न्यूज वाणी
ब्यूरो संजीव शर्मा
न्यूज वाणी इटावा। राष्ट्रीय राजनीति के वर्तमान परिवेश को लेकर मोहल्ला कटरा सेवाकली सम्पादक सियासी अखाड़ा संयोजक कौमी तहफ्फुज कमेटी एवम पूर्व सांसद कांशीराम के चुनाव प्रभारी रहे जनाब खादिम अब्बास के आवास पर एक गोष्ठी का आयोजन हुआ जिसमें पूर्व कस्टम अधिकारी एवम् अंबेडकर समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष तेज सिंह ,राष्ट्रीय महासचिव शबनम सिंह, राष्ट्रीय महासचिव हाफिज गुलाम सरवर के साथ अन्य क्षेत्रीय बौद्धिक लोग उपस्थित हुए । कार्यक्रम में विभिन्न मुद्दों पर चर्चा हुई तमाम वक्ताओं ने अपने विचार वर्तमान परिवेश को लेकर साझा किए। अम्बेडकर समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष तेज सिंह ने संविधान के साथ हुई खिलवाड़ तथा अपमान को स्पष्ट करते हुए, सेंगोल तथा अधिनम को समझाते हुए कहा कि मामला सरकार की कारगुजारी एवम् चालाकी का है, किंतु अफसोस हमारे राजनेता सरकार की हर चाल को समझने में नाकाम रहते हैं। आज हम आपको उसी चालाकी से रूबरू कराएंगे।
पुरानी संसद गोलाकार 83लाख रुपए की लागत से बनी थी के स्थान पर 970 करोड़ की लागत से तथा 64500 वर्ग मीटर में बनी संसद का शिलान्यास प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी द्वारा 10 दिसंबर 2020 को किया गया था तथा 28 मई 2023 को उन्हीं के कर कमलों द्वारा लोकार्पण कर देश को समर्पित कर दी गई। इस नवीन संसद के डिजाइनर पदम श्री अलंकृत विमल पटेल हैं । यह संसद अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त 888 लोकसभा तथा 384 राज्यसभा सदस्यों को अपने अंदर समाहित कर सकती है। सरकार के सेंट्रल विस्ता प्रोग्राम का अभिन्न हिस्सा तो है ही इसकी खासियत त्रिभुजाकार चार मंजिला होना भी है, किंतु इसके लोकार्पण कार्यक्रम ने सियासी गलियारों में हलचल पैदा कर दी ।
20 से अधिक विपक्षी दल यह कहकर लोकार्पण का हिस्सा नहीं बने कि संसद के लोकार्पण का हक राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को है, किंतु राष्ट्रपति को इस कार्य के लिए आमंत्रित नहीं किया गया । उनकी यह मांग अपनी जगह जायज थी कि संवैधानिक प्रमुख होने के नाते उनका हक था, कुछ एक प्रश्न राष्ट्रपति के दलित होने पर भी उठे, किंतु उसका कोई असर नहीं हुआ । दूसरी ओर ओवैसी ने कहा कि संसद लोकार्पण का हक स्पीकर अर्थात ओम बिरला का है वह भी मानो अनसुना कर दिया गया।
किंतु बड़ा प्रश्न यह है कि- जो साज-सज्जा तथा अथितियों उपस्थिति जैसी की तैसी रहती और राष्ट्रपति या अध्यक्ष इसका उद्घाटन करते तो उसका क्या कोई खास असर पड़ता? उत्तर होगा नहीं। क्योंकि उद्घाटन के समय प्रयुक्त सामग्री या अन्य चीजों पर किसी की कोई आपत्ति नहीं, जो पूर्णतया हिंदुत्ववादी था । यह हमारे आदर्श विपक्षी नेता ,जिन्हें लोकतन्त्र का रखवाला भी कहा जाता है इनकी भूमिका नासमझी के साथ फिल्म के अमरीश पुरी ,कादर खान या प्राण जैसी है जो कभी कव्वाली गाने लगते हैं, तो कभी आतंकवादी जैसी भूमिका निभाने लगते हैं।
लेकिन मतलब की बात न कह पाते हैं, ना उसके विषय में जान पाते हैं, न ही जनता को बता पाते हैं। तेजसिंह ने कहा अब बात शुरू होती है मूल प्रश्नों पर क्या पुरानी संसद इतनी जर्जर थी कि वह अपने 100 वर्ष 17-18 जनवरी 2027 तक पूरे कर पाने में असमर्थ थी, फिर बीच में ही यह ओछी हरकत क्यों की गई? क्या पुरानी संसद के मुकाबले कई गुना अधिक रुपया खर्च करके नवीन संसद की आवश्यकता वर्तमान में थी? विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के महत्वपूर्ण दस्तावेज भारतीय संविधान को लोकार्पण के समय यथोचित स्थान क्यों नहीं दिया गया क्या यह संविधान या संवैधानिक व्यवस्था, लोकतांत्रिक व्यवस्था का निरादर नहीं वी डी सावरकर के जन्मदिन पर ही यह लोकार्पण क्यों?
