.11% है, लेकिन ऐसा नहीं है कि पुत्र की उम्मीद में नकली दवाइयां गटक रही, ताबीज बांध रही, बाबाओं, पीरों-फकीरों के चक्कर लगा रही आबादी अनपढ़, अशिक्षित आबादी है। वे पढ़े-लिखे, शिक्षित, नौकरीपेशा लोग हैं, जो आज भी पुत्र की आस लगाए बैठे हैं।
बेटे के अरमान में पगलाई इस जहालत का रिश्ता मर्दों की बनाई उस दुनिया से है, जिसमें सबसे ऊंचे दर्जे पर उसने खुद को रखा और औरतों को अपने लिए बच्चा पैदा करने और सेवा-चाकरी करने वाली मशीन बना दिया।
लड़का चाहिए ही क्यों आखिर? संतान की कामना हो सकती है, लेकिन यह सोचना कि संतान लड़का ही हो, लड़की नहीं, यह मानसिकता कहां से आती है। ये वहीं से आती है, जो ये मानती है कि लड़का लड़कियों से श्रेष्ठ होता है। जो ये मानती है कि लड़की पराई धन है। वो तो ब्याहकर दूसरे घर चली जाएगी, वंश को आगे तो बेटा ही बढ़ाएगा।
बेटी को घर-जमीन-जायदाद में हिस्सा नहीं मिलेगा। वो सबकुछ बेटे के नाम किया जाएगा। बेटी को पढ़ाना या उसके लिए कुछ भी करना एक एहसान कर तरह होगा। ये किसी दूसरे ग्रह की बात नहीं। आज भी भारतीय परिवारों में ये होता है कि सबसे अच्छा खाना, सबसे अच्छा बिस्तर और घर की सबसे अच्छी चीज पहले बेटे को दी जाती है।