आधुनिकता के दौर में गुम हो रही परम्परा – दम तोड़ रही माटी के बर्तन बनाने की कला

फतेहपुर। गरीबों की फ्रिज कहे जाने वाली मटकियों में पानी रखने की परंपरा आधुनिकता के युग में गुम होती जा रही है। मटकियों में पानी रखना और ठंडा कर पीने का चलन सदियों से रह है। शहरीकरण के दौर में मटकियों की जगह फ्रिज ने हथिया लिया लेकिन उसके बाद भी मध्यम वर्ग और निचले पायदान पर जीवनयापन करने वाले लोगों के अलावा दुकानदारों की पहली पसंद रही है। तपती गर्मी में मटकियों के पानी को पीकर गला तर करना राहत पाने का अहम साधन रहा है। आधुनिकता के युग में अब इसकी जगह आरओ का पानी बेचने वाले वाटर प्लांट ने ले ली है। प्रतिदिन बीस रुपये में ठंडा पानी का केन दुकान व घर के दरवाजे पर सप्लायर आसानी से उपलब्ध करवा देते हैं इससे लोगों को सहूलियते तो मिल ही रही है इसके अलावा आधुनिकता की चाकचौंध में शामिल होने का मौका मिल रहा है।
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जीविका चलाना हुआ मुश्किल
मिट्टी की मटकी व बर्तन बेचने का पुश्तैनी काम करने वाले नौशाद बताते हैं कि कभी मिट्टी के बर्तन बेचकर उनका घर चल जाता था। बाबा व पिता के ज़माने में भी मिट्टी के बर्तन बिकते रहे हैं लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया लोग मिट्टी के बर्तनों से दूर होते गये। अब तो घर चलाना भी मुश्किल हो रहा है। घर की जीविका चलाने के लिये वह पास में ही चाय की दुकान चलाने को मजबूर हैं।
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दाम बढ़े लेकिन खरीददारी घटी
सत्तर व अस्सी के दशक में अलग अलग साईज़ो की मिट्टी की मटकी के दाम जहां दो चार रुपये मात्र हुआ करते थे वहीं अब इनकी कीमतें बढ़कर सौ रुपये से लेकर दो ढाई सौ रुपये प्रति मटकियां पहुँच चुकी हैं लेकिन आधुनिक परिवेश में मिट्टी के बर्तनों को परित्याग कर लोगों के घरों में फ्रिज की बोतलों के अलावा प्रतिष्ठान हो या मकान आरओ वाले वाटर कूलरों ने अपनी जगह बना ली है।
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सरकारी कोशिशों के बाद भी दम तोड़ रही कला
मिट्टी के बर्तनों में खाना बनाने से लेकर पानी पीने का चलन पाषाण काल से चला आ रहा है। शादी विवाहों से लेकर जन्म व अंतिम क्रियाओं तक में भी मिट्टी के बर्तन शुभ माने जाते थे लेकिन आधुनिकता के दौर में लोग मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग से दूर होते जा रहे है। सरकार की ओर से माटी कला बोर्ड बनाकर मिट्टी के बर्तन बनाने वाले लोगो को इलेक्ट्रिक चलित चाक व अन्य सामग्री देकर कला को प्रोत्साहन देने का प्रयास किया गया है लेकिन यह प्रयास भी नाकाफी साबित हुए है। लोगों में मिट्टी के बर्तनों के प्रयोग का चलन कम होने इन कलाओं में दक्ष रहे परिवार अब नई पीढ़ी को अन्य रोजगारों की तरफ मोड़ रहे हैं जिससे से बर्तनों को बनाने की कला अब दम तोड़ती हुई नज़र आ रही है।

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