दोहराया जाएगा इतिहास, 5 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में सिर्फ महिला न्यायाधीश करेंगी सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट में पांच सितंबर को एकबार फिर से इतिहास दोहराया जाएगा जब न्यायमूर्ति आर भानुमति और न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी की पूरी तरह महिला न्यायाधीशों वाली पीठ किसी मामले पर सुनवाई करेगी। सुप्रीम कोर्ट में पहली बार 2013 में पूरी तरह महिलाओं वाली पीठ देखने को मिली थी। उस समय एक मामले पर सुनवाई के लिए न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्रा और न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई की पीठ बैठी थी। साल 2011 में न्यायमूर्ति देसाई को सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत किए जाने के बाद शीर्ष अदालत में दो महिला न्यायाधीश देखने को मिलीं थीं।

न्यायमूर्ति फातिमा बीवी सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त होने वाली पहली महिला न्यायाधीश थीं। उनके बाद सुजाता मनोहर, रूमा पाल, ज्ञान सुधा मिश्रा, रंजना प्रकाश देसाई, आर भानुमति, इंदु मल्होत्रा और फिर हाल में इंदिरा बनर्जी सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश नियुक्त हुईं। इनमें से न्यायमूर्ति बीवी, न्यायमूर्ति मनोहर और न्यायमूर्ति पाल उच्चतम न्यायालय में अपने पूरे कार्यकाल के दौरान एकमात्र महिला न्यायाधीश रहीं। न्यायमूर्ति सुजाता मनोहर ने बंबई उच्च न्यायालय के न्यायाधीश से अपने करियर की शुरुआत की थी। वह बाद में केरल उच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश बनीं। इसके बाद उन्हें उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया, जहां उनका कार्यकाल आठ नवंबर 1994 से 27 अगस्त 1999 तक रहा।

अभी तीन महिला न्यायधीश 
अगस्त में न्यायमूर्ति बनर्जी को शपथ दिलाए जाने के साथ ही उच्चतम न्यायालय के इतिहास में पहली बार तीन महिला न्यायाधीश हैं। स्वतंत्रता के बाद से शीर्ष अदालत में वह आठवीं महिला न्यायाधीश हैं। तीन वर्तमान महिला न्यायाधीशों में न्यायमूर्ति भानुमति सबसे वरिष्ठ हैं। उन्हें 13 अगस्त 2014 को उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया था।

बीवी फातिमा पहली महिला जज थीं
न्यायमूर्ति फातिमा बीवी फातिमा सुप्रीम कोर्ट में 1989 में जज बनीं थीं। उच्चतम न्यायालय के 1950 में गठन के 39 वर्षों के बाद 1989 में किसी महिला को शीर्ष अदालत का न्यायाधीश बनाया गया। केरल उच्च न्यायालय के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद उन्हें शीर्ष अदालत में नियुक्त किया गया था।

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