यूरोप कैसे हल कर सकता अवैध प्रवासियों की समस्या?

जब सितंबर में माल्टा में यूरोप के नौ देशों के नेताओं ने यूरोप की सबसे पेचीदा समस्या के हल के लिए वार्ता समाप्त की तो लगा कि इस पर समझौता हो सकता है.

इसी वर्ष दो लाख से अधिक प्रवासी यूरोप की सीमा पर पहुंच चुके हैं. यह संख्या हर वर्ष बढ़ती जा रही है.

यूक्रेन युद्ध की वजह से भी प्रवासी यूरोप आ रहे हैं लेकिन सबसे बड़ी समस्या है कि सैकड़ों लोग नौकाओं के ज़रिए उत्तरी अफ़्रीका से भूमध्यसागर के रास्ते यूरोपीय देशों के तट पर पहुंच रहे हैं.

माल्टा में यूरोपीय नेताओं की बैठक के दौरान इस समस्या से निपटने के लिए इटली को अधिक सहायता देने और प्रवासियों को यूरोप के अन्य देशों में ले जाने के वादे किए गए.

इन प्रवासियों को यूरोप लाने वाले तस्करों को रोकने और उनके ख़िलाफ़ कार्यवाही के लिए अधिक धन उपलब्ध कराए जाने पर भी चर्चा हुई.

लेकिन कुछ ही दिनों में समझौते की संभावना धूमिल हो गई क्योंकि हंगरी और पोलैंड ने इन प्रवासियों को अपने देश में आने और यूरोप के दक्षिणी देशों को प्रवासियों को रखने के लिए आर्थिक योगदान देने से भी इनकार कर दिया.

इस हफ़्ते हम दुनिया जहान में यह जानने की कोशिश करेंगे कि क्या यूरोप अपनी प्रवासी समस्या का हल निकाल सकता है?

पेचीदा कारण

माइग्रेशन पॉलिसी इंस्टिट्यूट यूरोप की निदेशक हैना बैरन्स कहती हैं कि यह एक बड़ी समस्या है जिसका असर यूरोप के कई देशों में चुनाव पर और दुनिया में कई जगह पड़ रहा है.

यह समस्या शुरू हुई 2015 में जब सीरिया में युद्ध से भागकर यूरोप पहुंचे दस लाख से अधिक शरणार्थियों की वजह से यूरोपीय देशों के सामने बड़ी चुनौती खड़ी हो गई.

उसके बाद यूक्रेन युद्ध और कई अन्य कारणों से प्रवासियों का यूरोप पहुंचना जारी रहा. पिछले साल रूस के यूक्रेन पर हमले के बाद चालीस लाख यूक्रेनियों ने यूरोपीय संघ के देशों में शरण ली.

हैना बैरन्स ने बीबीसी को बताया, “पिछले सालों में युद्ध की चपेट में फंसे देशों से प्रवासी यूरोप में पहुंचे हैं. इनमें ज्यादातर लोग सीरिया, अफ़ग़ानिस्तान और एरिट्रिया और इथियोपिया से आए हैं जहां लंबे समय से संघर्ष चल रहा है. कई देशों में मौसम के बिगड़ने से हालात ख़राब हुए हैं. कोविड की वजह से अर्थव्यवस्था चरमरा गई और पर्यटन उद्योग ठप हो गया जिससे ग़रीबी बढ़ी. ऐसे कई कारणों की वजह से यह संकट फैला है.”

कोविड महामारी की वजह से ट्यूनीशिया में पर्यटन ठप होने से अर्थव्यवस्था चरमरा गई. वहीं उत्तरी अफ़्रीका में लीबिया में तानाशाही प्रशासन से भागकर लोग यूरोप का रुख करने लगे.

यूक्रेन के लोग बिना वीज़ा के यूरोप जा सकते हैं मगर अफ़्रीका से आने वाले प्रवासियों को वीज़ा मिलने की संभावना भी कम है जिसकी वजह से वो तस्करों की सहायता से छोटी नौकाओं में बैठकर अवैध रूप से यूरोप पहुंचने लगे हैं.

