संसद भवन के उद्घाटन पर पीएम मोदी बोले- संसद का यह नया भवन, नए भारत के सृजन का आधार बनेगा

देश को नया संसद भवन मिल चुका है। पीएम मोदी ने पूरे विधि-विधान से इसका उद्घाटन किया। नए भवन में लोकसभा में 888 और राज्यसभा में 384 सदस्यों के बैठने की व्यवस्था है। नई संसद को लेकर देश में राजनीति भी खूब हुई। लगभग पूरे विपक्ष ने नई संसद के उद्घाटन के मौके से किनारा कर लिया है

प्रधानमंत्री ने कहा कि ‘यह नया भवन नूतन और पुरातन के सह-अस्तित्व का भी आदर्श है। साथियों नए रास्तों पर चलकर ही नए प्रतिमान गढ़े जाते हैं। आज नया भारत, नए लक्ष्य तय कर रहा है। नए रास्ते गढ़ रहा है। नया जोश है, नई उमंग है। नया सफर है, नई सोच है। दिशा नई है, संकल्प नया है। और आज फिर एक बार पूरा विश्व भारत को भारत के संकल्प की दृढ़ता को, भारतवासियों की प्रखरता को, भारत की जनशक्ति की जीजीविषा को आदर और उम्मीद के भाव से देख रहा है। जब भारत आगे बढ़ता है, तो विश्व आगे बढ़ता है। संसद का नया भवन भारत के विकास से विश्व के विकास का भी आह्वान करेगा।’

प्रधानमंत्री बोले ‘आज इस ऐतिहासिक अवसर पर कुछ देर पहले संसद की इस नई इमारत में पवित्र सेंगोल की भी स्थापना हुई है। महान चोल साम्राज्य में सेंगोल को कर्तव्य पथ का, सेवा पथ का, राष्ट्रपथ का प्रतीक माना जाता था। राजाजी और आदिनम के संतों के मार्गदर्शन में यही सेंगोल सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक बना था। तमिलनाडु से विशेष तौर पर आए हुए आदिनम के संत आज सुबह संसद भवन में हमें आशीर्वाद देने उपस्थित हुए। मैं उन्हें पुनः नमन करता हूं। उनके ही मार्गदर्शन में लोकसभा में यह पवित्र सेंगोल स्थापित हुआ है। बीते दिनों में मीडिया में इससे जुड़ी काफी जानकारी प्रकाशित हुई है। मैं मानता हूं कि यह हमारा सौभाग्य है कि इस पवित्र सेंगोल की गरिमा हम लौटा सकें।’

जब भी इस संसद भवन में कार्यवाही शुरू होगी। यह सेंगोल हम सभी को प्रेरणा देता रहेगा। भारत एक लोकतांत्रिक राष्ट्र नहीं। बल्कि लोकतंत्र की जननी भी है। मदर ऑफ डेमोक्रेसी भी है। भारत आज वैश्विक लोकतंत्र का बहुत बड़ा आधार है। लोकतंत्र हमारे लिए सिर्फ एक व्यवस्था ही नहीं, एक संस्कार है, एक विचार है, एक परंपरा है। हमारे वेद हमें सभाओं और समितियों के लोकतांत्रिक आदर्श सिखाते हैं। महाभारत जैसे ग्रंथों में गणों जैसे शब्दों का जिक्र मिलता है। तमिलनाडु में मिला 900 ईस्वीं का शिलालेख भी यही सिखाता है। हमारा संविधान ही हमारा संकल्प है। इस संकल्प की सबसे श्रेष्ठ प्रतिनिधि अगर कोई है, तो यह हमारी संसद है और यह संसद देश की जिस समृद्ध संस्कृति का संकल्प करती है, उसका उद्घोष करती है

