वाराणसी। बनारसी साड़ी की खूबियां अब क्यूआर कोड बताएगा। इसे स्कैन करते ही साड़ी की फैब्रिक, उसकी बुनाई, उसमें इस्तेमाल होने वाले धागे, जरी के साथ ही उसकी गुणवत्ता की पूरी जानकारी सामने आ जाएगी। रामनगर के कारोबारी कुणाल मौर्य ने 300 बनारसी साड़ियों में क्यूआर कोड लगवाया और खासियत के साथ पूरी रिपोर्ट हथकरघा विभाग को सौंप दी है। विभाग ने इसे पसंद किया है। कारीगरों को वाजिब श्रम मूल्य और उपभोक्ताओं को सही उत्पाद उपलब्ध कराने के उद्देश्य से साड़ियों में क्यूआर कोड की टैगिंग की गई है।
इससे साड़ी में इस्तेमाल रेशम, धागे, जरी असली हैं या नहीं, इसकी जानकारी मिल जाएगी। दरअसल, आईआईटी दिल्ली से पढ़ाई कर चुके कुणाल मौर्य अपना पुश्तैनी काम संभाल रहे हैं। कुणाल ने बताया कि क्यूआर कोड को साड़ी के किनारे ब्रांड नेम के नीचे लगाया गया है। इसे मोबाइल कैमरे से स्कैन करने पर एक लिंक दिखेगा। लिंक खोलते ही साड़ी का पूरा ब्योरा ग्राहक के सामने होगा। नई व्यवस्था से बनारसी साड़ी की लोकप्रियता और बढ़ेगी। विश्वसनीयता बनाए रखी जा सकेगी। ब्रांड नेम का दुरुपयोग नहीं हो सकेगा। नकली साड़ियां नहीं बेची जा सकेंगी।
आईआईटी दिल्ली से टेक्सटाइल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर चुके कुणाल मौर्य साड़ी का पुश्तैनी कारोबार संभाल रहे हैं। वह चौथी पीढ़ी के युवा हैं। पूरा परिवार हस्तकरघा बुनकरी से जुड़ा है। उनके नवीन प्रयोग से खरीदारों को पावरलूम और हैंडलूम की साड़ियों की जानकारी मिल सकेगी। साड़ी की गुणवत्ता की परख हो जाएगी।
कुणाल ने बताया कि तकनीक में नवीनता, सुधार व विकास के लिए हैंडलूम विभाग, आईआईटी बीएचयू के प्रोफेसर की मदद ली जा रही है। तकनीक में लगातार संशोधन की जरूरत पड़ेगी। इसकी मदद से सरकार बनारसी साड़ियों की बिक्री का सही डेटा भी जुटा सकती है।
कुणाल ने बताया कि इस कारोबार से जुड़े 11 फीसदी कारीगर हर वर्ष पेशे को छोड़ रहे हैं। इसी तरह पलायन जारी रहा तो 2030 तक कारीगर नहीं बचेंगे। पुरानी परंपरा को जीवंत रखने में यह तकनीक सफल होगी
बनारसी साड़ियों की पूरी जानकारी क्यूआर कोड से देने का यह पहला प्रयोग है। इससे नकली और असली साड़ी की पहचान होगी। इसका लाभ बुनकरों को भी मिलेगा। तकनीक से सभी कारोबारियों को जोड़ा जाएगा।