हैना बैरन्स का कहना है, “इस साल लीबियाई तटरक्षकों ने चौबीस हज़ार लोगों को पकड़ा. इसी साल तुर्की के तटरक्षक बल ने पचास हज़ार लोगों को पकड़ा है जो समुद्र के रास्ते तस्करों की मदद से यूरोप जाने का प्रयास कर रहे थे. हम जानते हैं कि लीबिया से भागने वालों को वापस भेजे जाने पर वहां की जेलों में बहुत ही बुरी स्थिति में रखा जाता है.

जिन छोटी नौकाओं में यह लोग यात्रा करते हैं उनके डूबने का ख़तरा भी रहता है. अंतरराष्ट्रीय नियमों के अनुसार, अगर कोई नौका ख़तरे में है तो पास मौजूद दूसरी नौकाओं को उसकी मदद करनी पड़ती है.

हैना बैरन्स के अनुसार पिछले कुछ सालों में हमने देखा है कि इस बारे में काफ़ी विवाद है कि किस नौका की सहायता करनी चाहिए और ख़तरे में पड़ चुकी नौका में सवार लोगों को कहां उतारा जाना चाहिए.

कई मामले सामने आए हैं जिसमें इटली और स्पेन ने ऐसी नौकाओं में सवार लोगों को अपने तट पर उतरने से मना कर दिया था. उनका कहना था कि ये प्रवासी या अपने देश लौटें या किसी अन्य भूमध्यसागरीय देश जाएं.

इसी वर्ष के पहले छह महीनों में लगभग बीस हज़ार प्रवासी, नौकाओं के डूबने से मारे गए हैं.

जो लोग यूरोपीय देशों के तट पर उतरने में कामयाब हो जाते हैं उनकी जांच यूरोपीय संघ के तथाकथित डबलिन नियम के तहत होती है जिसके तहत प्रवासियों कि प्रोसेसिंग उस देश में होती है, जहां वो पहले पहुंचते हैं.

यह प्रक्रिया कई महीनों तक चलती है. हैना बैरन्स कहती हैं कि इस दौरान इन्हें कई बार कंटेनरों में रखा जाता है जहां गर्मी के दिनों में तापमान चालीस डिग्री तक पहुंच जाता है. साथ ही नहाने-धोने के लिए पानी की भी किल्लत रहती है.

अपने देश में मुश्किल हालात से तंग आकर बेहतर ज़िंदगी की आशा लिए कई लोग यहां आकर और भी मुश्किल हालात में फंस जाते हैं.

बला’ टालने की कोशिश

जिनेवा कन्वेंशन के अनुसार ऐसे लोगों को सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए जिनका उनके अपने देश में उत्पीड़न हो रहा हो. यूरोपीय संघ इसी आधार पर कुछ लोगों को शरण देता है.

विश्व शरणार्थी और प्रवासी क़ानून की विशेषज्ञ और आयरलैंड के यूनिवर्सिटी कॉलेज डबलिन की प्रोफ़ेसर कैथरीन कोस्टेलो कहती हैं कि हाल के वर्षों में यूरोपीय संघ के सदस्य देशों ने कुछ नई नीतियां अपनाई हैं.

वह बताती हैं, “2015 और फिर 2016 की शुरुआत में जर्मनी ने देखा कि बड़ी संख्या में सीरियाई लोग आ रहे हैं जिन्हें अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा की ज़रूरत है. उन्हें अनौपचारिक रूप से सुरक्षा दी गई. यूक्रेन से आने वाले लोगों को भी अस्थायी तौर पर सुरक्षा देने का फ़ैसला किया गया. इसके लिए यूक्रेनियों को केवल अपना रजिस्ट्रेशन कराना होता था और उन्हें शरण मिल जाती थी.”