जो रुक जाता है, उसका भाग्य भी रुक जाता है, लेकिन जो चलता रहता है, उसका भाग्य भी चलता रहता है। इसलिए चलते रहो, चलते रहो। गुलामी के बाद हमारे देश ने कई उतार-चढ़ाव देखते हुए आजादी के अमृतकाल में प्रवेश किया है। आजादी का यह अमृतकाल असंख्य सपनों और आकांक्षाओं को पूरा करने का अमृतकाल है। इस अमृतकाल का आह्वान है- मुक्त मातृभूमि को नवीन पान चाहिए। नवीन पर्व के लिए नवीन प्राण चाहिए।’

प्रधानमंत्री ने कहा ‘भारत के भविष्य को उज्ज्वल बनाने वाली इस कार्यस्थली को भी उतना ही नवीन होना चाहिए। आधुनिक होना चाहिए। साथियों एक समय था, जब भारत दुनिया के सबसे समृद्ध और वैभवशाली राज्यों में गिना जाता था। भारत के नगरों, मंदिर वास्तु में भारत की समृद्धि का जिक्र करता था। चोल शासकों द्वारा बनाए मंदिरों से लेकर जलाशयों तक, बाहर से आने वालों को यह मंत्रमुग्ध कर देता था। लेकिन सैकड़ों साल की गुलामी ने हमसे हमारे यह गौरव छीन लिया।’

एक ऐसा समय भी आया, जब हम दूसरे देशों को देखकर मुग्ध होने लगे। लेकिन 21वीं सदी का भारत अब गुलामी की उस सोच को पीछे छोड़ रहा है। आज भारत प्राचीन काल की उस कला के गौरवशाली गाथा को, अपनी ओर मोड़ रहा है और संसद की यह नई इमारत इस जीवंत प्रयास का प्रतीक बनी है। आज नए संसद भवन को देखकर हर भारतीय गौरव से भरा हुआ है। इस भवन में विरासत भी है, वास्तु भी है। इसमें कला भी है, कौशल भी है। इसमें संस्कृति भी है और संविधान के स्वर भी हैं। आप देख रहे हैं कि लोकसभा का आंतरिक हिस्सा राष्ट्रीय पक्षी मोर पर आधारित है। राज्यसभा का आंतरिक हिस्सा राष्ट्रीय फूल कमल पर आधारित है। और संसद के प्रांगण में हमारा राष्ट्रीय वृक्ष बरगद भी है। हमारे देश के अलग-अलग हिस्सों की जो विविधता है, इस नए भवन ने उन सबको समाहित किया है। इसमें राजस्थान से लाए बलवा पत्थर लगाए गए हैं। ये जो लकड़ी का काम है, वह महाराष्ट्र से आई है। यूपी में भदोही के कारीगरों ने अपने हाथ से कालीनों को बुना है। एक तरह से इस भवन के कण-कण में हमें एक भारत, श्रेष्ठ भारत की भावना के दर्शन हुए हैं।’

साथियों संसद के पुराने भवन में सभी के लिए अपने कार्यों को पूरा करना इतना मुश्किल हो रहा था, यह हम सभी जानते हैं। तकनीक, बैठने की जगह से जुड़ी चुनौतियां थीं। डेढ़-दो दशकों से चर्चा थी कि हमें नए संसद भवन की जरूरत है। हमें यह भी देखना था कि आने वाले समय में सीटों की संख्या बढ़ेगी, सांसदों की संख्या बढ़ेगी तो वे कहां बैठेंगे। इसलिए यह समय की जरूरत थी कि संसद के नए भवन का निर्माण किया जाए।’

नया संसद भवन नए सुविधाओं से लैस है। आप देख सकते हैं कि इस वक्त भी सूर्य का प्रकाश सीधे आ रहा है। इसमें तकनीक का पूरा ध्यान रखा गया है। आज सुबह ही मैं इस संसद को बनाने वाले श्रमिकों से मिला। इस संसद में करीब 60 हजार श्रमिकों को रोजगार देने का काम किया है। उन्होंने इस नई इमारत के लिए अपना पसीना बहाया है। मुझे खुशी है कि इनके श्रम को समर्पित एक डिजिटल गैलरी भी संसद में बनाई गई है। विश्व में शायद यह पहली बार हुआ होगा। संसद के निर्माण में उनका यह योगदान भी अमर हो गया है।’

