मोरक्को में 7.2 तीव्रता से आया भूकंप, 820 की हुई मौतें; ये इस इलाके में आया 120 साल का सबसे ताकतवर भूकंप

 

विदेश। अफ्रीकी देश मोरक्को में भूकंप से अब तक 820 लोगों की मौत हो चुकी है। 329 लोग जख्मी हो गए हैं। मोरक्को जियोलॉजिकल सेंटर ने बताया कि भूकंप की तीव्रता 7.2 थी। यह शुक्रवार की देर रात आया। हालांकि, US जियोलॉजिकल सर्वे ने इसकी तीव्रता 6.8 बताई है। कहा है कि ये इस इलाके में 120 साल में आया सबसे ताकतवर भूकंप है।

मोरक्को के स्टेट टेलीविजन ने बताया कि भूकंप की वजह से कई इमारतें ढह गईं हैं। सोशल मीडिया पर भूकंप से जुड़े कई वीडियो तेजी से वायरल हो रहे हैं, जिसमें लोग भागते हुए नजर आ रहे हैं।

 

 

भूकंप का एपिसेंटर एटलस पर्वत के पास इघिल नाम का गांव बताया जा रहा है, जो माराकेश शहर 70 किलोमीटर की दूरी पर है। भूकंप की गहराई जमीन से 18.5 किलोमीटर नीचे थी। पुर्तगाल और अल्जीरिया तक भूकंप के झटके महसूस किए गए।

भूकंप से इमारतें मलबे और धूल में तब्दील हो गईं। UNESCO की विश्व धरोहर स्थल ऐतिहासिक माराकेच में पर्यटकों का ध्यान खींचने वाली लाल दीवारों के कुछ हिस्से भी क्षतिग्रस्त हुए हैं। US जियोलॉजिकल सर्वे के मुताबिक, उत्तरी अफ्रीका में भूकंप काफी दुर्लभ है। इससे पहले 1960 में अगादिर के पास 5.8 तीव्रता का भूकंप आया था। तब हजारों लोगों की मौत हो गई थी।

 

 

हमारी धरती की सतह मुख्य तौर पर 7 बड़ी और कई छोटी-छोटी टेक्टोनिक प्लेट्स से मिलकर बनी है। ये प्लेट्स लगातार तैरती रहती हैं और कई बार आपस में टकरा जाती हैं। टकराने से कई बार प्लेट्स के कोने मुड़ जाते हैं और ज्‍यादा दबाव पड़ने पर ये प्‍लेट्स टूटने लगती हैं। ऐसे में नीचे से निकली ऊर्जा बाहर की ओर निकलने का रास्‍ता खोजती है और इस डिस्‍टर्बेंस के बाद भूकंप आता है। इससे जमीन में फॉल्ट लाइन्स बनती हैं।

11 मार्च 2011 को जापान में 9.1 तीव्रता का अब तक का सबसे शक्तिशाली भूकंप आया था। इस भूकंप ने न सिर्फ लोगों की जान ली, बल्कि धरती की धुरी को 4 से 10 इंच तक खिसका दिया था। साथ ही पृथ्वी की रोजाना चक्कर लगाने की रफ्तार में भी वृद्धि हुई।

 

 

उस वक्त USGS के सीस्मोलॉजिस्ट पाल अर्ले ने कहा था कि इस भूकंप ने जापान के सबसे बड़े द्वीप होन्शू को अपनी जगह से करीब 8 फीट पूर्व की तरफ खिसका दिया है। इस दौरान पहले 24 घंटे में 160 से ज्यादा भूकंप के झटके आए थे। इनमें से 141 की तीव्रता 5 या इससे ज्यादा थी। जापान में आए इस भूकंप और सुनामी ने 15 हजार से ज्यादा लोगों की जान ली थी।

जापान भूकंप के सबसे ज्यादा संवेदनशील क्षेत्र में है। यह पैसेफिक रिंग ऑफ फायर क्षेत्र में आता है। रिंग ऑफ फायर ऐसा इलाका है जहां कई कॉन्टिनेंटल के साथ ही ओशियनिक टैक्टोनिक प्लेट्स भी हैं। ये प्लेट्स आपस में टकराती हैं तो भूकंप आता है, सुनामी उठती है और ज्वालामुखी फटते हैं।

 

 

इस रिंग ऑफ फायर का असर न्यूजीलैंड से लेकर जापान, अलास्का और उत्तर व साउथ अमेरिका तक देखा जा सकता है। दुनिया के 90% भूकंप इसी रिंग ऑफ फायर क्षेत्र में आते हैं। यह क्षेत्र 40 हजार किलोमीटर में फैला है। दुनिया में जितने सक्रिय ज्वालामुखी हैं, उनमें से 75% इसी क्षेत्र में हैं। 15 देश इस रिंग ऑफ फायर की जद में हैं।

साल 2022 में ऑस्ट्रेलिया के भूवैज्ञानिकों ने धरती पर मौजूद सभी टैक्टोनिक प्लेटों का एक नया नक्शा तैयार किया था। इसमें बताया गया था कि इंडियन प्लेट और ऑस्ट्रेलियन प्लेट के बीच माइक्रोप्लेट को नक्शे में शामिल किया गया है। साथ ही कहा गया था कि भारत यूरोप की तरफ खिसक रहा है।

 

 

इससे अंदेशा जताया जा रहा है कि आने वाले दिनों में इन दो प्लेटों के टकराव से हिमालय सहित उत्तरी हिस्सों में भीषण भूकंप आ सकता है। ऑस्ट्रेलिया के यूनिवर्सिटी ऑफ एडिलेड में डिपार्टमेंट ऑफ अर्थ साइंसेस के लेक्चरर डॉ. डेरिक हैस्टरॉक और उनके साथियों ने मिलकर ये नक्शा तैयार किया है।

