श्रीलंका की मदद जारी रखेगा भारत, सांसदों ने आर्थिक तंगी के वक्त भारत के सपोर्ट को किया याद

 

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बुधवार को कहा कि भारत श्रीलंका में चल रहे संकट के बीच उसकी हर तरफ से मदद करना जारी रखेगा। जयशंकर वीडियो लिंक के जरिए श्रीलंका-भारत पार्लियामेंट्री फ्रेंडशिप एसोसिएशन के सांसदों को संबोधित कर रहे थे। विदेश मंत्री ने जोर देते हुए कहा कि हम भारत और श्रीलंका के बीच संबंधों को मजबूत करने के लिए हर क्षेत्र में काम कर रहे हैं।

इस दौरान श्रीलंका में भारत के डिप्लोमेट गोपाल बागले भी संसद में मौजूद थे। बागले ने कहा कि दोनों देशों के बीच फूड सिक्योरिटी, एनर्जी सिक्योरिटी, करेंसी सपोर्ट और लॉन्ग-टर्म इंवेस्टमेंट के क्षेत्रों में साझेदारी और बढ़ेगी। सांसदों ने पिछले साल श्रीलंका के आर्थिक संकट के समय भारत की तरफ से की गई मदद को याद किया।

 

श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने कहा था कि उनके देश का इस्तेमाल कभी भारत के खिलाफ नहीं किया जा सकेगा। ब्रिटेन और फ्रांस के दौरे पर रवाना होने से पहले रानिल ने कहा था- इस बात में किसी को कोई शक नहीं होना चाहिए कि हम चीन से कभी मिलिट्री एग्रीमेंट नहीं करेंगे।

चीन और श्रीलंका के रिश्ते मजबूत हैं, लेकिन हम ये भी साफ कर देना चाहते हैं कि हमारे देश में चीन का कोई मिलिट्री बेस नहीं हैं और न होगा। हम एक न्यूट्रल देश हैं।

 

भारत ने पिछले साल श्रीलंका को 4 बिलियन डॉलर से अधिक की आर्थिक सहायता दी थी। इसमें जरूरी चीजों और फ्यूल का निर्यात शामिल है। श्रीलंका में आर्थिक संकट का प्रमुख कारण फॉरेक्स रिजर्व की कमी का होना था। इसके कारण श्रीलंका की जनता पूर्व राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के खिलाफ सड़कों पर उतर गई थी। आखिर में उन्हें देश छोड़कर भागना पड़ा था।

 

2019 में तत्कालीन राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने टैक्स में कटौती का लोकलुभावन दांव खेला, लेकिन इससे श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा। एक अनुमान के मुताबिक, इससे श्रीलंका की टैक्स से कमाई में 30% तक कमी आई, यानी सरकारी खजाना खाली होने लगा।

1990 में श्रीलंका की GDP में टैक्स से कमाई का हिस्सा 20% था, जो 2020 में घटकर महज 10% रह गया। टैक्स में कटौती के राजपक्षे के फैसले से 2019 के मुकाबले 2020 में टैक्स कलेक्शन में भारी गिरावट आई।

 

पिछले एक दशक के दौरान श्रीलंका की सरकारों ने जमकर कर्ज लिए, लेकिन इसका सही तरीके से इस्तेमाल नहीं किया। 2010 के बाद से ही लगातार श्रीलंका का विदेशी कर्ज बढ़ता गया। श्रीलंका ने अपने ज्यादातर कर्ज चीन, जापान और भारत जैसे देशों से लिए हैं।

2018 से 2019 तक श्रीलंका के प्रधानमंत्री रहे रानिल विक्रमसिंघे ने हंबनटोटा पोर्ट को चीन को 99 साल की लीज पर दे दिया था। ऐसा चीन के लोन के पेमेंट के बदले किया गया था। ऐसी नीतियों ने उसके पतन की शुरुआत की।

 

इसके अलावा उस पर वर्ल्ड बैंक, एशियन डेवलेपमेंट बैंक जैसे ऑर्गेनाइजेशन का भी पैसा बकाया है। साथ ही उसने इंटरनेशनल मार्केट से भी उधार लिया है। 2019 में एशियन डेवलेपमेंट बैंक ने श्रीलंका को एक ‘जुड़वा घाटे वाली अर्थव्यवस्था’ कहा था। जुड़वा घाटे का मतलब है कि राष्ट्रीय खर्च राष्ट्रीय आमदनी से अधिक होना।

 

श्रीलंका की एक्सपोर्ट से अनुमानित आय 12 अरब डॉलर है, जबकि इम्पोर्ट से उसका खर्च करीब 22 अरब डॉलर है, यानी उसका व्यापार घाटा 10 अरब डॉलर का रहा है। श्रीलंका जरूरत की लगभग सभी चीजें जैसे-दवाएं, खाने के सामान और फ्यूल के लिए पूरी तरह इम्पोर्ट पर निर्भर है।

ऐसे में विदेशी मुद्रा की कमी की वजह से वह ये जरूरी चीजें नहीं खरीद पा रहा है। पिछले 2 वर्षों में श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार 70% तक घट गया। श्रीलंका में महंगाई दर 50% से ऊपर है।

 

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