कोई भी एक्सपर्ट अगर पिछले नौ वर्षों का आकलन करे तो पाएगा कि यह नौ वर्ष गरीबों के कल्याण के लिए रहे हैं। मुझे पिछले नौ साल में गरीबों के लिए चार करोड़ घर बनने का संतोष है। हम जब इस भव्य इमारत को देखकर अपना सिर ऊंचा कर रहे हैं, तो हम नौ साल में बने 11 करोड़ शौचालय को देखकर गर्व कर रहे हैं। आज जब हम इस संसद भवन में सुविधाओं की बात कर रहे हैं, तो मुझे गर्व है कि हमने गांवों को जोड़ने के लिए चार लाख किमी से ज्यादा सड़कों का निर्माण किया। आज जब हम इस ईको फ्रेंडली इमारत को देखकर संतोष कर रहे हैं, तो मुझे गर्व है कि हमने चार साल में अमृत सरोवरों का निर्माण किया। हमने 30000 से ज्यादा पंचायत भवन भी बनाए हैं। यानी पंचायत भवन से लेकर संसद भवन तक हमारी निष्ठा एक ही है। हमारी प्रेरणा एक रही है। देश का विकास, देश के लोगों का विकास।’

प्रधानमंत्री ने आगे कहा कि ‘आपको याद होगा 15 अगस्त को मैंने लाल किले से कहा था कि यही समय है, सही समय है। हर देश के इतिहास में ऐसा समय आता है, जब देश की चेतना नए सिरे से जागृत होती है। भारत में आजादी के 25 साल पहले (1947 से पहले) भी ऐसा ही समय आया था। गांधीजी के असहयोग आंदोलन ने पूरे देश को एक विश्वास से भर दिया था।’

गांधीजी ने स्वराज के संकल्प से हर भारतीय को जोड़ दिया था। यह वह दौर था, जब हर भारतीय आजादी के लिए जी-जान से जुट गया था। इसका नतीजा हमने 1947 में भारत की आजादी के तौर पर देखा। आजादी का यह अमृतकाल भी भारत के इतिहास का ऐसा ही पड़ाव है। आज से 25 साल बाद भारत अपनी आजादी के 100 वर्ष पूरे करेगा। हमारे पास भी 25 वर्ष का कालखंड है। इन 25 वर्षों में हमें भारत को विकसित राष्ट्र बनाना है।’

हमें नेशन फर्स्ट की भावना से बढ़ना होगा। हमें कर्तव्य पथ को सर्वोपरि रखना होगा। हमें अपने व्यवहार से उदाहरण पेश करना पड़ेगा। हमें निरंतर खुद में सुधार करते रहना होगा। हमें अपने नए रास्ते खुद बनाने होंगे। हमें खुद को खपाना होगा, तपाना होगा। हमें लोककल्याणको ही अपना जीवन मंत्र बनाना होगा। जब संसद के इस नए भवन में अपने दायित्वों का इमानदारी से निर्वहण करेंगे तब देशवासियों को भी इसकी प्रेरणा मिलेगी।

एक राष्ट्र के रूप में हम सभी 140 करोड़ का संकल्प ही इस संसद की प्राण प्रतिष्ठा है। यहां होने वाला हर निर्णय ही, आने वाले समय को संवारने वाला है। यहां होने वाला निर्णय आने वाली पीढ़ियों को सशक्त करने वाला है। यहां होने वाला निर्णय समाज के हर वर्ग को सशक्त करेगा। संसद की हर दीवार, इसका कण-कण गरीब के कल्याण के लिए समर्पित है।

 

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