मुंबई बॉलीवुड: थ्री इडियट्स के वायरस का रोल हो या मुन्ना भाई MBBS के डॉक्टर का, इन किरदारों को बोमन ईरानी ने सिल्वर स्क्रीन पर बेहतरीन तरीके से उतारा है। आज की स्ट्रगल स्टोरी में कहानी उन्हीं बोमन ईरानी की है।
शाम करीब 4 बजे मेरी बात बोमन ईरानी से हुई। बिजी शेड्यूल की वजह से हमारी बात टेलिफोनिक ही रही। हालचाल पूछने के बाद मैंने पहला सवाल किया।
मेरा जन्म 2 दिसंबर 1959 को मुंबई के एक ईरानी पारसी परिवार में हुआ था। मेरे जन्म के 6 महीने पहले ही पिता जी की मौत हो गई थी। उसके बाद परिवार की पूरी जिम्मेदारी मां ने ही निभाई।
5वीं-छठी क्लास तक मुझमें कॉन्फिडेंस की बहुत कमी थी। लोगों से बात करने में झिझकता था। मां के प्यार से धीरे-धीरे मैं खुद पर भरोसा करने लगा। उन्होंने मुझे स्कूल के हर प्रोग्राम में हिस्सा लेने के लिए प्रोत्साहित किया। मुझे एहसास हो गया कि अगर मैं ऐसा रहूंगा तो लोग मजाक बनाने लगेंगे। 7वीं क्लास के बाद मैं बिना झिझक के सभी काम करने लगा।
सिंगल पेरेंट्स की परेशानियां जो होती हैं, मां भी उससे गुजरीं। छोटा था तो मां के दुखों का एहसास नहीं था, लेकिन बढ़ती उम्र के साथ ये सारी चीजें समझ में आईं।
हमारी एक बेकरी शाॅप थी जहां पर मां और बुआ काम करती थीं, जिससे परिवार का खर्च निकलता था। मां दिन में दुकान संभालती और बुआ रात को। मां पर मेरे साथ 3 बहनों की भी जिम्मेदारी थी। मां के लिए बहुत मुश्किल था, तंगी भी बहुत थी।
पढ़ाई की बात करूं तो मैं बहुत तेज नहीं था। कुछ सब्जेक्ट में अच्छा था, लेकिन मैथ्स में बहुत ही कम नंबर आते थे। वहीं जब स्कूल में नाटक करने का मौका मिलता, तो मुझे बहुत अच्छा लगता।
फिल्में देखना भी बहुत पसंद था। मां ने कभी फिल्म देखने से नहीं रोका। मैं दिलीप कुमार, गुरु दत्त, सोहराब मोदी, महबूब खान जैसे कलाकारों की फिल्में देख कर बड़ा हुआ हूं।
फिल्मों से जुड़ी चीजें पढ़ने का भी शौक था। उस वक्त यूट्यूब जैसी चीजें तो थी नहीं इसलिए किताबों के जरिए ही इस दुनिया को देखता था। सिनेमा पर बेस्ड किताबें ही खरीदता था।
हमारी बेकरी थी, तो परिवार वालों का कहना था कि मैं उसी पर काम करूं और फैमिली बिजनेस को आगे ले जाऊं। मेरा मन ये काम करने का तो बिल्कुल नहीं था। हमेशा से मैं कुछ बड़ा करना चाहता था, जिसमें सिर्फ मेरी मेहनत शामिल हो।
सबसे पहले मैंने ताज होटल में 2 साल तक वेटर की नौकरी की। यहां पर काम करके मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला। यहां पर जो टिप मिलती थी, उसे मैं पिगी बैंक में इकट्ठा करता था।
ये बात तब की है, जब मैं 32 साल का था। मुझे फोटोग्राफी का भी शौक था, लेकिन उस जमाने में एक कैमरा खरीदना बहुत बड़ी बात थी। पैसे जमा कर मैंने एक छोटा सा कैमरा खरीद लिया। फिर उसी कैमरे से मैं स्पोर्ट्स पिक्चर क्लिक करने लगा। धीरे-धीरे वो तस्वीरें अखबारों में भी छपने लगीं। इसी दौरान मैंने एक फॉरेन मैगजीन को अपने फोटो बेचे, इससे अच्छा पैसा मिला।
मैं इस पैशन को नौकरी में तब्दील करना चाहता था। इस मकसद से कुछ पैसे जमा करके मैंने एक स्टूडियो खोल लिया। हालांकि, इसे खोलने से मुझे बहुत नुकसान हुआ। मुझे लगा कि स्टूडियो खोलने से फायदा होगा, लेकिन उल्टा हो गया। फाइनेंशियली भी बहुत नुकसान हुआ। स्टूडियो के रेंट देने तक के पैसे नहीं थे।
खराब स्थिति के बावजूद मैंने 2 साल तक उस स्टूडियो को खोले रखा। 2 साल बाद मेरी लाइफ में बॉलीवुड कोरियोग्राफर श्यामक डावर आए जिन्होंने मेरी पूरी लाइफ ही बदल कर रख दी।
श्यामक डावर एक बार स्टूडियो में फोटो क्लिक कराने आए थे। उन्हें मेरी क्लिक की गई तस्वीरें बहुत पसंद आईं। फिर बातों-बातों में उन्होंने मुझसे कहा- तुम तो एक्टर हो।