मगर अधिकांश मामलों में शरण के लिए दी गई अर्ज़ी ख़ारिज कर दी जाती है.

कैथरीन कोस्टेलो ने बताया कि न्यायपूर्ण तरीके से जांच प्रक्रिया के बाद जिन लोगों की अर्ज़ी ख़ारिज कर दी जाती है, उन्हें वापस उनके देश भेज दिया जाता है. इसके लिए सरकार बल प्रयोग कर सकती है. इसलिए इस प्रक्रिया का क़ानून के मुताबिक होना अत्यंत महत्वपूर्ण है.

लेकिन प्रवासियों को वापस भेजना भी आसान नहीं होता क्योंकि उनके अपने देश की सरकार उनकी नागरिकता पर सवाल उठाकर उन्हें वापस लेने से इनकार कर देती है.

ऐसी स्थिति में कई बार उन सरकारों को या दूसरे देशों को शरणार्थियों को अपने देश में रहने देने के लिए आर्थिक प्रलोभन भी दिया जाता है.

इस संबंध में यूरोपीय संघ ने तुर्की, लीबिया और ट्यूनीशिया के साथ समझौते किए हैं जिसके तहत वो अवैध तरीके से यूरोपीय संघ पहुंचे प्रवासियों को वापस ले लेते हैं. साथ ही वो यह सुनिश्चित करने को तैयार हो गए हैं कि उनकी भूमि से लोग अवैध तरीके से यूरोप ना जा पाएं.

यह सुनिश्चित करने के लिए यूरोपीय संघ इन देशों को आर्थिक सहायता भी देता है. लेकिन यह पेचीदा मसला है जिसके साथ मानवाधिकार और भ्रष्टाचार के मुद्दे जुड़े हुए हैं.

कैथरीन कोस्टेलो ने कहा, “लीबियाई तटरक्षक दल की कई गतिविधियों के लिए यूरोपीय संघ पैसे देता है. इस बात के सबूत हैं कि लीबिया तटरक्षक अवैध प्रवासियों को यातनाएं देते हैं और उन्हें अमानवीय स्थितियों में बंदी बना कर रखते हैं. कई बार देखा गया है कि जो अवैध नौकाएं लीबिया से यूरोपीय देशों की ओर जा रही होती हैं, उन्हें रोकने के बजाय वो उनके लिए ख़तरा पैदा कर देते हैं.”

जब इन देशों को अवैध प्रवासियों को वापस लेने के लिए यूरोपीय संघ से पैसे मिलते हैं तो यह ख़तरा बढ़ जाता है कि वो अपनी ज़मीन से अवैध प्रवासियों को बाहर जाने से रोकने के बजाय और ज्यादा लोगों को भेजना शुरू कर दें.

कैथरीन कोस्टेलो की राय है कि इसके साथ ही वे देश यूरोपीय संघ पर अपनी बात मनवाने के लिए दबाव डाल सकते हैं जिसका असर कई अन्य नीतियों और मुद्दों पर पड़ेगा.

कुल मिलाकर यूरोप पहुंचे प्रवासियों को उनके अपने देश वापस भेजना आसान नहीं होता. जिन्हें वापस नहीं भेजा जा सकता, वो जहां होते हैं, वहीं फंसे रहते हैं और क़ानूनी प्रक्रिया से जूझते रहते हैं.

पूरी हो सकती श्रमिकों की ज़रूरत

सितंबर में जहां इटली में बड़ी तादाद में प्रवासी पहुंच रहे थे, वहीं हज़ारों प्रवासी ग्रीस के तट पर भी पहुंच गए. यह ग्रीस में फ़सल की कटाई का समय भी था और कई किसानों को मज़दूरों की ज़रूरत थी.

ग्रीस का पर्यटन उद्योग और कंस्ट्रक्शन उद्योग भी श्रमिकों की किल्लत से जूझ रहा था. ऐसे में ग्रीस की सरकार ने तीन लाख प्रवासियों को वीज़ा देने की योजना बनाई.

