हमीरपुर। सुमेरपुर, आजादी के दीवानों की प्रासंगिकता को देखते वर्णिता संस्था के तत्वावधान में विमर्श विविधा के अन्तर्गत जरा याद करो कुर्बानी के तहत 97वीं समर के महान सूरमा नाना साहब पेशवा की पुण्यतिथि 24 सितंबर 1859 पर संस्था के अध्यक्ष डा.भवानीदीन ने उन्हें सुमनान्जलि दी।
कहा नाना साहब सही अर्थों में 1857 के स्वातंत्र्य समर के महान शिल्पकार थे। उनके योगदान को बिस्मृत नहीं किया जा सकता है। नाना का जन्म 19 मई 1824 को माधव नारायण भट्ट और माता गंगा बाई के घर हुआ था। इनकी जन्मभूमि कुछ लोग बिठूर मानते तो कुछ लोग महाराष्ट्र का वेणुग्राम, इनके बचपन का नाम धोडोपंत था। पूना के शासक बाजीराव पेशवा द्वितीय के कोई संतान नहीं थी।उन्होंने माधवनारायन भट्ट के पुत्र को गोद ले लिया, नाना साहब ने बिठूर मे ही अस्त्र शस्त्रों का ज्ञान प्राप्त किया। यहीं पर रानी लक्ष्मीबाई ने घुड़सवारी तथा अस्त्र शस्त्र के संचालन का ज्ञान प्राप्त किया। क्योंकि रानी अर्थात मनु के पिता मोरोपंत बिठूर में ही रहते थे।1851 मे बाजीराव द्वितीय की मृत्यु हो गई। अब नाना साहब ने राज्य का भार संभाला। अंग्रेजों ने बाजीराव द्वितीय को बिठूर आने के बाद पेंशन बंद कर दी थी, नाना को भी पेंशन नहीं मिली, पेंशन बहाली के लिए अजीमुल्ला खान के द्वारा लंदन तक पहल की। पर सफलता नहीं मिली। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में नाना साहब की केन्द्रीय भूमिका थी, रानी लक्ष्मी बाई, तात्याटोपे और कुछ तत्कालीन सूरमाओं ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे। नाना ने कानपुर में कब्जा कर लिया था। वहां पर गोरों का शासन नहीं रहा था। पर गोरों की भारी फौज और भारतीय भितरघातियों का सहयोग तथा प्रबंधन के फलस्वरूप नाना को कानपुर छोड़ कर नेपाल चले गए। कई युद्धों में नाना ने गोरों को शिकस्त दी। कालांतर में यह सत्तावनी सूरमा 24 सितंबर 1859 को नहीं रहा।कार्यक्रम मे अवधेश कुमार गुप्ता एडवोकेट, अशोक अवस्थी, बंसतलाल कसौधन कर्वी, रामबाबू गुप्ता, मुन्ना विश्वकर्मा, लखन और रमेशचंद्र कुशवाहा आदि शामिल रहे।