यूपी के टॉप मेडिकल संस्थानों में 20% डॉक्टरों की कमी, लोहिया में 5 दिन से कैंसर पीड़ित महिला को नहीं मिला वार्ड

 

उत्तर प्रदेश:  सरकार ODOP की तर्ज पर वन डिस्ट्रिक्ट वन मेडिकल कॉलेज बनाने का दावा कर रही है। लेकिन आलम यह है कि यूपी के टॉप मेडिकल संस्थानों में 20 फीसदी से ज्यादा एक्सपर्ट्स डॉक्टर के पद खाली हैं। ये वो मेडिकल कॉलेज हैं, जहां दिन-रात मरीजों की भीड़ रहती है।

बड़ी बात यह है कि हाई प्रोफाइल मरीज भी यहां से निराश होकर लौट रहे हैं। यहां तक कि विधायकों को भी इलाज नहीं मिल पा रहा है। कहीं कैंसर पीड़ित महिला को 5 दिन के बाद भी वार्ड नहीं मिला तो कहीं MLC से अभद्रता की गई।

 

 

अयोध्या के चौरे बाजार के रिजवारा गांव की विमला को कैंसर है। वह पति भदई और बेटे पवन कुमार के साथ लोहिया में इलाज कराने आईं। लेकिन, 5 दिन तक भर्ती नहीं किया गया। जब डॉक्टर ने MRI के लिए लिखा तो डेढ़ महीने की डेट मिली।

मरीज की बिगड़ती हालत को देखते हुए डॉक्टर ने बाहर से MRI कराने को कहा। MRI होकर रिपोर्ट आ गई लेकिन, भर्ती नहीं किया गया। संस्थान के सुपर स्पेशलिटी ब्लॉक के बाहर ही स्ट्रेचर पर रखकर तीमारदार इस इंतजार में हैं कि उसे भर्ती कर लिया जाएगा।

 

 

इससे पहले बीते बुधवार को देर रात करीब 11:30 बजे भाजपा MLC नरेंद्र भाटी इलाज के लिए लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान की इमरजेंसी में पहुंचे। उनके पेट में भारीपन और सीने में दर्द की शिकायत थी। यहां कैजुल्टी अफसर, जूनियर रेजीडेंट ड्यूटी पर थे। MLC ने समस्या बताई तो डॉक्टर ने पर्चा मांगा।

एमएलसी ने परिचय दिया तो जूनियर डॉक्टरों ने वरिष्ठ डॉक्टरों को फोन कर जानकारी दी। साथ ही पर्चा बनवाने के बाद ही इलाज कराने को कहा। अव्यवस्था, डॉक्टरों के ऐसे व्यवहार से खिन्न MLC वहां से निजी अस्पताल चले गए और इलाज कराया।

 

 

अगले दिन सुबह डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक से शिकायत की। सदन में भी मामला उठा तो डिप्टी सीएम ने संस्थान प्रशासन को तलब कर जांच के आदेश दिए। आनन-फानन में संस्थान प्रशासन ने जांच कराई तो डॉक्टर दोषी पाए गए।

डिप्टी सीएम के आदेश पर डॉक्टर को तत्काल बर्खास्त कर इमरजेंसी के ईएमओ को चेतावनी दी गई। जूनियर रेजीडेंट डॉ. तारिक शेख की सेवा समाप्त कर दी गई है। ईएमओ डॉ. राहुल कश्यप को चेतावनी पत्र जारी किया है।

 

 

गोंडा के परसोना गांव निवासी चार वर्षीय माही सबा को मोतियाबिंद था। उसका इलाज KGMU के नेत्ररोग विभाग में चल रहा था। 13 फरवरी को माही की आंख की सर्जरी के बाद वह डॉक्टर के फॉलोअप में थी। 3 अगस्त को जांच के लिए परिजन सबा को ओपीडी में लेकर आए थे। थर्ड फ्लोर पर नेत्र रोग विभाग में बच्ची की आंख में दवा डाली गई।