वॉशिंगटन स्थित सेंटर फ़ॉर ग्लोबल डेवेलपमेंट के वरिष्ठ शोधकर्ता चार्ल्स केनी का कहना है कि ऐसी योजना अन्य देशों को भी बनानी चाहिए.

वह कहते हैं, “ऐसी कई फ़ैक्ट्रियां और खेत हैं जहां मज़दूरों की ज़रूरत है. यूरोप इस समस्या का सामना कर रहा है. अगर यह किल्लत दूर नहीं हुई तो ये उद्योग ठप हो जाएंगे और अर्थव्यवस्था को बड़ा नुकसान पहुंचेगा.”

यूरोप की आबादी में काम करने लायक उम्र के लोग घट रहे हैं और रिटायर हो चुके लोगों की संख्या बढ़ रही है. कई देश इस समस्या से निपटने के लिए क़दम उठा रहे हैं.

चार्ल्स केनी ने बताया कि ऊंची और मध्यम आय वाले देशों में प्रवासी श्रमिकों की मांग बढ़ रही है. इसलिए कई देश अपनी वीज़ा और प्रवासन नीतियों में बदलाव ला रहे हैं. वे प्रवासी श्रमिकों को आकर्षित करने की कोशिश भी कर रहे हैं.

मगर सवाल यह है कि ये देश वहां आने वाले प्रवासियों में से उन लोगों को कैसे चुनेंगे जिनके कौशल की उनके उद्योगों को आवश्यकता है?

चार्ल्स केनी का कहना है, “इसका एक तरीका यह है कि यूरोपीय देश एशिया और अफ़्रीका की सरकारों के साथ मिलकर काम करें. मिसाल के तौर पर भारत, इथियोपिया और मोरक्को की सरकार के साथ मिलकर वो उन देशों में उस कौशल के विकास में निवेश करें जिसकी उन्हें आवश्यकता है. उसके बाद वहां से प्रशिक्षित श्रमिकों को सुरक्षित और वैध तरीके से यूरोप लाएं.”

यह केवल आर्थिक मुद्दा नहीं बल्कि एक संवेदनशील चुनावी मुद्दा भी है. कई दक्षिणपंथी नेता, मिसाल के तौर पर हंगरी और पोलैंड के नेता, प्रवासियों को अपने देश में लाने के ख़िलाफ़ हैं.

सितंबर में एक छोटे से द्वीप लैपाडूसा के तट पर हज़ारों प्रवासियों के पहुंचने के बाद इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी ने भूमध्यसागर से आने वाली नौकाओं की नाकेबंदी की मांग तेज़ कर दी.

ठोस नीतियों की ज़रूरत

प्रवासियों और शरणार्थियों संबंधी नीति अपनाने के लिए यूरोपीय संघ के सदस्य देशों का ग़ैर यूरोपीय देशों से बात करना जितना ज़रूरी है, उतना ही ज़रूरी है यूरोपीय सदस्य देशों के बीच इस मुद्दे पर एकता बन पाना.

इस मुद्दे पर ग्रैनाडा में अक्तूबर में हुई यूरोपीय नेताओं की बैठक के दौरान कई मतभेद उजागर हो गए.

भूमध्यसागरीय देशों की मांग थी कि उत्तर अफ़्रीका से आने वाले प्रवासियों को समान संख्या में बांटकर उन देशों को भेजा जाए जहां वो सीधे नहीं पहुंच रहे.

पोलैंड ने पहले ही लाखों यूक्रेनी प्रवासियों को शरण दी हुई है. ऐसे में पोलैंड और हंगरी ने और प्रवासियों को स्वीकार करने से मना कर दिया.

उत्तरी अफ़्रीका से समुद्र के रास्ते आने वाले प्रवासी सबसे पहले इटली या ग्रीस पहुंचते हैं. बाद में उन्हें यहां से यूरोप के दूसरे देशों में भेजा जाता है.