हंसते हुए मैंने कहा- मैं एक्टर तो नहीं हूं। एक्टिंग कभी नहीं की है।
इसके बाद भी वो अपनी बात पर अड़े रहे कि मैं एक बेहतरीन एक्टर हूं और मुझे एक्टिंग करनी चाहिए। फिल्में पसंद तो थीं, लेकिन कभी सोचा नहीं था कि मैं एक्टर बनूंगा।
इसके बाद वो मुझे अपने एक दोस्त के पास ले गए जो कि एक थिएटर में डायरेक्टर थे। उन्होंने मुझे एक प्ले में काम करने का मौका दिया। लोगों को मेरा वो प्ले बहुत पसंद आया, खूब तारीफें मिलीं। इसके बाद मैं एक के बाद एक प्ले करता गया। मैंने 14 साल तक थिएटर में प्ले किए। इससे मेरी एक्टिंग में निखार आता गया। यहां मैं हर दिन कुछ नया सीखता था इसलिए जब मुझे पहली फिल्म ऑफर हुई तो मैंने उसमें अपना बेस्ट दिया।
मैंने एक शॉर्ट फिल्म में काम किया था। इसे शूट करने में 8 दिन लगे थे। जब इसकी एडिटिंग हो रही थी तब विधु विनोद चोपड़ा ने देख लिया। उन्होंने ही मुझे राजकुमार हिरानी के साथ मुन्ना भाई MBBS में काम करने को कहा। उस वक्त मैं 44 साल का था।
इस फिल्म की सफलता के बाद मुझे एक के बाद दूसरी फिल्म मिलती गई।
फिल्म खोसला का घोंसला जब मुझे ऑफर हुई तो मैं डर गया था। मुझे लगा था कि मैं ये फिल्म नहीं कर पाऊंगा। दरअसल, इससे पहले मैंने जो भी फिल्में की थीं, उनके कैरेक्टर मुंबई बेस्ड थे। वहीं इस फिल्म का कैरेक्टर ठेठ दिल्ली वाले पंजाबी का था।
तब फिल्म के राइटर जयदीप साहनी ने मुझे इस चीज के लिए बहुत समझाया। वो मुझे कॉल करके ये कैरेक्टर और फिल्म में काम करने के लिए कहते थे। फिल्म में मैंने प्रॉपर्टी डीलर का किरदार निभाया था। उस कैरेक्टर को करीब से देखने के लिए मैं दिल्ली गया। वहां के कुछ प्रॉपर्टी डीलर से मिला। उनके तौर-तरीकों को देखा।
इस फिल्म को साइन करने से पहले मैंने लोगों को कहते हुए सुना था कि बोमन ईरानी को क्यों इसमें कास्ट किया जा रहा है। वो एक्टर ठीक है, लेकिन इस फिल्म और रोल के लिए सही नहीं है और वो इस रोल को नहीं कर पाएगा।
दिल्ली से वापस आने के बाद लोगों की इन बातों को मैंने चैलेंज के रूप में लिया और फिल्म में एक्टिंग कर खुद को साबित किया।
कोरोना काल में मैंने लोगों को स्क्रीनप्ले राइटिंग सिखाने का काम शुरू किया था, जो अभी तक जारी है। मैंने एक क्लास शुरू की जिसके लिए कोई भी फीस चार्ज नहीं करता हूं। इस राइटिंग क्लास को कोई भी जॉइन कर सकता है। जिसे भी राइटिंग सीखने का शौक है, वो इस क्लास से जुड़ सकता है।
इस क्लास को शुरू करने के पीछे मेरी ये सोच थी कि इस इंडस्ट्री को बेहतरीन डायरेक्टर्स मिल सकें। एक्टिंग की बहुत सारी क्लासेज चलती हैं, लेकिन राइटिंग की फील्ड में बहुत काम लोग ध्यान देते हैं। अब तक हम लोग राइटिंग के 630 सेशन कर चुके हैं।
बोमन ईरानी ने 2003 की फिल्म मुन्ना भाई MBBS से बॉलीवुड में एंट्री ली थी। मुन्ना भाई MBBS साइन करने के बाद बोमन ईरानी ने एव्रीबडी सेज आई एम फाइन, लेट्स टॉक, डरना मना है जैसी फिल्में साइन की थीं, जो मुन्ना भाई MBBS के पहले रिलीज हुईं।
लगभग 100 फिल्मों का हिस्सा रहे बोमन ईरानी ने शाहरुख खान, संजय दत्त और अमिताभ बच्चन जैसे कलाकारों के साथ स्क्रीन शेयर किया है। हर साल उनकी एक या दो फिल्में जरूर रिलीज होती हैं। पिछले साल उनकी फिल्म ऊंचाई रिलीज हुई थी, जिसमें उन्होंने अनुपम खेर, डैनी, और अमिताभ बच्चन के साथ काम किया है। अब तक वो 4 फिल्मों के लिए फिल्मफेयर अवाॉर्ड से सम्मानित किए गए हैं।
बोमन ने 1985 में जेनोबिया ईरानी से शादी की थी। शादी के बाद जेनोबिया ने दो बेटों, दानिश और कायोज को जन्म दिया था। उनके एक बेटे कायोज ईरानी फिल्म इंडस्ट्री में बतौर एक्टर एक्टिव हैं।