गांधी, नेहरू, अंबेडकर या अन्य महत्वपूर्ण नेताओं के जन्मदिन पर क्यों नहीं इसके अलावा- 2 अक्टूबर, 26 जनवरी, 15 अगस्त, 14 अप्रैल , पर यह लोकार्पण क्यों नहीं रखा गया ,क्या कोई अन्य राष्ट्रीय दिवस घोषित होने वाला है? 18 वीं संसद गठन की ओर चल रहे भारतीय लोकतंत्र में अब प्रधानमंत्री के बीच कार्यकाल में सत्ता हस्तांतरण क्यों और कैसा ? कहीं दो तलवारों का सिद्धांत फिर से तो नहीं दोहराया जा रहा, जहां सत्ता धर्म के मंदिर से संचालित होती थी ? सैंगोल हिंदू मान्यता है जिसकी प्रतिष्ठापना अध्यक्ष के बगल में क्यों?क्या अन्य धर्मावलंबी माननीय सांसद संसद में अब निर्वाचित होकर नहीं आएंगे, और आयेंगे तो सैंगोल को धर्मनिरपेक्षता का दर्जा किस प्रकार प्राप्त होगा? सैंगोल का विकल्प भारतीय संविधान या भारतीय नक्शा क्यों नहीं? नवीन संसद के लोकार्पण में तमिलनाडु के धर्मपुरम मठाधीश अधिनमो को ही क्यों बुलाया गया, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बुद्धिस्ट ,जैन या अन्य धर्मावलंबी क्यों नहीं बुलाए गए क्या यह सांकेतिक रूप से हिंदू धर्म की संसद घोषित कर दी गई है? राम मंदिर के महंत लोगों का इस कार्यक्रम में जिक्र क्यों नहीं जिन की दुहाई देकर भाजपा सत्ता में आई थी।
प्रश्न बड़ा है क्या किसी ने पूछा कि लोकसभा की 888 तथा राज्यसभा की 384 पीठिकाएं नवीन संसद में क्यों निर्धारित की गई क्या अंदर खाने 2024 में संसदीय क्षेत्र विस्तार योजना तो नहीं है। मनुस्मृति के श्लोक
” सभा वा ना प्रवेष्टया, वक्तव्यां व समंजसम।अब्रुबन विब्रुवन वापि, नरो भवति किलविषी।।
का अर्थ है कि मनुष्य को योग्य है कि वह सभा में प्रवेश न करें, यदि सभा में प्रवेश करें तो सत्य ही बोले । यदि सभा में बैठा हुआ भी इस असत्य बात को सुनकर मौन रहेगा अथवा सत्य के विरुद्ध बोले वह महा पापी है। जिसके लिए अशोक स्तंभ के नीचे ‘सत्यमेव जयते’ लिखा शब्द ही पर्याप्त था, किंतु नहीं, यह मनु स्मृति श्लोक लिखा जाना नवीन संसद लोकार्पण की नियति क्यों?
तमिलनाडु के अधीनमो के एक बड़े जत्थे को अर्थात शिव मठाधीशों को सैंगोल के साथ विशेष विमान से लाया गया, धर्मपुरम के केंद्रीय मठ जिसके अंतर्गत 27 अन्य मठ आते हैं इन से बहुसंख्यक मठाधीशओं को संसद लोकार्पण में विशेष स्थान दिया गया , जबकि अन्य धर्मावलंबियों को इस लोकार्पण से बिल्कुल दूर रखा गया।
प्रधानमंत्री जी का उनके द्वारा सैंगोल राज्याभिषेक हिंदू पुरोहिताई वैसी है जैसा कि हिंदू राजाओं का राज्याभिषेक होता था । यहां प्रश्न उठता है कि संसद ,संविधान, जनतंत्र ,राष्ट्रगान, राष्ट्रीय ध्वज, सबकुछ गंगा जमुनी साझा संस्कृति के उदाहरण हैं , जिनका कतई ध्यान नहीं दिया गया और यह एक ही धर्म के लोगों के साथ कैसे लोकार्पण हो गया। अधिनमो तथा सैंगोल का खंडन मीडिया या सरकार के प्रवक्ताओ द्वारा तथा अज्ञानी विपक्ष द्वारा क्यों नहीं किया गया, जबकि कोरोना काल में तबलीगी जमात तथा उनके मरकज की एक-एक बात खोल- खोल कर जो थी वह ,जो नहीं थी वह भी ,पटल पर रखी गई थी फिर इन अधिनमो और सैंगोल को क्यों नहीं समझाया गया।