इटली के फ़्लोरेंस शहर में स्थित यूरोपियन यूनिवर्सिटी इंस्टिट्यूट में माइग्रेशन स्टडीज़ सेंटर के उपनिदेशक मार्टिन रूस कहते हैं कि इस समस्या से निपटने के लिए इटली को सहायता की ज़रूरत है.

उनका कहना है, “इटली कह रहा है कि अन्य देशों को उसकी मदद करनी चाहिए. इसके तहत अन्य देशों को इनमें से कई प्रवासियों को अपने यहां रखना चाहिए. साथ ही अवैध प्रवासियों को आने से रोकने के लिए सीमा प्रबंध और दूसरी कार्यवाहियों के लिए आवश्यक आर्थिक सहायता भी इटली को मिलनी चाहिए. एक प्रस्ताव यह रखा गया है कि जर्मनी और अन्य यूरोपीय देश इटली पहुंचे प्रवासियों को अपने यहां जगह दें और अगर वो ऐसा नहीं करना चाहते तो उसके बदले में पैसे दें.”

एक महत्वपूर्ण सवाल यह है कि यूरोप के भीतर सीमा नियंत्रण कैसे हो. यूरोप के शेंगन समूह के सदस्य देशों के अलावा कई अन्य यूरोपीय देशों के बीच सीमा पर नियमित जांच नहीं होती है. लेकिन इस समस्या के चलते अब कुछ देशों ने नियंत्रण लागू करना शुरू कर दिया है.

मार्टिन रूस ने कहा, “अब कई राजनेता यह कह रहे हैं कि यूरोप के शेंगन समूह के देशों के बीच मुक्त आवाजाही तभी संभव होगी जब यूरोप की सीमाओं पर कड़ा नियंत्रण हो. अगर आप इटली से कार में बैठ कर ऑस्ट्रिया जा रहे हैं तो आपको कोई नहीं रोकेगा. अब प्रवासी समस्या के चलते कई जगहों पर जांच शुरू की जा रही है. लेकिन लोगों की आवाजाही को यूरोप के भीतर नियंत्रित करना आसान नहीं है.

यूरोप के मतदाता प्रवासी समस्या को नियंत्रित करने के लिए मानवीय तरीके से कार्यवाही चाहते हैं लेकिन साथ ही अपने समाज और उसके तौर-तरीकों का संरक्षण भी चाहते हैं.

मार्टिन रूस मानते हैं कि कई लोग इसे लेकर दुविधा में हैं. वो प्रवासियों की सहायता तो करना चाहते हैं लेकिन नीतिगत नियंत्रण भी चाहते हैं. सबसे बड़ी चुनौती है- शरणार्थियों संबंधी नीति और नियंत्रण के बीच संतुलन कायम रखना.

अब लौटते हैं अपने मुख्य प्रश्न की ओर. क्या यूरोप अपनी प्रवासी समस्या का हल निकाल सकता है?

यूरोप, ग़ैर-यूरोपीय देशों के साथ समझौते के ज़रिए इस समस्या को नियंत्रित करने का प्रयास कर रहा है. इसमें एक समस्या यह है कि उन देशों को आर्थिक मदद देने से क्या वाक़ई समस्या पर नियंत्रण पाया जा रहा है?

इस समस्या से निपटने के लिए यूरोपीय देशों के बीच मौलिक मतभेद भी हैं. प्रवासन की समस्या के अनेक कारण हैं और उसके लिए कई उपायों की ज़रूरत होगी.

इस समस्या से निपटने के लिए इटली और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री के बीच ख़ुफ़िया जानकारियों के आदान-प्रदान पर सहमति हुई है.

इसके अलावा, यह समझना भी ज़रूरी है कि हज़ारों प्रवासियों का नौकाओं में बैठकर आना कुछ गहरी और गंभीर समस्याओं की ओर भी इशारा करता है जिसके बारे में सोचना ज़रूरी है.

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