हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिसाल, अजान और भजन एक साथ

भारत की अनेकता में एकता की जहां विश्व में मिसाल है। वहीं उत्तर प्रदेश के बलिया जिले की अखार ग्राम सभा का पूरवा दादा का छपरा गांव गंगा जमुनी तहजीब का प्रतीक है। इस गांव को हिन्दू मुस्लिम एकता के उदाहरण के रूप में देखा जाता है। यहां की खासियत यह है कि सभी त्योहार हिन्दू- मुस्लिम आपसी सौहार्द के साथ मनाते हैं। हिन्दुओं के त्योहार में मुस्लिम बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं। वहीं मुस्लिम त्योहार में हिन्दू पूरी शिद्दत के साथ शिरकत करते हैं।

मंदिर,मस्जिद तथा मजार एक लाइन में एकदम पासगांव में दक्षिणेश्वर नाथ महादेव मंदिर, मजार तथा मस्जिद एक लाइन में एकदम सटे हुए स्थित है।मजार पर उर्स मेला का आयोजन होता है तो इस विशाल मेले का नेतृत्व हिन्दू भाई करते हैं। वहीं महाशिवरात्रि का महापर्व हो या दक्षिणेश्वर नाथ महादेव मंदिर का वार्षिकोत्सव का महोत्सव,इसमें मुस्लिम बन्धु बढ़ चढ़कर सहभागिता करते हैं। विवाहोत्सव आदि मांगलिक कार्यक्रम में यह पता नहीं चलता कि आखिर किसके घर मांगलिक कार्यक्रम है।क्यों कि हिन्दू भाई के घर के मांगलिक कार्यक्रम में मुस्लिम बन्धु तथा मुस्लिम बन्धुओं के मांगलिक कार्यक्रम में हिन्दू भाई ऐसे सम्मिलित होते हैं,जैसे उनके घर का ही मांगलिक कार्यक्रम हो।अगर किसी के यहां किसी की मृत्यु होती है तो हिन्दू भाई कब्रगाह तक तथा मुस्लिम बन्धु श्मशान तक जाते हैं।

एक तरफ आरती तो दूसरी तरफ अजान मन्दिर में आरती तो मस्जिद में अजान भी साथ साथ हो जाता है। मन्दिर पर लगे ध्वनि विस्तारक यंत्र के माध्यम से जब भजन होता है और अजान का समय होता है तो मन्दिर का भजन बन्द नहीं होता बल्कि मस्जिद का अजान और मन्दिर का भजन सुर एक साथ होता है। दादा के छपरा गांव में 23 अक्टूबर 1988 को बाबा चुप शाह वारसी का मजार बना। वहीं ठीक मजार के बगल में 02 नवम्बर 1990 को दक्षिणेश्वर नाथ महादेव का मंदिर स्थापित हुआ। 3 मई 2016 को इसी जगह मस्जिद भी बनकर तैयार हुआ। तब से अब तक यह जगह ही नहीं पूरा गांव गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल बना हुआ है।

गांव में 100 परिवार हिन्दू, दो दर्जन परिवार मुस्लिम्स

आपसी भाईचारे तथा सौहार्द की मिसाल दादा के छपरा गांव में करीब सौ परिवार हिन्दू तथा करीब दो दर्जन मुस्लिम परिवार आपसी प्रेम तथा सौहार्द के साथ रहते हैं।गांव में हिन्दू तथा मुस्लिम बन्धुओं के बीच इतनी प्रगाढ़ता कि कोई भी एक दूसरे की बुराई नहीं सुनना चाहता।

हमारे लिए दोनों मजहब एक जैसे

मन्दिर के पुजारी भूतपूर्व सैनिक ओम प्रकाश राय का कहना है कि मंदिर में भगवान की सेवा करता हूं। रही बात मजहब की तो हमारे दोनों के मजहब तो आप की नजरों में अलग है। मेरे लिए तो दोनों एक ही हैं। जितना सम्मान हम अपने शंकर जी को करते हैं। उतनी ही सम्मान हम मजार तथा मस्जिद का करते हैं। हमारे यहां कोई त्योहार होता है तो पूर्ण सहयोग में ये रहते हैं। और इनके यहां कोई त्योहार होता है, तो उसमें हम लोग रहते हैं। मतलब हम लोगों के अन्दर कोई ऐसी भावना नहीं है। हम लोग प्रेम से करते हैं। किसी की कोई मजबूरी नहीं होती बस आपस का प्रेम है।

हम इंसानियत का धर्म मानते रहेंगे

मस्जिद के पेशे इमाम ने कहा कि हम लोग आपस में मिलकर हर काम करते हैं। मंदिर का काम होगा मुस्लिम मिलेंगे। मस्जिद मजार का काम होगा हिन्दू मिलेंगे। हिन्दू मुसलमान कोई है नहीं समझ लोग मिलकर इकट्ठा होकर मानते हैं। ग्रामीण सतीश कुमार राय ने कहना है कि इस गांव की बात की जाए तो यह गांव आज के इस माहौल में जहां धर्म के नाम पर बहुत सारे विवाद चल रहे हैं देश में। उस माहौल में हमारा गांव एक मिसाल के तौर पर उदाहरण बनकर भारत में उभर कर आएगा आगे,आप देखिएगा। इस गांव की मिसाल को ले के बहुत सारे लोग सकारात्मक धर्म के नाम पर लड़ना, धर्म के नाम पर बंटना ये सब छोड़ेंगे। ये हम लोगों का निश्चय है।हमारे खून का रंग एक है।जब उसने नहीं बांटा तो हम अपने आपको बांटने में भरोसा नहीं रखते।हम इंसानियत का धर्म मानते हैं और आगे मानते रहेंगे।

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