जापान 24 अगस्त को छोड़ेगा फुकुशिमा प्लांट का रेडियोएक्टिव पानी, समुद्र में बहाया जाएगा 133 करोड़ लीटर पानी

 

विदेश: जापान अपने खराब हो चुके फुकुशिमा न्यूक्लियर प्लांट में मौजूद ट्रीटेड रेडियोएक्टिव वॉटर को गुरुवार यानी 24 अगस्त को पैसिफिक ओशन में छोड़ेगा। जापान टाइम्स के मुताबिक, मंगलवार को मंत्रियों के साथ बैठक करने के बाद PM फुमियो किशिदा ने इसकी घोषणा की। किशिदा ने कहा- अगर मौसम सही रहा तो हम ये काम शुरू कर देंगे।

वहीं इस मामले में चीन की तरफ से भी बयान दिया गया है। चीनी विदेश मंत्रालय ने इसे भरोसा तोड़ने वाली बात कहा है। प्रवक्ता वेंग वेनबिन ने कहा- पानी को समुद्र में छोड़े जाना इसका सही सॉल्यूशन नहीं है। इसके असर को बाद में बदला नहीं जा सकेगा। इससे पहले पिछले हफ्ते साउथ अफ्रीका में भी जापान के इस फैसले के विरोध में रैली हुई थी।

 

इसके लिए इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी (IAEA) के चीफ राफेल ग्रौसी ने जापान में न्यूक्लियर प्लांट का दौरा किया था। न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, जापान के इस कदम का कोस्टल एरिया में रह रहे लोगों, चीन और साउथ कोरिया की जनता ने भी विरोध किया है।

इससे पहले किशिदा रविवार को प्लांट विजिट करने पहुंचे थे। उन्होंने टोक्यो में जापान की फिशरी इंडस्ट्री के लीडर्स से मुलाकात कर आश्वासन दिया था कि रेडियोएक्टिव वॉटर छोड़े जाने से मछली उद्योग और वहां के कर्मचारियों को नुकसान नहीं होगा। जुलाई में UN के न्यूक्लियर वॉचडॉग ने पानी छोड़े जाने के लिए अप्रूवल दिया था।

 

फुकुशिमा और जापान के फिशरी एसोसिएट्स को डर है कि एक बार प्लांट से पानी छोड़ने का काम शुरू हो गया, तो इंटरनेशनल मार्केट में कस्टमर उनकी मछली लेने से इनकार कर देंगे। जापान सरकार के मुताबिक, प्लांट से पूरा पानी छोड़े जाने में करीब 30 साल का समय लगेगा। प्लांट में मौजूद 133 करोड़ लीटर पानी को करीब 1 हजार ब्लू टैंकरों में स्टोर किया गया है।

न्यूक्लियर प्लांट को मेंटेन करने वाली कंपनी टोक्यो इलेक्ट्रिक पावर (TEPCO) ने बताया कि पानी की क्वांटिटी का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि ये 500 ओलंपिक साइज्ड स्विमिंग पूल को भरने के लिए काफी है। इस पानी को वहां से हटाए जाना इसलिए भी जरूरी है ताकि न्यूक्लियर प्लांट को नष्ट किया जा सके।

 

पैसिफिक ओशन में 132 करोड़ लीटर पानी छोड़े जाने को लेकर जापान की फिशिंग इंडस्ट्री और सिविल सोसाइटी ग्रुप्स ने भी चिंता जताई है। दरअसल, मार्च 2011 में आई सुनामी की वजह से फुकुशिमा के न्यूक्लियर प्लांट का कूलिंग और इलेक्ट्रिसिटी सिस्टम ठप हो गया था। गर्मी की वजह से वहां मौजूद तीनों रिएक्टर्स के कोर पिघल गए थे, जिसके चलते काफी ज्यादा मात्रा में रेडिएशन फैला था।

अल जजीरा के मुताबिक, न्यूक्लियर प्लांट से पानी छोड़े जाने के प्लान की घोषणा 2021 में की गई थी। तब कहा गया था कि ये काम अगले 2 सालों में शुरू हो जाएगा। जापान की रेगुलेटरी बॉडी ने 30 जून को ही अपना इंस्पेक्शन पूरा कर लिया था। UN की जांच के बाद प्लांट की देखभाल कर रही कंपनी TEPCO को पानी छोड़ने का परमिट मिल गया था। इसे 1 किलोमीटर के पाइप के जरिए छोड़ा जाएगा।

 

जापान के विदेश मंत्रालय के मुताबिक पानी को महासागर में छोड़ने से पहले साफ कर दिया गया है। हालांकि, कई रिपोर्ट्स के मुताबिक इसमें अभी भी ट्रीटियम के कण हैं। ट्राइटियम एक रेडियोएक्टिव मैटीरियल है, जिसे पानी से अलग करना काफी मुश्किल होता है।

ऐसे तो इससे कॉन्टैक्ट में आने पर ज्यादा नुकसान नहीं होता है, लेकिन अगर ये किसी के शरीर में काफी बड़ी मात्रा में चला जाए तो इससे कैंसर जैसी बीमारियां हो सकती हैं। जापान में न्यूक्लियर प्लांट का पानी और वेस्ट मैटिरियल काफी सालों से परेशानी बना हुआ है।

 

पानी को पैसिफिक महासागर में छोड़े जाने का साउथ कोरिया, चीन और ऑस्ट्रेलिया विरोध जता चुके हैं। वहीं जापान लगातार इस बात का आश्वासन देता रहा है कि वो इंटरनेशनल मानकों के आधार पर ट्रीटियम की मात्रा को कम करने के बाद ही पानी को डिस्चार्ज करेगा।

जापान के पैसिफिक सी में इस तरह से न्यूक्लियर पावर प्लांट का पानी छोड़ने से डरने की वजह जायज है। न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, 1940 के दशक में साउथ पैसिफिक में अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस जैसे देशों ने एक के बाद एक कई न्यूक्लियर टेस्ट किए थे। इसका खामियाजा वहां के मार्शल आईलैंड पर रहने वाले लोग अब तक भुगत रहे हैं।

 

हालांकि, न्यूक्लियर टेस्ट करने और न्यूक्लियर रिएक्टर्स को ठंडा रखने के लिए इस्तेमाल किया पानी महासागर में छोड़ने में काफी फर्क है। उसके बावजूद इसके असर को नकारा नहीं जा सकता है। 2011 की सुनामी के बाद साउथ कोरिया जैसे कई देशों ने सुरक्षा के लिहाज से फुकुशिमा से सीफूड और दूसरी खाने की चीजों के इम्पोर्ट पर रोक लगा दी थी।

 

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