फतेहपुर। इंटरनेशनल स्तर पर हिंदी लेखक के रूप में प्रख्यात साहित्यकार डॉ असगर वजाहत ने कहा कि तुलसीकृत रामचरितमानस अपने समय का ज्वलंत इतिहास है। तुलसीदास समकालीन सम्राट अकबर से भी महान हैं क्योंकि उन्होंने उस काल में संस्कृत के स्थान पर अवधी में रामचरितमानस लिखकर जन-जन के दिलों में बैठ गए। श्री वजाहत जिले में साहित्य प्रेमियों के बीच बातचीत कर रहे थे।
अनेक कहानी संग्रह, पांच उपन्यास, आठ नाटक सहित अनेक रचनाओं को लिखकर साहित्य जगत में शिखर पुरुष के रूप में जाने जाने वाले असगर वजाहत ने हाल ही में तुलसीदास पर आधारित महाबली नाटक की रचना की है जिस पर उन्हें व्यास सम्मान से नवाजा गया है। जनपद आगमन पर उनसे धर्म तथा राजनीति आदि विषयों पर बातचीत की गई। एक सवाल पर उन्होंने कहा कि रामचरितमानस में जो भी लिखा गया है। वह सब उस काल की सच्चाई है और सच्चाई लिखना आसान नहीं होता है इसलिए तुलसीदास महान है और उन्हें इसके लिए अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उनकी झोपड़ी जला दी गई। उन पर चरित्र हीनता का आरोप तक लगाया गया लेकिन वे साहित्य रचना में कभी समझौता नहीं किया। आज राजनीति में जिन अंशों को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं, उनके मुताबिक दरअसल तुलसीदास जी ने पूरे साहस के साथ उस समय के समाज को रेखांकित किया है इसलिए वे कहीं गलत नहीं हैं। इसके लिए उनकी प्रशंसा करनी चाहिए कि उन्होंने अपने समय के साथ बेईमानी नहीं की। उन्होंने कहा कि नाटक के माध्यम से बताया गया है कि अमीर खुसरो, टोडरमल आदि अकबर के दरबारी तुलसीदास जी के बड़े करीबी थे और उन्होंने अकबर के दरबार में आने का आग्रह किया लेकिन उन्होंने स्वीकार नहीं किया। एक जगह तुलसीदास जी ने लिखा है कि वे मांग कर खा लेंगे और मस्जिद में जाकर सो जाएंगे। इस विषय पर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि उस काल में मस्जिद में जाने पर किसी को भी नहीं रोका जाता था। तुलसीदास जी के साहित्य से यह साबित होता है। धर्म के संदर्भ में उन्होंने कहा कि धर्म मानवता के लिए है। इंसानियत के लिए है। धर्म जोड़ने का काम करता है। यही तुलसीदास जी ने भी अपने रचना संसार में किया है। प्रख्यात लेखक ने कुछ प्रसंगों का जिक्र करते हुए कहा कि एक बार अमीर खुसरो कहीं जा रहे थे और उन्होंने देखा कि मंदिर में मूर्ति स्थापना के लिए लोग भक्ति में लीन जा रहे हैं। वे घोड़े से उतरे और उनके साथ मंदिर तक गए और मूर्ति स्थापना समारोह में शामिल हुए। गांधी गोडसे एट द रेट डॉट कॉम पर बनी फिल्म के बारे में पूछा गया कि आरोप लग रहे हैं कि आपने गांधी को छोटा कर दिया है। दूसरी ओर आरोप लग रहे हैं कि आपने गोडसे की कट्टर मनोवृत्ति को शिथिल किया है। इस पर लेखक ने कहा कि इस नाटक में संवाद के माध्यम से परस्पर विचारों का आदान प्रदान किया गया है और बताया गया है कि आपसी बातचीत से मनुष्य की मनोवृति में परिवर्तन किया जा सकता है। नाटक में उन्होंने गांधी जी को की मृत्यु नहीं दिखाई है। यही कारण है कि नाटक के अंत में भीड़ के बीच से गांधी और गोडसे दोनों बिना किसी का माल्यार्पण स्वीकार किए हुए सीधे एक साथ चले जाते हैं। उन्होंने प्रसंग के माध्यम से बताया कि एक सूफी और ब्राह्मण विद्वान के बीच दोस्ती थी। एक बार ब्राह्मण सूफी से मिलने आए। उनका एक शिष्य उनकी वेशभूषा को देखकर मुस्कुरा दिया। इस पर सूफी ने अपने शिष्य को कहा कि इसी वेशभूषा में जब तक तीर्थ यात्रा करके नहीं आओगे मैं तुम्हें स्वीकार नहीं करूंगा। सूफी के साथ रहने वाला शिष्य बाकायदा ब्राह्मण की वेशभूषा में जब तीर्थ स्थान का भ्रमण करके आया तब सूफी संत ने उन्हें क्षमा किया। उस वक्त धर्म बहुत व्यापक स्तर पर विराट रूप में था लेकिन अब इसी धर्म को संकुचित किया जा रहा है। यही कारण है कि मनुष्य भी विचारों से संकुचित हो रहा है। इस्लाम में भी कहा गया है कि एक बार ईश्वर को भूल जाओ तो क्षमा किया जा सकता है लेकिन लोगों को तकलीफ देकर या लोगों के साथ बुरा व्यवहार करने पर माफ नहीं किया जा सकता।