सुमेरपुर। बुंदेलखंड के प्रवेश द्वार हमीरपुर का लट्ठमार दिवारी नृत्य पूरे देश में अलग पहचान रखता है। नवरात्र से शुरू होने वाला रियाज दिवाली पर्व पर धूम मचाता है। इसके बाद मेलों आदि के आयोजनों में इसको देखने के लिए भारी भीड़ में उमड़ती है। कभी यह यादवों के मध्य की कला थी। लेकिन अब इस कला में सभी जातियों की सहभागिता हो गई है। हमीरपुर बुंदेलखंड का प्रवेश द्वार माना जाता है। इस जनपद की अनोखी लट्ठमार दिवारी पूरे देश भर में मशहूर है। यहां के कलाकार राष्ट्रपति भवन में जाकर अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके हैं। जिला मुख्यालय में आयोजित होने वाले तमाम शासकीय कार्यक्रमों में यह कलाकार अपनी कला का लोहा मनवा चुके हैं। दिवारी नृत्य के कलाकार गिरधारी यादव, महावीर प्रजापति, लालाराम यादव, बाबूराम यादव ने बताया कि यह बहुत पुरानी कला है। इस कला के माध्यम से पूर्व में बड़े-बड़े युद्ध लड़े जाते थे। इसमें लाठी का प्रहार किस तरह से सामने वाले पर करना है और उसका बचाव कैसे किया जाता है। सब कुछ सीखने को मिलता है। दिवारी नृत्य में बड़ी लाठी के साथ छोटी लाठी व छोटे डंडों का भी उपयोग किया जाता है। और तमाम तरह से इनके प्रहारों का आदान-प्रदान करके कला का प्रदर्शन किया जाता है। ढोल मजीरे की थाप में गीत गाकर नृत्य भी किया जाता है। दिवारी नृत्य के कलाकार बताते हैं कि प्रतिवर्ष इस नृत्य का रियाज नवरात्र पर्व से शुरू होता है। दिवाली पर्व में इसका जगह-जगह प्रदर्शन किया जाता है। इसके बाद कार्तिक,अगहन , पूस,माघ,फागुन मास में आयोजित होने वाले सभी बड़े एवं छोटे मेलों में दिवारी नृत्य आकर्षण का केंद्र होता है। इस कला को देखने के लिए आज भी लोगों की भारी भीड़ उमड़ती है और लोग इसको देखकर आनंद उठाते हुए कलाकारों को पुरस्कृत करते हैं।इस तरह द्वापर युग से शुरू हुई यह परंपरा मथुरा वृंदावन से निकल आज बुंदेलखंड में विद्यमान है।