गांव कस्बे को रोशन करने वाली लालटेन विलुप्त की कगार पर

खागा/फतेहपुर। गांव व कस्बे में अगर बिजली नही आती थी तो लोग लालटेन का प्रयोग करते थे। बताते हैं कि लोग लालटेन के सहारे एक समय में लोग अपने समस्त कार्य संपन्न करते थे। गांव व कस्बे में रात के अंधेरे मंें छात्र व छात्राएं लालटेन जलाकर पढ़ाई किया करते थे। छोटे-छोटे बच्चे लालटेन के पास बैठकर मछली जल की रानी है। चिड़ियों के जगने से पहले खाट छोड़कर जग गया किसान, खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी जैसी कविता जोर-जोर से चिल्ला-चिल्ला कर पढ़ते थे। गर्मियों के मौसम में छत पर हर घर में कविता पढ़ने की आवाज आया करती थी। शाम को हाथ पैर धोकर पढ़ने के लिए बैठ जाना एक अच्छे संस्कारों में माना जाता था लेकिन अब बहुताय मात्रा में देखा जाता है कि पढ़ना लिखना तो हाथ पैर धोए बिना खाना खाने बैठ जाते हैं और खाकर अलसाकर सो जाते हैं। इस समय अपने क्षेत्र के अगल-बगल भगवान के दरबार मंे दीया-तेल के अभाव में बुझ-बुझ कर जल रहा हो व खाने बनाने में ढ़िबरी हाथों में रखना पड़ता रहा हो, लेकिन बच्चों के लालटेन का केरोसीन तेल कभी कम नही हो पाता था। वहीं उस लालटेन की रोशनी ने कितने घरों को उजाले से भर दिया जाता था। बताते चले कि तहसील क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले गांवों में लालटेन विलुप्त सी हो गई है तत्पश्चात इस समय देखा जाए तो बाजारों की दुकानों की चमक बढ़ गई है। प्रत्येक घर में टेलीवीजन, बिजली के बल्ब लगे हुए हैं। लोगांे की कमाई पहले की अपेक्षा बढ़ गई है। गांव-गांव में विकास दिख रहा है लेकिन शाम होते ही पढ़ाई लिखाई का माहौल पहले जैसा नही रह गया है। अब तो छत के ऊपर लोग जाने से कतराते हैं। अब हर जगह इंटरनेट सेवा हो गई है। हर हाथ में स्मार्ट फोन उपलब्ध है। हर आंख अपने में व्यस्त हैं। न बच्चे पढ़ने को बैठ रहे हैं, न ही अभिवावक अब बच्चों को इसकेे लिए प्रेरित करते हैं। आजकल अभिवावक अपने बच्चों को समय न देने कारण उन्हे मोबाइल, इंटरनेट आदि जैसी सुविधाएं मुहैया करवा देते हैं। यही आज का विकास है।

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