इसी दौरान वह खेलते हुए रैंप के पास पहुंच गई और रेलिंग से उसका पैर फिसल गया। इससे वह सिर के बल ग्राउंड फ्लोर पर आ गिरी। खून से लथपथ बच्ची को देखकर ओपीडी में अफरा-तफरी मच गई। पास खड़े सुरक्षा गार्डों ने बच्ची को उठाया और परिजन के साथ उसे ट्रामा सेंटर की कैजुअल्टी में भर्ती कराया। जहां पर एक्स-रे और खून समेत अन्य जांचें की गईं। बच्ची को सांस लेने में परेशानी हो रही थी, जिसके बाद उसे एम्बुबैग के सहारे भर्ती किया गया है।

 

 

सुरक्षा मानकों की कमी के कारण हुए इस हादसे के बाद भी विश्वविद्यालय प्रशासन ने कोई कदम नहीं उठाया। इस हादसे ने KGMU में मरीजों के इलाज के दावों के दौरान जानलेवा हादसों की पोल खोल दी।

यूपी में किडनी ट्रांसप्लांट का टॉप सेंटर SGPGI में औसतन हर सप्ताह 3 मरीजों का किडनी ट्रांसप्लांट किया जा रहा है। सालाना करीब 150 किडनी ट्रांसप्लांट हो पाते हैं। बावजूद इसके किडनी ट्रांसप्लांट के लिए कम से कम 9 महीने की वेटिंग है।

एक अनुमान के मुताबिक प्रदेश में हर साल लगभग 50 हजार किडनी के गंभीर रोगी सामने आ रहे हैं। इनको जिंदा रहने के लिए डायलिसिस या फिर किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है। कुछ ऐसा ही हार्ट पेशेंट के साथ भी है। वाल्व रिप्लेसमेंट जैसी कार्डियक सर्जरी में एक साल तक की वेटिंग है।

 

 

SGPGI के निदेशक प्रो.आरके धीमन ने बताया कि अभी 60 बेड हैं। जिसकी संख्या को 210 तक किया जाएगा। इसके अलावा नेफ्रोलॉजी में 14 बेड आईसीयू फैसिलिटी के साथ बढ़ाए जा रहे हैं। इतने ही बेड क्रिटिकल केयर मेडिसिन में भी बढ़ाए जा रहे हैं।

प्रदेश के गंभीर रोगियों को आसानी से इलाज मुहैया कराने के लिए 2 अन्य पहल की जा रही है। सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर ट्रीटमेंट ऑफ चिल्ड्रेन बोर्न विथ इन कंजेनिटल हार्ट डिजीज, अमेरिका के सलोनी हार्ट फाउंडेशन के साथ मिलकर हार्ट की गंभीर समस्याओं से जूझ रहे बच्चों के इलाज के लिए 480 करोड़ का बजट पास हुआ है।

 

 

उन्होंने बताया कि यूपी में मौजूदा समय 70 हजार गंभीर हार्ट डिजीज से जूझ रहे नवजात बच्चे हैं। 200 बेड का यह सेंटर बनने के बाद सालाना 5 हजार सर्जरी होंगी। इसी साल एडवांस डायबिटिक सेंटर की शुरुआत होने जा रही है। 50 करोड़ की लागत के इस प्रोजेक्ट से एक ही छत के नीचे डायबिटीज से जुड़े सभी इलाज हो सकेंगे।

500 करोड़ से 573 बेड का एडवांस पीडियाट्रिक सेंटर है। प्रदेश की 40% आबादी के लिए यह पहल इस कदर प्रभावी होगी कि बच्चों से जुड़े सभी बीमारियों का इलाज यहां आसानी से संभव होगा।

 

 

SGPGI समेत इन चिकित्सा संस्थान के डॉक्टरों की दलील है कि जिला अस्पताल के अलावा तमाम जिलों के मेडिकल कॉलेज भी रेफरल सेंटर बन चुके हैं। जिन मरीजों का इलाज आसानी से जिला अस्पताल या फिर अन्य मेडिकल कॉलेजों में हो सकता है, उसके लिए भी लखनऊ रेफर किया जा रहा है। नतीजतन गंभीर मरीजों के इलाज में देरी या रुकावट होती है।

वहीं, रविवार को राजभवन जैसे हाई प्रोफाइल इलाके में सड़क पर डिलीवरी होने के मामले में डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने कहा कि कई बिंदुओं को देखना पड़ेगा। डॉक्टर्स का भी पक्ष है। इसलिए पूरी घटना की जांच के आदेश प्रमुख सचिव को दिए गए हैं। जो भी होगा, आगे कार्रवाई की जाएगी।

 

 

 

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