फाइलेरिया से बचने के लिए 10 अगस्त से चलेगा आईडीए अभियान

 

विश्व में दिव्यांगता का दूसरा प्रमुख कारण है फाइलेरिया

फतेहपुर। राष्ट्रीय फाइलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम के तहत जनपद में 10 अगस्त से फाइलेरिया से बचाव के लिए सर्वजन दवा सेवन (आईडीए) अभियान चलाया जाएगा। यह जानकारी मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. सुनील भारतीय ने दी। उन्होंने बताया कि फाइलेरिया बीमारी क्यूलेक्स नामक मादा मच्छर के काटने से फैलती है और यह लाइलाज है। यदि एक बार यह बीमारी हो गई तो पूर्णतया ठीक नहीं होती है। इसका सही से प्रबंधन न किया जाये तो यह व्यक्ति को आजीवन दिव्यांग बना देती है। इस बीमारी से बचाव का एकमात्र उपाय दवा का सेवन है। फाइलेरिया रोग से बचाव के लिए हर साल यह अभियान चलाया जाता है। इसलिए आईडीए अभियान के दौरान जब भी स्वास्थ्य कार्यकर्ता घर पर दवा खिलाने आयें तो उसका सेवन जरूर करें, । किसी तरह का कोई बहाना न करें। सभी के सहयोग से ही इस बीमारी का खात्मा संभव है।
इस अभियान में स्वयंसेवी संस्थाएं पाथ, सेंटर फार एडवोकेसी एंड रिसर्च सीफार और प्रोजेक्ट कंसर्न इंटेरनेशनल (पीसीआई) का भी सहयोग करेंगे। संचारी रोग नियंत्रण कार्यक्रम के नोडल अधिकारी डा. डॉ आर0 के0 वर्मा ने बताया कि आईडीए
अभियान के तहत तीन दवाओं की निर्धारित खुराक स्वास्थ्य कार्यकर्ता अपने सामने ही खिलाएंगे। फ़ाइलेरिया से बचाव की दवा का सेवन दो साल से कम आयु के बच्चों, गर्भवती और गंभीर रूप से बीमार व्यक्तियों को छोड़कर सभी को करना है। इस दवा का सेवन खाली पेट नहीं करना है । एक से दो वर्ष की आयु के बच्चों को केवल पेट से कीड़े निकालने की दवा
एल्बेंडाजोल की आधी गोली खिलाई जाएगी। जिला मलेरिया अधिकारी सुजाता ठाकुर ने बताया कि रक्तचाप,, शुगर,, अर्थरायीटिस या अन्य सामान्य रोग से ग्रसित व्यक्तियों को भी ये दवाएं खानी हैं। सामान्य लोगों को इन दवाओं के
खाने से किसी भी प्रकार के प्रतिकूल प्रभाव नहीं होता है। अगर किसी को दवा खाने के बाद उल्टी, चक्कर, खुजली या जी मिचलाने जैसी कोई लक्षण दिखाई देते हैं तो परेशान
न हों थोड़े समय बाद यह स्वतः ही ठीक हो जाते हैं।
इन समस्याओं के दिखने का यह तात्पर्य है कि उस व्यक्ति के शरीर में फाइलेरिया के कृमि मौजूद हैं, जो दवा खाने से मर जाते हैं। इसी वजह से ऐसे लक्षण उत्पन्न होते हैं। इसलिए दवा का सेवन जरूर करें। जिला स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी महेंद्र भारती ने बताया कि फाइलेरिया को हाथीपांव भी कहते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के अनुसार फाइलेरिया, दुनिया भर में दीर्घकालिक दिव्यांगता के प्रमुख कारणों में से एक है।

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