प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि लिंग परिवर्तन कराना एक सांविधानिक अधिकार है और अगर आधुनिक समाज में किसी व्यक्ति को अपनी पहचान बदलने के इस निहित अधिकार से वंचित करते हैं या स्वीकार नहीं करते हैं तो हम सिर्फ लिंग पहचान विकार सिंड्रोम को प्रोत्साहित करेंगे।
कोर्ट ने मामले में यूपी के पुलिस महानिदेशक को एक महिला कांस्टेबल द्वारा लिंग परिवर्तन कराने की मांग के प्रार्थना पत्र को निस्तारित करने का निर्देश दिया है। इसके साथ ही यूपी सरकार से इस मामले में जवाब दाखिल करने को कहा है। यह आदेश न्यायमूर्ति अजीत कुमार ने नेहा सिंह की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है।
कोर्ट ने कहा कि कभी-कभी ऐसी समस्या घातक हो सकती है। क्योंकि ऐसा व्यक्ति विकार, चिंता, अवसाद, नकारात्मक आत्म-छवि और किसी की यौन शारीरिक रचना के प्रति नापसंदगी से पीड़ित हो सकता है। यदि इस तरह के संकट को कम करने के लिए मनोवैज्ञानिक उपाय विफल हो जाते हैं तो सर्जिकल हस्तक्षेप करना चाहिए।
मामले में याची ने हाईकोर्ट के समक्ष आग्रह किया कि वह जेंडर डिस्फोरिया से पीड़ित है और खुद को एक पुरुष के रूप में पहचानती है। वह सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी कराना चाहती है। याची ने कहा कि उसने पुलिस महानिदेशक के समक्ष इस संबंध में 11 मार्च को अभ्यावेदन किया है, लेकिन इसपर अभी कोई निर्णय नहीं लिया गया है।
इस वजह से उसने यह याचिका दाखिल की है। याची के अधिवक्ता की ओर से राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ व अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश का हवाला दिया गया। कहा, इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आवेदन को रोकना उचित नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने लिंग पहचान को व्यक्ति की गरिमा का अभिन्न अंग घोषित किया है। कोर्ट ने कहा कि यदि कोई ऐसा नियम नहीं है तो राज्य केंद्रीय कानून के अनुरूप ऐसा अधिनियम बनाना चाहिए। कोर्ट ने मामले में सुनवाई के लिए 21 सितंबर की तारीख तय की है।