बिना बिजली मोबाइल फोन के सहारे पकड़ में आएगी दृष्टिहीनता

 

 

गांवों में कई बार बिजली की समस्या के चलते लोगों की आंखों की जांच नहीं हो पाती है, लेकिन अब नई दिल्ली स्थित भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और आईआईटी मद्रास के विशेषज्ञों ने नई तकनीक विकसित की है। इस नई तकनीक से सिर्फ मोबाइल फोन के सहारे दृष्टिहीनता का पता लगाया जा सकता है।

इस तकनीक की सबसे बड़ी खास बात यह है कि इसके लिए किसी विशेषज्ञता की जरूरत नहीं होती। मोबाइल फोन के पीछे कैमरे पर एक लेंस लगा होता है जो आंख और रेटिना की फोटो खींचकर एक सॉफ्टवेयर की मदद से यह बता सकता है कि उक्त व्यक्ति को दृष्टि की समस्या है या नहीं।

देश के लिए इसलिए जरूरी खोज
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, देश में हर साल करीब 66 लाख मोतियाबिंद के ऑपरेशन होते हैं। इतने ऑपरेशन होने के बाद भी काफी संख्या में लोग जांच और उपचार से दूर हैं। वैज्ञानिकों का दावा है कि इस तरह की खोज देश को दृष्टिहीनता दूर करने में बड़ी मददगार साबित हो सकती है।

सी3 मेडटेक दिया नाम
आईसीएमआर के मुताबिक, इस तकनीक को सी3 मेडटेक नाम दिया है, जिसे अमेरिका के नियामक संगठन की ओर से भी मान्यता मिली है। यह पोर्टेबल स्मार्टफोन संगत उपकरण गैर विशेषज्ञों को भी सटीक स्क्रीनिंग करने में मदद करता है। मुख्य खोजकर्ता आईआईटी मद्रास के यश नागरशेठ ने बताया कि मोबाइल फोन उच्च-रिजॉल्यूशन वाली फोटो लेता है, जिसका एक सॉफ्टवेयर की मदद से विश्लेषण किया जाता है। अगर विशेषज्ञ डॉक्टर की जरूरत पड़ती है तो टेली परामर्श के जरिये समाधान निकाला जा सकता है। 

बाजार में उपलब्ध

नागरशेठ ने बताया कि इस तकनीक की खोज करने और अलग-अलग मानकों पर परीक्षण के बाद निजी कंपनियों की सहायता से इसे बाजार में लाया जा चुका है। कोई भी संस्थान, अस्पताल या क्लीनिक इसे प्राप्त कर सकता है।

देश के इन इलाकों में होगा फायदा
आईसीएमआर के मुताबिक, समय पर जांच विजन डिसऑर्डर यानी दृष्टिहीनता के इलाज के लिए महत्वपूर्ण है। हालांकि, देश के कई ऐसे इलाके हैं जहां औपचारिक स्क्रीनिंग तक पहुंच की कमी कई लोगों के लिए बाधा बनी हुई है। इनमें गांव, पहाड़ी दुर्गम क्षेत्र, आदिवासी इलाके शामिल हैं। 

  • स्कूलों में हर साल बच्चों की नेत्र जांच की जाती है। 2019-2020 में 3.20 करोड़ स्कूली बच्चों की जांच में 7.50 लाख को चश्मे वितरित किए गए। इस उपकरण की मदद से और अधिक बच्चों की जांच की जा सकती है।
  • सरकार राष्ट्रीय कार्यक्रम के तहत हर साल हजारों शिविर लगाती है जहां मरीजों की निशुल्क जांच की जाती है। इन जगहों पर भी यह उपकरण सबसे आसान और बेहतर परिणाम दे सकता है।
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