डॉ. डेरिक ने कहा है कि हमारा नक्शा पिछले 20 लाख सालों में धरती पर आए 90 फीसदी भूकंपों और 80% ज्वालामुखी विस्फोटों की पूरी कहानी बताता है। वहीं वर्तमान मॉडल सिर्फ 65% भूकंपों की जानकारी देता है। इस नक्शे की मदद से लोग प्राकृतिक आपदाओं की गणना कर सकते हैं।

 

26 दिसंबर 2004 को इंडोनेशिया में आए भूकंप और फिर सुनामी के चलते अंडमान-निकोबार द्वीप समूह का इंदिरा पॉइंट जलमग्न हो गया था। यह द्वीप सुमात्रा से 138 किमी की दूरी पर स्थित है।

यहां पर एक ही लाइट हाउस है, जिसका उद्घाटन 30 अप्रैल 1972 को हुआ था। यह भारत के एकदम दक्षिण में स्थित है और इसे भारत का आखिरी बिंदु भी कहा जाता है।

इसका नाम भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नाम पर रखा गया है। इंदिरा पॉइंट का लाइट हाउस भारत होते हुए मलेशिया और मलक्का जाते हुए जहाजों को रोशनी देने का काम करता है।

 

भारत में 204 साल पहले यानी साल 1819 में गुजरात के भुज में भूकंप से टापू बन गया था। इसे अल्लाह बंद नाम से जाना जाता है। वैज्ञानिकों की मानें तो रिक्टर पैमाने पर 7.8 से अधिक तीव्रता के भूकंप आने पर ऐसा होना संभव है।

इसकी वजह जमीन के भीतर प्लेटों के बीच दरार को माना जा सकता है। एक्सपर्ट का कहना है कि यह प्लेटें लगातार मूवमेंट करती हैं। कई बार इनके बीच दरार होती है।

 

 

ऐसे में समुद्र के भीतर अगर 7.5 से ज्यादा तीव्रता और अधिक गहराई का भूकंप आता है तो यह प्लेटें कई मर्तबा एक-दूसरे के ऊपर चढ़ जाती हैं। अगर प्लेटें 6-7 मीटर की भी ऊंचाई ले लेती हैं तो वह टापू जैसी स्थिति हो जाती है।

अप्रैल 2015 में आए नेपाल के विनाशकारी भूकंप ने सैकड़ों जानें ही नहीं लीं, बल्कि उसने हिमालयी देश के भूगोल को भी बिगाड़ दिया था। यूनिवर्सिटी ऑफ कैंब्रिज के टैक्टोनिक एक्सपर्ट जेम्स जैक्सन ने बताया कि भूकंप के बाद काठमांडू के नीचे की जमीन तीन मीटर यानी करीब 10 फीट दक्षिण की ओर खिसक गई।

 

 

हालांकि, दुनिया की सबसे बड़ी पर्वत चोटी एवरेस्ट के भूगोल में किसी बदलाव के संकेत नहीं हैं। नेपाल में आया यह भूकंप 20 बड़े परमाणु बमों जितना शक्तिशाली था।

एडिलेड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक सैंडी स्टेसी ने दावा किया था कि हिमालय की वजह से दबाव के चलते उत्तर की ओर बढ़ रहीं भारतीय टैक्टोनिक प्लेट्स; जिन्हें यूरेशियन प्लेट कहा जाता है, उत्तरपूर्व की तरफ 10 डिग्री नीचे चली गई हैं। इस वजह से भूकंप के वक्त कुछ ही समय में भारत का एक हिस्सा करीब एक से दस फीट तक नेपाल के नीचे ख‍िसक गया है। इस पूरी भौगोलिक प्रक्रिया में हिमालय का करीब एक से दो हजार वर्ग मील क्षेत्रफल ख‍िसका है।

 

 

अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी के लेमोंट-डोहर्टी अर्थ ऑब्जर्वेट्री के एसोसिएट रिसर्च प्रोफेसर कोलिन स्टार्क के मुताबिक नेपाल की सीमा से लगे बिहार में धरती की सतह की ऊपरी चïट्टान (जोकि चूना पत्थर की चïट्टानें हैं) चंद सेकेंड में उत्तर दिशा की ओर खिसक कर नेपाल के नीचे समा गई।

भारतीय प्लेट में हुए इस घर्षण से नेपाल के भरतपुर से लेकर हितौदा होते हुए जनकपुर जोन पर इसका असर हुआ है। इसी इलाके से लगी भारतीय जमीन (पूर्वी-पश्चिमी चंपारण) नेपाल की सतह के नीचे चली गई है।

 

 

यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि पूरा भारतीय उपमहाद्वीप बहुत ही मंद गति से नेपाल और तिब्बत की फाल्ट (दरार) के नीचे जा रहा है। भारतीय उप महाद्वीप के नेपाल और तिब्बत की सतह के नीचे जाने की रफ्तार हर साल 1.8 इंच होती है।

25 सितंबर 2013 को पाकिस्तान के बलूचिस्तान में आए 7.8 की तीव्रता वाले भूकंप से तटीय शहर ग्वादर में समुद्र में एक टापू बन गया था। अंडे के आकार का यह टापू 250 से 300 फीट लंबा और पानी की सतह से करीब 60-70 फीट ऊपर था। इसकी सतह खुरदुरी है और अधिकतर क्षेत्र में कीचड़ था। कुछ क्षेत्रों में रेत भी थी। इसके एक क्षेत्र में ठोस चट्टान भी थी।

 

 

 

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