गोरखपुर में जल्द करोड़पति बनने की चाह में सृष्टि इंफ्रा एंड डेवलपर का संचालक अक्षय उर्फ हर्षित मिश्रा धोखे की राह पर चल पड़ा। पहले जिस कंपनी के लिए काम करता था, उन्हें धोखा दिया। साथ काम करने वाले एक सुपरवाइजर की मदद से सृष्टि इंफ्रा एंड डेवलपर नाम से अपनी कंपनी बनाई। बाघागाड़ा के पास दूसरे की जमीन को कागजों में शारदा सिटी दिखाकर धोखे से करीब 235 प्लाॅट भी बेच दिए। सभी से एडवांस के तौर पर ढाई से साढ़े तीन लाख रुपये जमा भी करवाए गए। कई खरीदारों की जमीन रजिस्ट्री भी करवाई थी। लेकिन कब्जा एक को भी नहीं दिलाया गया।
रियल इस्टेट कारोबार में अवैध कमाई का चस्का भी अक्षय मिश्रा (हर्षित) को रियल इस्टेट की दूसरी कंपनी से लगा था। 2016 में अक्षय उर्फ हर्षित मिश्रा ने शहर के एक रियल इस्टेट कंपनी में सुपरवाइजर के तौर पर काम शुरू किया था। तीन वर्ष तक काम करने के बाद अपने एक रिश्तेदार के साथ हर्षित ने अपनी रियल इस्टेट कंपनी, सृष्टि इंफ्रा एंड डेवलेपर्स कंपनी बना ली। नंदानगर के विजय कुमार राय ने भी अक्षय के साथ सुपरवाइजर का काम शुरू किया था। दोनों सुपरवाइजर, कंपनी की साइट पर खरीदारों को लेकर जाते थे और जमीन दिखाते थे। इन्हें जमीन के फायदे के साथ रजिस्ट्री और बैनामे की बात बताकर लिखा-पढ़ी में दस्तावेजों को दिखाते थे।
खरीदार से एडवांस बुकिंग अपने नाम से लेते थे और कमीशन अपने पास रखकर बाकी धन कंपनी के खाते में जमा करवाते थे। इस दौरान फर्म से जुड़ने के बाद हर्षित ने मोटे मुनाफे की चाह में कंपनी के साथ धोखा शुरू कर दिया। साथ ही दूसरे सहयोगी विजय राय को भी मिला लिया। बाघागाड़ा, तालनवर इलाके में जमीन से सटे करीब 20 से 30 डिस्मिल जमीन बैनामा खारिज दाखिल करवाया। ये फंड उसने अपने रिश्तेदार और दूसरे सहयोगी के संपर्क से बाजार से कर्ज के तौर पर लिया था। जमीन बैनामा करवाने के बाद हार्षित ने रुस्तमपुर में सृष्टि इंफ्रा की दफ्तर खोली।
यहां तालनवर वाली साइट को शारदा सिटी बनाकर बेचने के काम शुरू किया। लेकिन ये सब काम सिर्फ कागजों में ही होता रहा। मौके पर उस 30 डिसमिल जमीन ही उसके फर्म के नाम बैनामा थी। वह ग्राहकों को नक्शा दिखाता और जिस जमीन पर बैनामा कराया था, उसके पीछे की जमीन फर्म की बताकर ढाई से तीन लाख रुपये एडवांस लेता था। बाकी रकम का किस्त तय कर देता था। इस तरह उसने 235 जमीनों की बुकिंग और रजिस्ट्री कर दी। अगर जिला प्रशासन इस फर्म के नाम से हुई रजिस्ट्री की जांच कर ले तो रजिस्ट्री ऑफिस के जिम्मेदारों का भी नाम सामने आ जाएगा।
जमीन से जुड़े लोगों ने बताया कि अक्षय उर्फ हर्षित ने खरीदारों को जमीन भी रजिस्ट्री कर दी थी। इंजीनियर प्रभाकर यादव के पिता रामाश्रय यादव सरकारी सेवा से सेवानिवृत्त हो गए थे। इन्हें करीब चार साल पहले तालनवर की शारदा सिटी के झांसे में आकर दो हजार स्क्वायर फुट जमीन खरीद ली थी। 20 लाख रुपये देकर उन्होंने अपनी रजिस्ट्री भी करवाई थी। लेकिन जमीन पर कब्जे की बात पर हर बार जमीन बदलने की बात बोलकर इंतजार करने का आश्वासन फर्म की तरफ से दिया जाने लगा
दो से तीन वर्ष पहले जिन खरीदारों ने अपना एडवांस और किस्त देकर लंबा इंतजार किया, उन्हें फर्म की तरफ से अक्सर बेइज्जत भी किया जाता था। अधिकतर खरीदार बिहार या कुशीनगर- देवरिया के होते थे। इंतजार के बाद जब वे अपने धन की वापसी का दबाव बनाते थे तो दफ्तर पर ही इसके गुर्गे शराब के नशे में उनसे बदसलूकी भी करते थे।