यूरोप के पुनर्जागरण में धर्म सुधार आंदोलन अत्यंत महत्वपूर्ण है जिसमें कैथोलिक चर्च से सुधारवादी प्रोटेस्टेंट चर्च निकला तथा धार्मिक सत्ता चर्च की सत्ता मैं गिरावट आई और अंततः है जनतंत्र विकसित हुआ और धार्मिक हस्तक्षेप शून्य हुआ।
यह नए युग की शुरुआत तथा संसदीय परंपरा की शुरुआत थी जिसमें जनतांत्रिक क्रियाओं के अनुरूप प्रत्येक नागरिक को खुद को शासन का भागीदार मानने लगा, राजा रानी के पेट से होना बंद हो गए, भारत में नवीन संसद में पुनः हिंदू धर्मावलंबियों द्वारा लोकार्पण तथा प्रधानमंत्री को सैंगोल (राजदंड) प्रदान कर चोल राजाओं का उत्तराधिकारी बना दिया गया है ,फिर भी सब मौन है? मेरा निजी विचार है कि प्रधानमंत्री जी द्वारा तमिल के धर्म पुरम मठ को ही संसद घोषित कर देना चाहिए था , जिसकी शाखा स्वरूप 27 मठ आपको आधिपत्य में मिल जाते तथा अधीनमो का सदैव सानिध्य प्राप्त रहता। और सैंगोल को भी पूरा सम्मान मिलता।
28 मई 2023 को समस्त प्रतीक और मिथकों को ताक पर रखकर मोदी जी ने विशेष गणवेश धारियों के समक्ष साक्षात दंडवत प्रणाम किया और संसद का लोकार्पण कर दिया। राष्ट्रपति मुर्मू जी ने भी बधाई दे दी ।
मुर्मू जी को इसके अलावा और करना भी क्या था? समस्त क्षेत्रीय तथा राष्ट्रीय सेकुलर दल जो अज्ञानता का भंडार बन गए हैं कभी भी कोई उचित प्रश्न करने में असमर्थ रहे? उनकी प्रतिरोधक क्षमता समाप्त हो गई ।अशोक का अपमान ,राष्ट्रपति का अपमान, राष्ट्रपिता का अपमान, संविधान निर्माता का अपमान, पुरानी संसद का अपमान, संसदीय परंपरा का अपमान, संपूर्ण लोकसभा और राज्यसभा के सदस्यों के साथ मंत्रिमंडल का अपमान , धर्मनिरपेक्षता का अपमान, स्वतंत्रता सेनानियों का अपमान । यह सब कब यथोचित सम्मान पाएंगे । इस संसद में यह सारे मिथक सम्मान पाने में असफल क्यों रहे ? इसके पीछे सरकारी मनसा का खराब होना तो नहीं या विपक्ष का नकारा पन ? जो संवाद हीनता के कारण उचित अनुचित बातें भी समाज को बताने में अक्षम साबित हुए। जनता भारतीय जनता पार्टी पर भरोसा करके वोट इसलिए दिया था कि यह जनतांत्रिक प्रक्रियाओं को और आगे बढ़ाएगी तथा जनतांत्रिक मूल्यों को अधिक मजबूती प्रदान करेगी । किंतु ऐसा नहीं हुआ और आमजन आज ठगा हुआ महसूस करते हैं ।
आने वाला समय इन राजनेताओं को कभी माफ नहीं करेगा जिनके रहते हुए देश को सांकेतिक रूप से हिंदू राष्ट्र घोषित कर दिया गया। धर्मनिरपेक्षता तथा गंगा जमुनी तहजीब को तार तार कर दिया गया।मेरा आप सभी से अनुरोध है उठो, जागो और समाज में इसके खिलाफ जागृति फैला दो की 2024 तुम्हारे सामने बड़ा लक्ष्य है, अगर तुम इसे भेदने में सफल न हुए तो आगे आने वाला समय हम सबके लिए अंधकार मय होगा ।इस अवसर पर उपस्थित कौमी तहफ्फुज कमेटी के संयोजक खादिम अब्बास ने उपस्थित बौद्धिक जनों को धन्यवाद देते हुए तथा तेज सिंह जी की बात पर अमल किए जाने पर जोर देते हुए कहा कि भविष्य में आप इन सारी बातों का ध्यान रखते हुए अपना कदम आगे बढ़ाएंगे और समाज में जागृति फैलाने का काम करेंगे तथा इन सांप्रदायिकता वादी शक्तियों के मंसूबों पर 2024 में पानी फेरने का काम करेंगे।