विदेश चीन हिंद महासागर में फिर हदों को लांघने के मंसूबे में है। रिसर्च सर्वे के नाम पर आने वाला चीन का सबसे एडवांस जासूसी जहाज शी यान-6 अक्टूबर में श्रीलंका में लंगर डालने की तैयारियों में जुटा है।
चीन ने नई दिल्ली में सितंबर में होने वाले महत्वपूर्ण जी 20 शिखर सम्मेलन के बाद अपने सर्वे शिप के लिए मंजूरी मांगी है। श्रीलंका की नौसेना ने अपनी ओर से अनापत्ति जारी करते हुए रक्षा और विदेश मंत्रालय को सिफारिश भेज दी है।
सूत्रों के अनुसार संभावना है कि श्रीलंका की सरकार इस महीने के आखिर तक इस सर्वे शिप को औपचारिक अनुमति जारी कर देगी। पिछले साल भारत ने चीन के युआन वेग 5 के श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर रिसर्च के नाम पर पहुंचने का कड़ा विरोध दर्ज कराया था। इसके बावजूद एक साल बाद ही चीन रिसर्च के नाम पर अपना एक और एडवांस शिप भेज रहा है।
थिंक टैंक फैक्टम के उदित देवाप्रिया का कहना है कि दक्षिण चीन सागर में जारी तनाव को देखते हुए भी सिंगापुर की ओर से चीन के जहाजों को सर्विसिंग की सुविधा दी जाती है। सिंगापुर को ऐसा नहीं करना चाहिए। बंगाल की खाड़ी और हिंद महासागर क्षेत्र में शांति बनाए रखने के लिए श्रीलंका को विदेशी जहाजों के बारे में SOP बनानी होगी।
चीन जहाज को श्रीलंका भेजता है तो उसके विस्तारवादी मंसूबों की दुनिया में एक बार फिर कलई खुलेगी। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का यह स्टैंड मजबूत हाेगा कि चीन हिंद महासागर में दखल और अशांति को बढ़ा रहा है।
चीन इन शिप को रिसर्च का नाम देता है, लेकिन इनमें पावरफुल मिलिट्री सर्विलांस सिस्टम होते हैं। श्रीलंकाई बंदरगाह पर पहुंचने वाले चीनी जहाजों की जद में आंध्रप्रदेश, केरल और तमिलनाडु के कई समुद्री तट आ जाते हैं।
सामरिक मामलों के विशेषज्ञ असीरी फर्नाडा का कहना है कि श्रीलंका को भारत की आपत्ति काे पहले ध्यान में रखना चाहिए। भारत, श्रीलंका का बड़ा और शक्तिशाली पड़ोसी देश है। फर्नाडा का कहना है कि चीन के किसी भी नेवल एडवांसमेंट से भारत को आपत्ति होना लाजिमी है। भारत को आपत्ति होने पर श्रीलंका को चीन के शी यान-6 रिसर्च शिप को आने की मंजूरी नहीं देनी चाहिए।